अबकी रावण परिवार नहीं, अकेले लंकापति का पुतला होगा दहन
अल्मोड़ा में इस बार रावण परिवार का नहीं सिर्फ लंकापति का होगा पुतला दहन
फोटो : 18 एएलएम पी 8 व पी 9 संस, अल्मोड़ा : नृत्य सम्राट उदयशंकर की प्रयोगशाला एवं सांस्कृतिक लिहाज से उर्वर अल्मोड़ा नगरी की रामलीला ही नहीं दशहरा मनान की परंपरा भी उत्तर भारत में अनूठी है। जानकारों की मानें तो ब्रितानी दौर में शुरू रावण परिवार के पुतलों की संस्कृति आजाद भारत में नई पहचान लेकर उभरी। 70 के दशक में रंगकर्मियों व कलाप्रेमियों में सबसे आकर्षक पुतला बनाने की जो स्वस्थ प्रतिस्पद्र्धा शुरू हुई उसने विदेशी नागरिकों को भी अपना कायल बना लिया। 90 के दौर से रावण परिवार के 28 से 30 प्रमुख पात्रों के पुतलों ने नगर को विशिष्ट बना दिया। मगर अबकी वैश्विक महासंकट ने इस परंपरा को बदल दिया। इस बार केवल लंकापति रावण का ही पुतला जलाया जाएगा।
अल्मोड़ा में रामलीला मंचन का इतिहास तो बहुत पुराना है। मगर पुतला संस्कृति की शुरूआत 1925 के बाद से ही मानी जाती है। वरिष्ठ संस्कृति कर्मी त्रिभुवन गिरि जी महाराज कहते हैं कि 1936 में जौहरी मोहल्ले में कुंभकर्ण का पुतला बनाए जाने का जिक्र मिलता है। रावण का पुतला इससे काफी पहले से बनाया जाने लगा था। तब नंदादेवी व लाला बाजार के रंगकर्मी मिलकर रावण का पुतला बनाते थे, जो आज भी कायम है।
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ऐसे शुरू हुई प्रतिस्पद्र्धा
1974 में पलटन व थाना बाजार वालों ने मेघनाद का पुतला बनाकर उतारा। 1982 से 83 के बीच कुछ और मोहल्ले व रामलीला कमेटियां पुतले बनाने लगीं। 1990 से तो नगर में रावण परिवार के 28 से ज्यादा पुतले बनाए जाने लगे।
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ये हैं प्रमुख पुतले
रावण के साथ ही, अहिरावण, महिरावण, अक्षय कुमार, कुंभकर्ण, मेघनाद, ताड़का, सुबाहु, मारीच, खर व दूषण, अतिकाय, नारांतक, देवांतक, मकराक्ष, कालकासुर, त्रिसरा, लवणासुर, ज्वालासुर आदि।
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विदेशी भी नहीं दिखेंगे
दशहरा महोत्सव को कैमरे में कैद करने के लिए देश ही नहीं विदेशी नागरिक भी पहुंचते थे। मगर कोरोनाकाल में इस बार सादगी से पर्व मनाया जाएगा। खास बात कि महोत्सव में हिंदू मुस्लिम सभी शामिल होते हैं।
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'अल्मोड़ा में पुतले नहीं बल्कि कलात्मक तरीके से बेहद सुंदर बनाए जाते हैं। रंगरूप, कदकाठी व उनके चरित्र के अनुरूप चेहरा रौबदार और आकर्षक बनाया जाता है। यही नगर के पुतलों की विशेषता है जो अन्य जगहों पर कम ही देखने को मिलती है। इस बार कोरोना के कारण सादगी के साथ केवल लंकापति का पुतला ही घुमाया जाएगा। टैक्सी स्टेंड के पास ही दहन भी किए जाने का कार्यक्रम है।
- त्रिभुवनगिरि जी महाराज, वरिष्ठ संस्कृति कर्मी' ====
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