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कुमाऊं में कल से गूंजेगी बैठकी होली की स्वरलहरियां

डीके जोशी, अल्मोड़ा : देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड के पहाड़ में शास्त्रीय संगीत पर आ

By JagranEdited By: Published: Fri, 15 Dec 2017 10:47 PM (IST)Updated: Fri, 15 Dec 2017 10:47 PM (IST)
कुमाऊं में कल से गूंजेगी बैठकी होली की स्वरलहरियां
कुमाऊं में कल से गूंजेगी बैठकी होली की स्वरलहरियां

डीके जोशी, अल्मोड़ा : देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड के पहाड़ में शास्त्रीय संगीत पर आधारित बैठकी होली गायन की परंपरा डेढ़ सौ साल से भी अधिक समय से चल रही है। यहां शीतकाल के पौष मास के प्रथम रविवार से गणपति की वंदना से बैठकी होली का आगाज होता है। यह होली विभिन्न रागों में चार अलग-अलग चरणों में गाई जाती है। जो होली टीके तक चलती है। पहाड़ में बैठकी होली गीत गायन का जनक उस्ताद अमानत उल्ला को माना जाता है। तब से अब तक लोक संस्कृति प्रेमियों ने इस परंपरा को कायम रखा है। कड़ाके की ठंड में भी होली गीतों के रसिक इस बैठकी होली गायन में देर रात्रि तक उत्साहपूर्वक भागीदारी करते हैं।

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कुमाऊं में होली गायन की परंपरा ऐतिहासिक सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से शुरू हुई। पर्वतीय क्षेत्र में होली गीत गायन का इतिहास 150 साल से भी अधिक पुराना है। जानकारों के अनुसार कुमाऊं में होली गीतों के गायन का सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से हुआ। रामपुर के उस्ताद अमानत ने ब्रिटिश शासन काल के दौरान 1860 में इसकी शुरूआत की। बैठकी होली गायन मुख्यतया शास्त्रीय संगीत पर आधारित है। विशेषता यह है कि पहाड़ में बैठकी होली गायन की शुरुआत होली से करीब तीन माह पहले पौष मास के पहले रविवार से शुरू हो जाती है। जो होली के टीके तक चलती है। बैठी होली गायन चार चरणों में पूरा होता है। पहला चरण पौष मास के प्रथम रविवार से आध्यात्मिक होली 'गणपति को भज लीजे मनवा' से शुरू होकर वंसत पंचमी के एक दिन पूर्व तक चलता है। वसंत पंचमी से महाशिवरात्रि के एक दिन पूर्व तक के दूसरे चरण में भक्तिपरक व श्रृंगारिक होली गीतों का गायन किया जाता है। तीसरे चरण में महाशिवरात्रि से रंगभरी एकादशी के एक दिन पूर्व तक हंसी मजाक व ठिठोली युक्त गीतों का गायन होता है। रंगभरी एकादशी से होली टीके तक मिश्रित होली की स्वरलहरियां चारों ओर गूंजती हैं। गौरतलब है कि पहले से तीसरे चरण तक की होली गायन सायंकाल घर के भीतर गुड़ के रसास्वादन के बीच विविध वाद्य यंत्रों के साथ पूरी तल्लीनता से गाई जाती है। चौथे चरण में बैठी होली के साथ ही खड़ी होली गायन का भी क्रम चल पड़ता है। इसे चीर बंधन वाले स्थानों अथवा सार्वजनिक स्थानों में खड़े होकर पद संचलन करते हुए लयबद्ध तरीके से गाया जाता है। विविध रंगों के साथ ही अबीर-गुलाल के बीच बैठी व खड़ी होली की कर्णप्रिय स्वरलहरियां होली के त्योहार को उल्लासमय बना देती हैं।

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इन शास्त्रीय रागों पर होता है होली गायन

अल्मोड़ा : बैठी होली का गायन शास्त्रीय रागों पर आधारित होता है। यह होलियां पीलू, भैरवी, श्याम कल्याण, काफी, परज, जंगला काफी, खमाज, जोगिया, देश विहाग व जै-जैवंती आदि शास्त्रीय रागों पर विविध वाद्य यंत्रों के बीच गाई जाती है।

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पहाड़ में प्रचलित होली गीत शास्त्रीय संगीत पर आधारित हैं। पिछले 114 सालों से साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था श्री लक्ष्मी भंडार हुक्का क्लब होली गायन की 150 साल से भी अधिक की होली गायन परंपरा को कायम रखे हुए है। अल्मोड़ा के बाद अब नैनीताल, हल्द्वानी, रानीखेत, चम्पावत, लोहाघाट, पिथौरागढ़, गंगोलीहाट व बाड़ेछीना में भी बैठकी होली गायन शुरू हो गया है।

- शिवचरण पांडे, वरिष्ठ बैठी होली गायक व संस्था के सचिव


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