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Lok Sabha Election 2024: जिसने हिमाचल से लेकर भूटान तक किया आबाद, आज वहीं चौबटिया हो रहा निर्जन

Lok Sabha Election 2024 600 एकड़ क्षेत्रफल में फैला चौबटिया गार्डन रानीखेत विश्व प्रसिद्ध है। आज हिमाचल प्रदेश उत्तरपूर्वी राज्य से भूटान नेपाल अफगानिस्तान तक सेब की जो पैदावार हो रही है वह सब चौबटिया गार्डन की ही देन है। लेकिन नीति निर्माताओं की बेरुखी से अब चौबटिया गार्डन अपने गौरवशाली इतिहास को बस याद ही करता है। अब यह चौबटिया गार्डन अपने सबसे बुरे दौर में है।

By chandrashekhar diwedi Edited By: Nirmala Bohra Published: Thu, 11 Apr 2024 07:08 AM (IST)Updated: Thu, 11 Apr 2024 07:08 AM (IST)
Lok Sabha Election 2024: चौबटिया हो रहा निर्जन

चंद्रशेखर द्विवेदी, अल्मोड़ा : Lok Sabha Election 2024: कभी चौबटिया गार्डन नाम आते ही लोगों के जेहन में सेब के लहलहाते बागान, आड़ू, खुबानी, पुलम की सैकड़ों प्रजातियां आ जाती थीं। लेकिन नीति निर्माताओं की बेरुखी से अब चौबटिया गार्डन अपने गौरवशाली इतिहास को बस याद ही करता है। 600 एकड़ क्षेत्रफल में फैला चौबटिया गार्डन रानीखेत विश्व प्रसिद्ध है।

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आज हिमाचल प्रदेश, उत्तरपूर्वी राज्य से भूटान, नेपाल, अफगानिस्तान तक सेब की जो पैदावार हो रही है, वह सब चौबटिया गार्डन की ही देन है। कभी देश-विदेश से लोग यहां पर बागवानी करने के लिए सीखने आते थे। लेकिन अब यह चौबटिया गार्डन अपने सबसे बुरे दौर में है।

प्रदेश की करीब 45 प्रतिशत आबादी बागवानी से जुड़ी है। राज्य बनने के बाद हम चौबटिया के जरिये राज्य को बागवानी प्रदेश के रूप में आत्मनिर्भर कर सकते थे। इससे काश्तकारों की आय तो बढ़ती ही, वहीं पलायन भी रुकता। एक दौर में हार्टीकल्चर मिशन के नाम पर करोड़ों रुपये आए। प्रदेश में इसका कोई असर नहीं हुआ।

उद्यान विभाग के निदेशक कभी यहीं बैठकर उद्यानीकरण पर नजर रखा करते थे। अब हाल यह है कि अब निदेशक भी देहरादून के आलीशान बंगलों में रहने लगे। यहां कभी-कभार ही आने लगे। राज्य बनने के बाद यहां का शोध एवं प्रसार केंद्र पंतनगर विश्व विद्यालय को सौंप दिया गया। वहीं से इसके दिन खराब होने लगे। गार्डन की ताकत पूरी तरह से खत्म कर दी।

सरकारी नर्सरी का पूरी तरह निजीकरण कर दिया गया। चौबटिया में अब कुछ स्थाई और अस्थाई स्टाफ जैसे-तैसे यहां की बागवानी को बचाने में लगा हुआ है।

विदेशी सेब की प्रजाति भी सफल नहीं

चौबटिया गार्डन में एक दौर में विदेशी सेबों की प्रजाति अमेरिका और इटली से मंगाई गई थी। यह गार्डन में तो कुछ दिखाई देती है, लेकिन वास्तविक काश्तकारों को इसका फायदा नहीं मिला। उनके बगीचे में यह विदेशी प्रजाति के सेब सफल नहीं हो सके। इसकी देखरेख का मूल्य बहुत है। जब तक खेत की सायल हेल्थ ठीक नहीं होगी, तब तक यह सफल नहीं हो सकता है।

काश्तकार नहीं, पर्यटकों को देख किया जा रहा विकसित

कभी सेब सहित कई आड़ू, पुलम, खुबानी, नाशपाती, अखरोट आदि पेड़-पौधों के लिए प्रसिद्ध चौबटिया गार्ड में अब पर्यटकों के आकर्षित करने के पर जोर दिया जा रहा है। यहां ट्यूलिप, लिलियम, विगोनिया लगाने के कार्य किए जाने की योजना है। ऐसी योजना से काश्तकार किस तरह मजबूत होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। चौबटिया गार्डन की देन गार्डन ने सेब की चौबटिया प्रिंसेज, अनुपम, खुबानी की चौबटिया मधु, अलंकार की विकसित किस्में विकसित की।

चौबटिया शोध केंद्र से प्रोग्रेसिव हार्टिकल्चर नाम से त्रैमासिक पत्रिका नियमित रूप से प्रकाशित की जाती थी। अब शोध आर प्रसार केंद्र नहीं है। सुव्यवस्थित पुस्तकालय के साथ मैट्रियोलाजी आब्जरवेटरी भी स्थापित की गई थी। चौबटिया पेस्ट बागवानों की पहली पसंद और फंफूदी नाशक का इजाद भी यही हुआ था। अब यह अतीत होता जा रहा है।

  • चौबटिया गार्डन की स्थापना- 1860
  • क्षेत्रफल- 600 एकड़

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