कोरोना से पहले पेट की आग बुझाने की जंग
कोरोना संक्रमण के चलते भले ही देश भर में लाखों करोड़ों लोग लॉकडाउन का पालन कर रहे हों लेकिन पेट की आग ने मजदूरों को घर से निकले पर मजबूर कर दिया है।
संवाद सहयोगी, अल्मोड़ा : कोरोना संक्रमण के चलते भले ही देश भर में लाखों करोड़ों लोग इससे बचने के लिए अपने अपने घरों में कैद हो गए हों। लेकिन इसके लिए लागू किए गए लॉकडाउन की सबसे अधिक मार दैनिक मजदूरी करने वाले श्रमिकों पर पड़ी है। महानगरों के बाद अब पर्वतीय क्षेत्रों में काम कर रहे मजदूर भी अब कोरोना को छोड़ अपने पेट की आग बुझाने की जुगत में लग रहे हैं और पैदल ही कई किमी लंबे सफर पर अपने परिवारों के साथ निकल गए हैं।
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश, बिहार समेत अनेक राज्यों के हजारों श्रमिक काम करते हैं। पिछले कुछ दिनों से यह स्थिति सामान्य होने का इंतजार कर रहे थे। लेकिन अब इनके सब्र का बांध भी टूट गया है। रोजी रोटी और रहने की कोई व्यवस्था न होने के कारण अब वह पैदल ही अपने गंतव्य की ओर रवाना होने लगे हैं। सोमेश्वर को थराली क्षेत्र के कई मजदूर अपने सिर पर बोझा लादे पैदल अल्मोड़ा तक पहुंच गए। जिले की भिकियासैंण तहसील से भी काम करने वाले कई श्रमिक पैदल पीलीभीत के लिए रवाना हो गए हैं। हालांकि प्रशासन उन्हें रोकने और सभी सुविधाएं देने के वायदे कर रहा है। लेकिन श्रमिक घर पहुंचने की जिद पर अड़े हुए हैं।
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जीजीआइसी में की गई है रहने की व्यवस्था
अल्मोड़ा: अन्य राज्यों के श्रमिकों और लॉकडाउन में फंसे यात्रियों के लिए जिला प्रशासन ने अब जीजीआइसी में रहने का प्रबंध किया है। अधिकारियों का कहना है कि किसी भी हर प्रदेश के लोगों फंसे हुए लोगों के रहने और खाने की व्यवस्था यहां की गई है। इसलिए वह लॉकडाउन के नियमों का पूरा पूरा पालन करें।