दलित समाज के शिल्पी मुंशी जी ने सामाजिक समरसता के लिए जीवन किया समर्पित
दलित समाज के शिल्पी मुंशी जी ने सामाजिक समरसता के लिए जीवन समर्पित किया था।
दलित समाज के शिल्पी मुंशी जी ने सामाजिक समरसता के लिए जीवन किया समर्पित
जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा : दलित शोषित समाज के नायक मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने न केवल दलित समाज को शिल्पकार नाम दिया, बल्कि सेना में शिल्पकारों को प्रतिनिधित्व दिलाने वाले पहले समाज सुधारक थे। उन्होंने जीवन भर समाज में पनप रहे भेदभाव को खत्म करने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने शिल्पकार समाज को समाज में बराबर का अधिकार दिलाने के लिए लगातार कार्य किया। आज भी लोग उनके बताए मार्ग पर चलकर समाज में व्याप्त भेदभाव को खत्म करने का कार्य कर रहे हैं।
युवावस्था से ही मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने सामाजिक सुधार के कार्य में जुट गए थे। उनका जन्म 26 अगस्त 1887 को अल्मोड़ा में हुआ। उन्होंने समाज के अंदर पीढ़ियों से पनप रहे जातिवाद, भेदभाव को खत्म करने का संकल्प लिया। दलित वर्ग गरीबी, अंधविश्वास, अशिक्षा से ग्रसित था। जिस कारण उच्च वर्ग उसका शोषण किया करता था। आम बोलचाल में अपमानजनक शब्दों से संबोधित करता था। यह देखकर मुंशी जी बहुत व्यथित हुए। उन्होंने उत्तराखंड में शिल्प का कार्य करने वाली निम्न जाति के लोगों को शिल्पकार नाम की संज्ञा प्रदान की। 1927 में उनके अथक प्रयासों व संघर्षों से शिल्पकार नाम को सरकारी मान्यता मिली।
1924 में मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने उत्तराखंड में शिल्पकारों का वृहद सम्मेलन आयोजित किया। जिसके बाद कुमाऊं शिल्पकार सभा का जन्म हुआ। उन्हीं के प्रयासों से 1930-40 के मध्यम कुमाऊं-गढ़वाल में भूमिहीन शिल्पकारों को ब्रिटिश सरकार ने 30 हजार एकड़ कृषि भूमि वितरित की। उन्होंने शिक्षा की अलख जगाने के लिए शिल्पकार सभा के माध्यम से 150 प्राथमिक और प्रौढ़ पाठशालाओं की स्थापना की। ब्रिटिश सेना में शिल्पकार वर्ग की भर्ती नहीं हुआ करती थी। उन्हें डरपाेक जाति समझा जाता था। लेकिन इसके लिए मुंशी जी ने लंबा संघर्ष किया। द्वितीय विश्व युद्ध में पांच हजार शिल्पकाराें से पायनियर बटालियनों का निर्माण किया गया। मुंशी जी ने ही बताया कि यह जाति बंदूक बनाना व चलाना दोनों जानती है। जिसके बाद से शिल्पकारों की सेना में भर्ती होने लगी।
शिल्पकार समाज के शोषण और उत्पीड़न के खात्मे के लिए मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने समता नाम साप्ताहिक पत्र निकाला। यह अखबार शोषित, वंचितों की आवाज बना। इसके लेखों ने राजनीतिक व सामाजिक जागरूकता फैलाई। 23 फरवरी को 1960 में उनकी मौत हो गई।
--राजनीतिक सफर---
- आल इंडिया डिप्रेस्ड क्लास ऐसोसिएशन की उप्र शाखा के उपाध्यक्ष - वर्ष 1934-40 तक
- गोंडा संयुक्त प्रांत की विधानसभा से निर्विरोध निर्वाचित - वर्ष 1937
- नगरपालिका अल्मोड़ा के चेयरमैन - वर्ष 1945