पार्थिव पूजन से मिलता है मनोवांछित फल
गणेश पाण्डेय दन्यां पवित्र सावन माह में शिव भक्त भोले बाबा को प्रसन्न करने के लिए दूर-दूर त
गणेश पाण्डेय, दन्यां
पवित्र सावन माह में शिव भक्त भोले बाबा को प्रसन्न करने के लिए दूर-दूर तक शिवालयों में पूजा-अर्चना करने के लिए जाते हैं। इस माह में जलाभिषेक, शिवार्चन और पार्थिव पूजन का विशेष महत्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्रावण माह में पार्थिव पूजन से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। पार्थिव पूजन के लिए प्रसिद्ध जागेश्वरधाम सहित विभिन्न शिवालयों में प्रतिदिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
सावन माह भगवान शिव को सर्वाधिक प्रिय है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी माह देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। समुद्र मंथन के दौरान जो हलाहल विष निकला था उसे शिवजी ने जगत के कल्याण के लिए स्वयं निगल कर अपने कंठ में एकत्रित कर लिया था। विष कंठ में जमा हो जाने से उनका कंठ नीला पड़ गया इसी लिए उन्हें नीलकंठ नाम से भी जाना जाता है। विष के प्रभाव को कम करने के लिए समस्त देवताओं ने उनका जलाभिषेक किया था। तभी से सावन महिने में भोले बाबा को प्रसन्न करने के लिए शिवार्चन, जलाभिषेक और पार्थिव पूजन किया जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिगों में एक माने जाने वाले जागेश्वरधाम में पार्थिव पूजन का विशेष महत्व माना गया है। पहली बार पार्थिव पूजन जागेश्वरधाम में ही होता है। तत्पश्चात श्रद्धालु अपने-अपने घरों में भी पूजन कर सकते हैं। पार्थिव पूजन लगातार 12 वर्ष तक करने की मान्यता और परंपरा है। अपनी सामर्थ्य के अनुसार श्रद्धालु विभिन्न पदार्थो से 108, 1008 अथवा 100008 पार्थिवों को निर्मित कर पूजा करते हैं।
--------------
ऐसे होती है फल की प्राप्ति
असाध्य रोगों के निवारण के लिए - गोबर से निर्मित पार्थिव
पुत्र प्राप्ति के लिए - साढ़ी सेली चावल के आटे से निर्मित पार्थिव
अभीष्ट कामना की सिद्धी के लिए - मिट्टी से निर्मित पार्थिव
सौंदर्य और धन की प्राप्ति के लिए - मक्खन से निर्मित पार्थिव
पारिवारिक सुख शांति के लिए - देवदार के जड़ की मिट्टी से निर्मित पार्थिव
पितृ दोष निवारण के लिए - जौ के आटे से निर्मित पार्थिव
---------------
पहली बार पार्थिव पूजन सावन के महिने में किसी शिवालय में किया जाता है। उसके बाद श्रद्धालु अपने-अपने घरों में भी नियमित रूप से प्रतिवर्ष सावन में पार्थिव पूजन कर सकते हैं। पार्थिव पूजन का यह क्रम यदि पूरे 12 साल तक जारी रहे तो अभीष्ट मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
-लीलाधर जोशी, मुख्य पुजारी, उर्धेश्वर महादेव मंदिर
अब खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस, डाउनलोड करें जागरण एप