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जल संरक्षण के लिए महात्मा गाधी के मितव्ययता सिद्धात को अपनाना जरूरी

संवाद सहयोगी द्वाराहाट स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मदन मोहन उपाध्याय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में मन की

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Aug 2019 11:22 PM (IST)Updated: Tue, 13 Aug 2019 06:33 AM (IST)
जल संरक्षण के लिए महात्मा गाधी के मितव्ययता सिद्धात को अपनाना जरूरी

संवाद सहयोगी, द्वाराहाट : स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मदन मोहन उपाध्याय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में 'मन की बात, जल की बात' विषयक कार्यशाला में जल संरक्षण के लिए पानी के व्यवसायीकरण का मामला जोरशोर से उठा। इसके अलावा चीड़ व कुरी प्रजाति के पेड़ों को पहाड़ों से समाप्त करने पर भी चर्चा की गई। विशेषज्ञों ने कहा कि भूगर्भीय जल के दोहन को कम कर ही पानी की समस्या से निजात दिलाई जा सकती है।

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महाविद्यालय सभागार में आयोजित कार्यशाला का शुभारंभ पद्मश्री डॉ. यशोधर मठपाल, पर्यावरणविद मनोहर सिंह मनराल तथा कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एके श्रीवास्तव ने संयुक्त रूप से किया। डॉ. यशोधर मठपाल ने कहा कि जल संरक्षण के लिए महात्मा गाधी के मितव्ययता सिद्धात को अपनाना होगा। कहा पानी के व्यवसायीकरण की नीति धरा को जल विहीन बनाने के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने पर्वतीय क्षेत्र के प्राचीन नौलों व पारंपरिक जलधाराओं के संरक्षण पर जोर दिया। पर्यावरणविद मनोहर सिंह मनराल ने कुरी व चीड़ प्रजाति को घटते जल स्तर का प्रमुख कारण बताया। कहा कि पर्यावरण संरक्षण क्षेत्र में गंभीरता से कार्य करने के लिए रोजगार के संसाधनों का होना बेहद जरूरी है। डॉ. एके श्रीवास्तव ने जल व जीवन चक्त्र की सहभागिता पर जोर दिया। कार्यशाला में जीबी पंत पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल के डॉ. जेसी कुनियाल, दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. पीसी तिवारी, डॉ. मोहन चंद्र तिवारी, केपीएस अधिकारी, गजेंद्र पाठक ने भी विचार रखे। संचालन डॉ. प्रेम प्रकाश व डॉ. नरेंद्र कुमार सिंह ने संयुक्त रूप से किया।

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विद्यार्थियों के प्रश्नों के दिए जवाब

कार्यशाला के द्वितीय सत्र में विशेषज्ञों ने पर्यावरण, जल संरक्षण आदि विषयों पर शोध छात्रों, कॉलेज विद्यार्थियों के प्रश्नों के जवाब देकर उनकी जिज्ञासा को शात किया। मुख्य रूप से जीबी पंत पर्यावरण शोध संस्थान कोसी के डॉ. संदीपन मुखर्जी, असम के रूपम बरुआ, मनोहर सिंह मनराल ने पूछे गए सवालों के जवाब दिए।

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पानी की कमी नहीं, बचाने को करने होंगे उपाय : डॉ. यशोधर

सवालों के जवाब में पद्मश्री डॉ. यशोधर मठपाल ने कहा उत्तराखंड में पानी की कमी नहीं है। मगर इसके लिए अपनी भूली बिसरी संस्कृति को पुनर्जीवित करना होगा। द्वाराहाट का उदाहरण देते हुए कहा कि मंदिरों के लिए प्रसिद्ध इस क्षेत्र के सभी मूर्तिविहीन मंदिरों में पुन: मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा करनी होगी। धार्मिक कार्य होने पर समाज नियमों का पालन करेगा। जिसका प्रभाव जल संरक्षण पर भी पड़ना स्वाभाविक है।

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ये रहे मौजूद

केसी भट्ट, बिशन सिंह बनेशी, डॉ. भरत उपाध्याय, डॉ. प्रकाश भट्ट, डॉ. उपासना शर्मा, डॉ. अमिता प्रकाश, डॉ. महेंद्र कुमार, डॉ. निशा आदि।


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