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नहीं रहे प्रख्यात पर्यावरणविद् एवं वन प्रेमी डा. जीवन सिंह मेहता

अल्मोड़ा में प्रख्यात पर्यावरणविद् एवं राज्य वन अनुसंधान सलाहकार समिति सदस्य डा. जीवन सिंह मेहता नहीं रहे।

By JagranEdited By: Published: Wed, 21 Apr 2021 11:24 PM (IST)Updated: Wed, 21 Apr 2021 11:24 PM (IST)
नहीं रहे प्रख्यात पर्यावरणविद् एवं वन प्रेमी डा. जीवन सिंह मेहता
नहीं रहे प्रख्यात पर्यावरणविद् एवं वन प्रेमी डा. जीवन सिंह मेहता

संस, अल्मोड़ा: प्रख्यात पर्यावरणविद् एवं राज्य वन अनुसंधान सलाहकार समिति सदस्य डा. जीवन सिंह मेहता नहीं रहे। देश के विभिन्न राज्यों की वानिकी विकास को अध्ययन व कई शोध पुस्तिकाएं लिख चुके डा. मेहता उत्तर प्रदेश के दौर में डीएफओ रहे। वनों को बचाने तथा आबोहवा के अनुरूप स्थानीय बहुपयोगी पौधों की प्रजातियों से जंगलात विकसित करने वाले 86 वर्षीय पर्यावरण एवं वृक्ष प्रेमी ने नोएडा में अपनी पुत्री अदिति अधिकारी मेहता के घर पर अंतिम सांस ली। उन्होंने कुछ माह पूर्व ही विभाग प्रमुख को उत्तराखंड में वन पंचायतों की मजबूती व समुचित अधिकार दिए जाने की पुरजोर वकालत भी की थी। नगर के पोखरखोली निवासी डा. मेहता के निधन से जल, जंगल व पर्यावरण से जुड़े संगठनों व पर्यावरणप्रेमियों ने गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है।

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पर्यावरणविद् डा. जीवन सिंह मेहता वन विभाग से सेवानिवृत्त होने के बाद भी उत्तराखंड में वानिकी विकास व प्रबंधन के लिए जूझते रहे। गहन शोध व अध्ययन के जरिये घटती हरियाली के कारण तलाश भावी चुनौतियों से निपटने को वह शासन स्तर पर अपनी रिपोर्ट से आगाह करते रहे। पूर्व में उत्तर प्रदेश और वर्तमान में वह उत्तराखंड वन अनुसंधान सलाहकार समिति के सदस्य रहते उन्होंने वनाग्नि से निपटने को ग्रामीणों को हकहकूक व वन पंचायतों की मजबूती को पुरजोर वकालत भी की।

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माउंटेन यूनिवर्सिटी की स्थापना ही सच्ची श्रद्धांजलि: पीसी तिवारी

अल्मोड़ा: जल जंगल व चिपको जैसे आंदोलन में हिस्सा ले चुके उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी ने कहा कि माउंटेनोलॉजी शब्द देने वाले डा. जीवन सिंह मेहता 60 के दशक में स्व. श्री मोहन उप्रेती व साथियों के लोक कलाकार संघ में सक्त्रिय रहे। वह धुन के पक्के, फक्कड़, व सड़क से लेकर तमाम मंचों, कार्यशालाओं में जनपक्षीय मुद्दों पर बात करते थे। वह उत्तरप्रदेश के दौर में वन विज्ञान, वन संवर्धन के प्रमुख भी रहे। डा. मेहता जंगल एवं समाज के रिश्तों, सेहत एवं तासीर को बखूबी समझते थे। वह उत्तराखंड में प्राकृतिक संसाधनों, जल जंगल जमीन पर जन अधिकारों तथा पर्यावरणीय मुद्दों पर हमेशा संघर्ष करते रहे। वह लोकसभा व विधान सभा चुनावों के दौरान अपना घोषणा पत्र लेकर बाजार में बांटने के लिए भी प्रसिद्ध रहे। डा. मेहता ने ही माउंटेनोलॉजी शब्द दिया था। जिसकी व्यापकता गाव की पारिस्थितिकी में निहित है। पीसी तिवारी ने कहा कि उत्तराखंड में माउंटेनोलॉजी विषय की एक माउंटेन यूनिवर्सिटी हो जिसमें उत्तराखंड के किसान व लोक विधा में निपुण व्यक्ति प्रोफेसर हो। यही डा. मेहता को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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