सजने लगी अज्ञातवास में पांडवों की शरण स्थली पांडवखोली
अज्ञातवास में पांडवों की शरणस्थली रही पांडवखोली में मेले की तैया
जेएनएन, द्वाराहाट/रानीखेत: अज्ञातवास में पांडवों की शरणस्थली रही पांडवखोली में मेले की तैयारी शुरू हो गई है। दिसंबर दूसरे सप्ताह में होने वाले कार्यक्रम को भव्य स्वरूप देने के लिए पर्यटन समेत अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों का खाका तैयार करने के बाद ऐतिहासिक मैदान के साथ ही हिमदर्शन तथा योगाभ्यास को बने हवाई टॉवर व पाषाण प्रतिमाओं को रंगरोगन से संवारने का काम शुरू हो गया है।
पौराणिक द्वारिका की ऊंची चोटियों में शुमार तथा शक्तिपीठ मां दूनागिरी के धाम से यही कोई सात किमी दूर स्थित द्वापरयुगीन पांडवखोली में चहल पहल शुरू हो गई है। आठ दिसंबर को स्वर्गपुरी महत बलवंतगिरि महाराज की 26वीं पुण्यतिथि पर लगने वाले भंडारे की तैयारी पूरी कर ली गई है। पथ भ्रमण संघ अध्यक्ष हरीश लाल साह के अनुसार सांस्कृतिक विरासत को संजोए इस धार्मिक मेले में पर्यटन विकास के लिए साहसिक कार्यक्रमों के अलावा ग्रामीणों के लिए चिकित्सा शिविर व महिलाओं व बच्चों की विभिन्न खेल गतिविधियां भी होंगी। संघ से जुड़े एलएम चंद्रा, यतीश रौतेला आदि मेले को भव्य रूप देने में जुटे हैं। ============== त्रेता एवं द्वापरयुगीन भारतवर्ष की सांस्कृतिक विरासत को संजोए है पांडवखोली
= महाऔषधि वन में जड़ी बूटियों व पक्षियों का अद्भुत संसार जगत सिंह रौतेला, द्वाराहाट : वैदिककालीन महाऔषधीय वन यानी द्रोणागिरि पर्वतमाला में आज भी अनगिनत औषधीय वनस्पतियों का अद्भुत संसार मौजूद है। समुद्रतल से करीब साढ़े आठ हजार फीट की ऊंचाई पर द्रोण पर्वत स्थित पांडवों की खोली त्रेता एवं द्वापरयुगीन भारतवर्ष की सांस्कृतिक विरासत के साथ आयुर्वेद की आधारभूत धरोहर को भी संजोए हुए है।
कुमाऊं की प्राचीन आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं स्थापत्य कला की केंद्र रही पौराणिक द्वारका से लगभग 22 किमी दूर पांडवखोली दूनागिरि पर्वत श्रृंखला में शामिल है। त्रेता में यहां संजीवनी बूटी के अंश गिरे तो संजीवनी प्रदेश नाम पड़ा। गर्ग मुनी ने यहां तप किया। पांडवखोली के सामने भरतकोट की ऊंची चोटी से निकलने वाली नदी का नाम गगास नदी के रूप में मिला। खास बात कि यह पर्वतमाला मानसखंड के महाऔषधि वन को चरितार्थ भी करती है। यहां पग पग पर औषधीय पौधों की भरमार संजीवनी प्रदेश का आभास कराती है। वज्रदंती, सफेद व काली मूसली, पीपली आदि सैकड़ों औषधीय पौधे यहां की पहचान हैं। =====================
अज्ञातवास में पांडुपुत्रों ने किया तप तो कहलाया पांडवखोली
द्वाराहाट: आध्यात्मिक द्रोणागिरी (दूनागिरि) की पर्वत श्रृंखला है 'पांडवखोली'। आध्यात्म से लबरेज ऐसा स्थल जहां द्वापर में पांडू पुत्रों ने अज्ञातवास का आखिरी दौर गुजारा। ध्यान लगाया। कालांतर में महाअवतार बाबा ने इसी स्थल से वैदिक संस्कृति से जुड़े 'क्रिया योग' को पुनर्जीवित किया। चूंकि यह पर्वत शिखर ब्रह्मज्ञान भी कराता है लिहाजा इसे ब्रह्म पर्वत भी कहा जाता है। गर्ग मुनि, गुस् द्रोण आदि तमाम ऋषि मनिषियों की तपो स्थली पौराणिक द्वारका ध्यान योग का भी गढ़ रही है। महाअवतार बाबा से 'क्रिया योग' की दीक्षा शिष्य श्यामाचरण लाहड़ी ने पांडवखोली में ही ली थी। फिर युक्तेश्वर महाराज व परमानंद योगानंद ने इसी तपो स्थली से भारतीय वैदिक परंपरा 'क्रिया योग' को आगे बढ़ाया। चार दशक पूर्व ध्यानमग्न महात्मा बलवंत गिरि जी महाराज आध्यात्म के इसी केंद्र में ब्रह्मलीन हुए थे। तभी से पांडवों की खोली में उत्सव की परंपरा है।