कोशिशें हजार, फिर भी नदियां बेजार
संवाद सहयोगी, अल्मोड़ा : पहाड़ की जीवनदायिनी नदियों को बचने के तमाम प्रयासों के बाद भी नदियों का जलस्त
संवाद सहयोगी, अल्मोड़ा : पहाड़ की जीवनदायिनी नदियों को बचने के तमाम प्रयासों के बाद भी नदियों का जलस्तर बढ़ाने की दिशा में कोई कारगर पहल नहीं हो पा रही है। जिस कारण जीवनदायिनी नदियां जहां लगातार सूख रही हैं। वहीं मशीनरी द्वारा किए जा रहे प्रयासों पर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
अल्मोड़ा जिले की बात करें तो यहां रामगंगा, कोसी, गगास, विनोद समेत अन्य अनेक छोटी बड़ी नदियां यहां के लाखों लोगों को जीवन देती आई हैं। लेकिन मानवीय चूक के कारण इन नदियों का जलस्तर लगातार कम होता जा रहा है। अकेले जीवनदायिनी कोसी नदी की बात करें तो पिछले तीन सालों में नदी के जलस्तर में काफी अधिक गिरावट आई है। बीते अप्रैल महीने की बात करें तो कोसी नदी का जल स्तर केवल 25 क्यूसेक तक सिमट कर रह गया था। जबकि साल 2018 में कोसी का जलस्तर 64 और 2017 में यह आंकड़ा 26.75 क्यूसेक के आसपास था। यही हाल कमोबेश जिले की रामगंगा और अन्य नदियों का भी है। उल्लेखनीय है कि इन्हीं नदियों से लोगों को पेयजल और सिचाई जैसी सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सैंकड़ों पेयजल और योजनाओं का निर्माण भी किया गया है, लेकिन नदियों का जल स्तर कम होने के कारण अब इनमें से अधिकांश योजनाएं महज सफेद हाथी साबित हो रही हैं।
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जंगलों की आग भी बढ़ा रही है परेशानियां
गर्मियों के सीजन में जंगलों में लगने वाली आग भी नदियों के अस्तित्व के लिए खतरा साबित हो रही हैं। पहाड़ की अधिकांश नदियों की बात करें तो यह नदियां गैर हिमानी हैं जो अलग अलग स्त्रोतों और जल धाराओं से होकर निकलती हैं। ऐसे में पिछले कई सालों से जंगलों में लग रही आग अब इन नदियों के लिए खतरनाक साबित हो रही हैं। आग के कारण अधिकांश जल स्त्रोत और धाराएं सूख चुकी हैं। जिसका असर सीधे इन नदियों पर पड़ रहा है।
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पुनर्जनन अभियानों का भी नहीं दिख रहा असर
नदियों के अस्तित्व को बचाने के लिए हालांकि प्रदेश में कई अभियान चलाए जा रहे हैं। जिसके लिए आंख बंद कर पैसा भी खर्च किया जा रहा है। लेकिन इसके बाद भी नदियों के जलस्तर में कोई सुधार नहीं आ पा रहा है। ऐसे में अब जहां इन अभियानों पर सवाल उठने खड़े हो गए हैं। वहीं नदियों का गिरता जलस्तर भविष्य के खतरे के भी संकेत दे रहा है।