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मेहनत से खींची किस्मत की लकीर

बृजेश तिवारी, अल्मोड़ा जो सफर की शुरूआत करते हैं, वो मंजिल को पा ही लेते हैं। बसोल

By JagranEdited By: Published: Wed, 18 Jul 2018 11:05 PM (IST)Updated: Wed, 18 Jul 2018 11:05 PM (IST)
मेहनत से खींची किस्मत की लकीर
मेहनत से खींची किस्मत की लकीर

बृजेश तिवारी, अल्मोड़ा

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जो सफर की शुरूआत करते हैं, वो मंजिल को पा ही लेते हैं। बसोली विकास खंड के ताकुला निवासी प्रभाकर भाकुनी पर ये लाइनें सटीक बैठती हैं। प्रभाकर ने चलने भर का हौंसला किया और आज वह बेरोजगार युवाओं के लिए एक मिसाल बन गए हैं। अपनी मेहनत से उन्होंने माटी को सोना उगलने का माध्यम बना लिया है।

ताकुला निवासी प्रभाकर जोशी (49) वर्षो से रोजगार की तलाश में भटक रहे थे। ताकुला से पॉलीटेक्निक करने के बाद उन्होंने दिल्ली में प्राइवेट नौकरी भी की। लेकिन स्थाई नौकरी न मिलने के कारण वह काफी परेशान रहने लगे। इसके बाद उन्होंने गांव वापस आकर ताकुला में टाइपिंग इंस्टीट्यूट खोला। इस काम में भी उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिल सकी। वर्ष 2012 में उन्होंने गांव की बंजर हो रही जमीन पर पसीना बहाने का निर्णय लिया। भाकुनी ने कृषि विभाग के अधिकारियों से संपर्क किया और अपनी खेतों का निरीक्षण भी कराया। इसके बाद बहुद्देश्यीय जल संभरण परियोजना के तहत उनके खेत में कृषि विभाग ने पचास हजार लीटर क्षमता का सिंचाई मत्स्य पालन टैंक का निर्माण करया। भाकुनी ने मत्स्य पालन के साथ-साथ आय के दूसरे जरिये भी खेती में तलाशने शुरू कर दिये। उन्होंने पॉलीहाउस में सब्जियों, फूलों और फलों का उत्पादन भी शुरू कर दिया। लगभग चार पांच साल तक पसीना बहाने के बाद अब प्रभाकर पूरे इलाके के लिए एक नजीर बन गए हैं। भाकुनी ने बताया कि वह पॉलीहाउस में उग रही बेमौसमी सब्जियों से 45 हजार रुपये वार्षिक कमा लेते हैं। जबकि वह प्रतिवर्ष डेढ़ से दो लाख रुपये का मत्स्य पालन व फल उत्पादन करते हैं। इससे करीब 80 हजार रुपये की बचत हो जाती है। भाकुनी ने बताया कि पहले उनके खेतों में उनके परिवार के खाने के लिए तक अनाज पैदा नहीं होता था। अपनी मेहनत के बूते आर्थिक रूप से मजबूत होने के साथ ही अब उनकी सामाजिक स्थिति भी मजबूत हुई है। अब प्रभाकर पशुपालन में भी बेहतर कार्य कर रहे हैं।

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युवाओं को सीख दे रही भाकुनी की मेहनत

नौकरी की तलाश में बड़े महानगरों में भटक रहे युवाओं के लिए प्रभाकर की मेहनत सीख देने वाली है। भाकुनी कहते हैं कि पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि की अपार संभावनाएं हैं। बस थोड़ा मेहनत की जरूरत है। तभी बेरोजगारी की समस्या भी दूर होगी और पलायन भी रुक सकेगा।

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कई पुरस्कार भी प्राप्त कर चुके हैं

प्रभाकर को राज्यपाल केके पॉल ने उन्हें प्रगतिशील किसान का पुरस्कार प्रदान किया है। पिछले साल महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री रेखा आर्या भी मत्स्य पालन पर सम्मानित किया था। इसके अलावा प्रभाकर आत्मा, पशुपालन, उद्यान विभाग से भी पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।

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ताकुला के प्रभाकर भाकुनी की तरह ही कृषि विभाग खेती में रूचि रखने वाले लोगों को हरसंभव मदद दे रहा है। अन्य लोगों को भी इसी प्रकार खेती को अपनी आजीविका का आधार बनाना चाहिए।

-प्रियंका सिंह, मुख्य कृषि अधिकारी, अल्मोड़ा


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