हाथों के हुनर से गरीबी से लड़ने का जज्बा
दीप सिंह बोरा, रानीखेत : हुनरमंद हाथों को रोजगार देकर एक मुहिम ने पहाड़ के अंतिम गांव में स्वरोजगार
दीप सिंह बोरा, रानीखेत : हुनरमंद हाथों को रोजगार देकर एक मुहिम ने पहाड़ के अंतिम गांव में स्वरोजगार की जो पटकथा लिखी, वह गरीबी उन्मूलन में खासा मददगार बनने जा रही। वजह, जिस बहुपयोगी रिंगाल को लोग भूल चुके हैं, वह देसी-विदेशी सैलानियों की न केवल पसंद बन गया, बल्कि ग्रामीण महिलाओं की आर्थिकी सुधार का जरिया भी। हस्तशिल्प विकास के बहाने पहाड़ के रिंगाल से बने साजो सामान की धाक जहां महानगरों तक पहुंच गई है, वहीं अन्य पर्वतीय जिलों में भी इसे स्वरोजगार के रूप में अपनाने को मुहिम चलाई जा रही है।
बागेश्वर जनपद का दुर्गम लोहारखेत, गरीबी उन्मूलन का पाठ पढ़ा रहा है। करीब 13 वर्ष पूर्व पर्यावरण प्रेमी प्रकाश जोशी ने वैज्ञानिक डॉ. मंजू सुंदरियाल के साथ कुछ ग्रामीणों को साथ लेकर बहुपयोगी ¨रगाल (पर्वतीय बांस प्रजाति) से पारंपरिक आकर्षक उत्पाद बनाने के लिए प्रेरित किया, तब किसी को यकीन नहीं था कि यह उनकी आर्थिक उन्नति का आधार बन जाएगा। वर्तमान में यसर्क के जिला समन्वयक प्रकाश जोशी ने तब गहन अध्ययन कर 'देव रिंगाल' की खूबी को जाना।
इस रिंगाल की टहनी को छिल कर अंग्रेजी हैट, फूलदान, सब्जी, फल व प्रसाद की टोकरी, कुर्सी व चटाई आदि का निर्माण शुरू कराया। आज लोहारखेत व आसपास के गांवों की 278 महिलाएं रिंगाल के उत्पाद तैयार कर तीन से चार हजार रुपये प्रतिमाह अर्जित कर अपने बूते घर चला रहीं हैं। वहीं पलायन छोड़ घर पर ही स्वरोजगार की प्रेरणा भी दे रही।
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ऐसे चढ़ी परवान चढ़ी मुहिम
तत्कालीन फॉरेस्ट एंड रूलर डेवलेपमेंट कमिश्नर तथा राज्य के मुख्य सचिव रहे डॉ. आरएस टोलिया ने पर्यावरण प्रेमी प्रकाश जोशी को कुमाऊं में सर्वे कार्य सौंपा। बागेश्वर जिले के 139 गांवों का दौरा कर प्रकाश ने झूम, थाम व देव ¨रलाग की गुणवत्ता को परखा। देव ¨रगाल सबसे गुणकारी पाया गया जो उत्तराखंड में केवल कपकोट ब्लॉक (बागेश्वर) में ही पाया जाता है। इसमें कीड़ा भी नहीं लगता है। तब अंबेडकर हस्तशिल्प विकास योजना के तहत केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय ने परियोजना को हरी झंडी दे दी। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (एनआइएफटी) के प्रशिक्षकों ने लोहारखेत की 278 महिलाओं को दक्ष बनाया।
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सैलानियों की डिमांड पर पौधरोपण
देव ¨रगाल से बने स्वदेशी उत्पादकों की बढ़ती डिमांड के मद्देनजर खग्यार (रानीखेत) निवासी प्रकाश जोशी ने वर्ष 2006-07 में लोहारखेत में 11 हजार पौध लगाए। आज ये पौधे आजीविका का जरिया बन गए हैं। प्रकाश का लक्ष्य इस वर्ष अन्य जिलों में भी रिंगाल से बने उत्पादों से ग्रामीणों को जोड़ गरीबी उन्मूलन को उन्हें स्वरोजगार से जोड़ना है।