सोमनाथ मेले में बच्चों ने बिखेरे लोक संस्कृति के रंग
संवाद सहयोगी चौखुटिया तल्ला गेवाड़ की रंगीली में बसे धरती मासी कस्बे में सात दिनी पौराणिक
संवाद सहयोगी, चौखुटिया: तल्ला गेवाड़ की रंगीली में बसे धरती मासी कस्बे में सात दिनी पौराणिक व ऐतिहासिक सोमनाथ मेला जारी है। पंडाल में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम मची है। बुधवार को चौथे दिन स्कूली बच्चों ने लोक संस्कृति के विविध रंग बिखेरे। जो दर्शकों द्वारा काफी सराहे गए। इससे पूर्व सुबह मेले में भवानी राम एंड पार्टी की पारंपरिक वाद्य यंत्र हुड़के की थाप पर भगनौल नृत्य गायन प्रस्तुति ने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।
मंच पर सांस्कृतिक आयोजन की शुरूआत सरस्वती शिशु मंदिर के बच्चों की बंदना व स्वागत गीत नृत्य प्रस्तुति के साथ हुई। इसके बाद बच्चों की-मासी में सोमनाथ कौतिक लागी रौ., हाय काकड़ी झील मा., व घम घमाघम हुड़की बाजी.जैसे गीत-नृत्य प्रस्तुतियों ने खूब धमाल मचा दिया। इस दौरान एकल गीतों की भी धूम रही। पर्यावरण सुरक्षा पर आधारित नाटक ने खूब वाहवाही लूटी। रामगंगा वैली स्कूल के बच्चों ने मोहक कार्यक्रम पेश किए। संचालन गोपाल मासीवाल व तारा दत्त शर्मा ने किया।
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पूर्व विधायक मदन बिष्ट ने किया कार्यक्रम शुभारंभ
इससे पूर्व मंच पर कार्यक्रम का उद्घाटन पूर्व विधायक महेश नेगी ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। उन्होंने कुमाऊं की धरती में आयोजित होने वाले मेलों को यहां की लोक संस्कृति का हिस्सा बताया। कहा कि आज के बदलते परिवेश में पौराणिक मेलों को जीवंत बनाए रखना चुनौती बन गई है, लेकिन फिर भी मेलों का पौराणिक स्वरूप आज भी देखने को मिल रहा है। इन्हें और आकर्षक बनाने की दिशा में सभी को मिलकर पहल करनी होगी। अन्य वक्ताओं ने सोमनाथ मेले को यहां की धरोहर बताया।
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ये लोग थे कार्यक्रम में मौजूद
मेला समिति के अध्यक्ष शंकर सिंह बिष्ट, ,ाीमानंद मासीवाल, दिनेश चंद्र मासीवाल, खीमानंद शर्मा, जीवन लाल वर्मा, मोहन सिंह मेहरा, गोपाल दत्त मासीवाल, गजेंद्र सिंह बिष्ट, अमर सिंह रावत, चंद्र प्रकाश, प्रेमा देवतला, बालम सिंह नेगी, विजय गोरखा, हेमचंद्र उपाध्याय, बबलू रावत, सुभाष बिष्ट, हरीश मासीवाल व राम स्वरूप मासीवाल आदि।
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मेले में लोगों ने जमकर की खरीदारी
सोमनाथ मेले को पूर्व से व्यवसायिक मेला भी कहा जाता है। यहां मेले में दूर दूर से व्यापारी सामान बेचने आते हैं। सड़क किनारे लगे दुकानों से मेलार्थियों ने जमकर खरीददारी की, जो देर शाम तक चलती रही। इस दौरान मेलार्थियों ने स्थान स्थान पर बन रही ताजी जलेबी का भी स्वाद चखा।
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एक जमाने में कृषि बैलों की होती भी खरीदारी
सदियों से चले आ रहे सोमनाथ मेले को एक समय में व्यवसायिक मेला भी कहा जाता था, तब यह मेला पूरे 12 दिन तक चलता था। मेले में दूर दूर से व्यापारी सामान बेचने पहुंचते थे। खासकर मेले में कृषि बैलों की खूब खरीददारी होती थी। तब पहाड़ की खेती बैलों पर आधारित थी, लेकिन धीरे धीरे बदलते जीवन शैली केसाथ ही बैलों के स्थान पर ट्रैक्टरों का प्रचलन बढ़ गया तथा अब गांवों में गिने चुने बैल रह गए हैं।