संरक्षित खेती से होगा आजीविका में सुधार
संवाद सहयोगी अल्मोड़ा ग्रामीण क्षेत्रों में खेती की अपार संभावनाएं हैं। किसानों को अगर संरि
संवाद सहयोगी, अल्मोड़ा : ग्रामीण क्षेत्रों में खेती की अपार संभावनाएं हैं। किसानों को अगर संरक्षित खेती के प्रति जरूरी प्रशिक्षण दिया जाए तो यह उनकी आजीविका का बेहतर माध्यम साबित हो सकता है। इसके अलावा किसानों को स्थानीय उत्पादों के प्रयोग के प्रति भी जागरूक करना होगा। ताकि उनकी आय में वृद्धि का सपना साकार किया जा सके।
यह बात राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान कोसी में राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन व इन हाउस परियोजना के तहत आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यह बात मुख्य विकास अधिकारी मनुज गोयल ने कही। उन्होंने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों की संभावनाओं का साकार रूप देने के लिए संस्थान जो भी प्रयास किए जा रहे वह काफी सराहनीय हैं और इनका लाभ अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाया जाना चाहिए। इस दौरान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बारसी सुन्द्रियाल ने किसानों को संरक्षित खेती से जुड़ी जानकारियां दी। उन्होंने कहा कि संरक्षित खेती में किसान मौसमी और बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन कर अपनी आजीविका में सुधार कर सकते हैं। सुन्द्रियाल ने कहा कि वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के कारण समय से वर्षा न होने और अन्य समस्याओं की वजह से परंपरागत तरीके से होने वाली सब्जियों का उत्पादन कम हो रहा है। उन्होंने कहा है कि ऐसे में पॉलीहाउस में खेती फायदेमंद साबित हो सकती है। कार्यक्रम को नोडल अधिकारी किरीट कुमार, वीपीकेएएस के डॉ. गणेश चौधरी, मटेला के डॉ. शिव दयाल, डॉ. हर्षित पंत ने भी संबोधित किया। इस दौरान मुख्य विकास अधिकारी ने संस्थान में चीड़ की पत्तियों से बनाए जा रहे उत्पादों का भी निरीक्षण किया और प्रयासों की सराहना भी की। कार्यक्रम में 11 गांवों के 29 प्रतिभागियों ने भाग लिया। इस मौके पर डॉ. डीएस चौहान, डीएस बिष्ट, महिला हाट के राजेंद्र कांडपाल, दीप्ति भोजक, मनीषा पिपोली, मुकेश देवराड़ी, दीपा बिष्ट समेत अनेक लोग मौजूद रहे।
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