वसंत पंचमी : आज होगी वाग्देवी की पूजा, मांगलिक कार्यों के लिए अपुच्छ मुहूर्त
सनातन धर्म में माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को वसंत पंचमी मनाने का शास्त्रीय विधान है। पंचमी तिथि शनिवार सुबह 8.55 बजे लग गई जो रविवार को सुबह दस बजे तक रहेगी।
वाराणसी,जेएनएन। सनातन धर्म में माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को वसंत पंचमी मनाने का शास्त्रीय विधान है। पंचमी तिथि शनिवार सुबह 8.55 बजे लग गई जो रविवार को सुबह दस बजे तक रहेगी। इस लिहाज से वसंत पंचमी पर्व दस फरवरी को मनाया जाएगा।
शास्त्रों में वसंत पंचमी का बड़ा महत्व है। यह पंडित पंचांग बिना भी कोई शुभ कार्य करने के लिए स्वयं सिद्ध मुहूर्त होता है। प्रयागराज कुंभ के छह प्रमुख स्नानों में चौथा वसंत पंचमी प्रमुख माना जाता है। पर्व विशेष पर तीसरा प्रमुख शाही स्नान होता है। काशी में भी इस पर्व पर गंगा स्नान का महत्व है।
वागेश्वरी का पूजन
इस दिन सरस्वती पूजन का विधान है। तिथि विशेष पर विद्यार्थियों को माता सरस्वती का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। मां सरस्वती वाणी, ज्ञान-विज्ञान, विवेक, शिक्षा की देवी हैं। माता सरस्वती का पूजन, वंदन-अभिनंदन से माता की विशेष अनुकंपा प्राप्त होती है।
मान्यता वशीकरण देवी की
माता सरस्वती की तंत्र शास्त्र में वशीकरण की देवी रूप में मान्यता है। सामाजिक क्षेत्र में जिनके लिए अनबन का माहौल, लोक प्रियता की इच्छा या स्वभाव में उग्रता हो तो देवी की आराधना से आशातीत लाभ मिलता है। काशी में देवी वागेश्वरी देवी के दर्शन का भी विधान है।
सुखद जीवन का रतिकाम महोत्सव
वसंत पंचमी पर रतिकाम महोत्सव मनाने की परंपरा है। इस महोत्सव को मनाने से गृहस्थ जीवन में कष्टों से मुक्ति मिलती है। दाम्प्त्य जीवन उत्तम व्यतीत होता है।
ऋतुपरक त्योहार
वसंत पंचमी का त्योहार ऋतुपरक है। कहा गया है 'मधु माधव वसंत: स्यात' अर्थात वसंत, चैत्र व वैशाख हैं तो फिर वसंत पंचमी शिशिर ऋतु में क्यों। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि 'ऋतु मास कुसुमाकर ' यानी ऋतुओं में वसंत ऋतु मैं स्वयं हूं। वास्तव में वसंत को ऋतुओं का राजा माना जाता है। जिस तरह किसी राजा के आगमन से पूर्व ही उनके स्नेही स्वागत की तैयारी करते हैं। वैसे ही ऋतुराज के स्वागत को प्रकृति देवी, स्नेही पवन और कोकिलादि 40 दिन पहले से ही सुसज्जित होने लगती हैं। इसके लक्षण वसंत पंचमी से दिखने लगते हैं। वन-उपवन में प्रकृति की अनुपम छटा विकसित होने लगती है। किसान खेतों से गेहूं की बाली ले आता है। स्नानादि कर घृत-मिष्ठान मिलाकर पवित्र हो अग्नि प्रज्ज्वलित कर हवन करते हैं। शेष अन्न को अपने इष्ट देव कुलदेव को अर्पित करते हैं।