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बोली को ¨जदा रखना है तो घरों में भी हो कुमाऊंनी परिवेश

संवाद सहयोगी, अल्मोड़ा : कुमाऊंनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति द्वारा आयोजित दसवें

By JagranEdited By: Published: Sun, 11 Nov 2018 10:40 PM (IST)Updated: Sun, 11 Nov 2018 10:40 PM (IST)
बोली को ¨जदा रखना है तो घरों में भी हो कुमाऊंनी परिवेश
बोली को ¨जदा रखना है तो घरों में भी हो कुमाऊंनी परिवेश

संवाद सहयोगी, अल्मोड़ा :

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कुमाऊंनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति द्वारा आयोजित दसवें राष्ट्रीय कुमाऊंनी भाषा सम्मेलन के दूसरे दिन रचनाकारों व लेखकों ने विलुप्त हो रही कुमाऊंनी बोली पर ¨चता व्यक्त कर इसे संरक्षित न कर पाने के लिए प्रदेश सरकार को कोसा। कहा कि यदि अपनी बोली व संस्कृति को जीवंत रखना है तो हमें अपने घरों में भी कुमाऊंनी परिवेश व बोली को स्थान देना होगा।

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चित्र संख्या - 11एएलएम पी -14

कुमाऊंनी बोली से युवाओं का रुझान तेजी से समाप्त हो रहा है। युवा पाश्चात्य सांस्कृतिक को अपनाने के साथ ही बोलचाल में ¨हदी भाषा को अपना रहे हैं। वर्तमान पीढ़ी को कुमाऊंनी बोली व संस्कृति की ओर दोबारा आकर्षित करने के लिए हमें अपने घरों में भी कुमाऊंनी परिवेश व बोली को भी अपनाना होगा। सरकार को चाहिए की कुमाऊंनी संस्कृति से जुड़े सवाल भी प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाए, इससे युवा पीढ़ी भी इससे जाग्रत होगी।

-डॉ. हयात ¨सह रावत

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चित्र संख्या - 11एएलएम पी -15

यूनेस्को की हालिया रिपोर्ट में विश्व की तमाम प्राचीन बोली के विलुप्त होने की बात कही गयी है। इनमें कुमाऊंनी भी शामिल है। यह बोली हमारे घरों से गायब हो रही है। जब बोली ही नहीं होगी तो संस्कृति हमारे किस काम की। हमें अपनी बोली को ¨जदा रखने के लिए बच्चों को बचपन से ही प्रेरित करना होगा।

-डॉ. विपिन चंद्र शाह

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चित्र संख्या- 11एएलएम पी -16

कुमाउंनी बोली को दोबारा पुराने अस्तित्व में लाने में सोशल मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसके लिए हमें साहित्य को किताबों तक ही सीमित न रख इसे ई- मीडिया पर भी अपलोड करना चाहिए। हमें इस बोली को अपनाने के लिए अपने घरों में वातावरण भी बनाना होगा।

-डॉ. चंद्र प्रकाश फुलोरियास, प्राध्यापक, कुमाऊं विवि

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चित्र संख्या - 11एएलएम पी -17

कुमाऊंनी बोली को बढ़ावा देने के लिए हमने कुमाऊंनी में कई पुस्तकें लिखी। कुमाऊंनी बोली के विलुप्त होने में प्रदेश सरकार प्रमुख रूप से दोषी है। राज्य को बने 18 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन सरकार द्वारा राज्य की प्रमुख भाषाओं व संस्कृति के संरक्षण के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। सरकार को चाहिए कि वह राज्य की प्रमुख भाषाओं व संस्कृति के संरक्षण के लिए सार्थक पहल करे।

-गिरीश बिष्ट, दिल्ली के मेडिकल कॉलेज से रिटायर्ड


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