विश्व नगर दिवस : धर्म-संस्कृति और अध्यात्म की नगरी काशी का अमर वैभव
काशी में साधन- संसाधन के लिहाज से कुछ बदला लेकिन नहीं बदली तो उसकी धार्मिकता, संस्कृति प्रियता, थातियों को सहेजे रखने का अंदाज, जिंदगी का खास रंग-ढंग है।
वाराणसी (जेएनएन) । धर्म नगरी काशी ने हर दौर में देश-दुनिया को दिशा दी तो बदलते समय के हिसाब से खुद को तब्दील भी किया। इसमें साधन- संसाधन के लिहाज से बहुत कुछ बदला लेकिन नहीं बदली तो उसकी धार्मिकता, संस्कृति प्रियता, थातियों को सहेजे रखने का अंदाज, जिंदगी जीने का अपना खास रंग-ढंग और मन-मिजाज। इसे बरकरार रखते हुए धरोहरों का शहर पल-पल बदल रहा है। अपनी थाती को छाती से लगाए आधुनिकता की राह पर चल रहा है। बस, कुछ महीनों का इंतजार और, आप इस शहर में निकलने के साथ 'मेट्रो सिटीज' घूम आने का सपना भूल जाएंगे।
चार हजार साल पुराने शहर का समृद्ध हर प्रहर : गंगा किनारे बसा यह शहर प्रहर की तरह खुद को ढालना जानता है। पुराविज्ञानियों ने भले इस नगर की बसावट को प्राप्त प्रमाणों के आधार पर लगभग चार हजार वर्ष पुराना ही पाया लेकिन आस्थावानों का विश्वास यही है कि काशीपुराधिपति का आनंद कानन ही बदलते-बदलते यहां तक आया।
निखार पर सिटी आफ म्यूजिक की थाती : बाबा दरबार का विस्तार किया जा रहा तो श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर से गंगा तट तक कारीडोर का निर्माण किया जा रहा। घाटों की रंगत बदल रही और मान महल में देश का पहला वर्चुअल म्यूजियम बनाकर एक जगह पर बनारस महसूसने का इंतजाम किया जा रहा। डोमरी में हेलीपैड बनाया जा रहा जिससे सैलानी आसमान से गंगा व घाटों का वैभव देख पाएंगे। बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली सारनाथ नए सिरे से संवारने का खाका खींचा जा रहा है। जल्द बुद्ध लाइट ऐंड साउंड शो के जरिए जीवंत हो जाएंगे। अन्य धरोहरों की भी फसाड लाइटों से साज सज्जा की जा चुकी है। इन सबका ही असर है कि इस शहर को अब तक यूनेस्को से धरोहर नगरी का दर्जा भले न मिल पाया लेकिन दो साल पहले सिटी आफ म्यूजिक का रूतबा पा लिया।
छोड़े गुमटी स्टाल, माल मालामाल : पर्व-उत्सवों और मेला ठेला के साथ ही फक्कड़ी मिजाज के लिए पहचाना जाने वाला नगर आज माल की डगर पर है। इससे ही लिविंग स्टैंडर्ड में आए बदलाव का आकलन किया जा सकता है। देश- विदेश का कौन सा ब्रांड होगा जिनके शहर में शोरूम न हों और खरीदारी बूम पर न हो। इससे प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। वास्तव में हाल के वर्षों में विभिन्न योजनाओं के तहत उद्योग-धंधों के लिए बैंकों की राह आसान होने से यह आसमान मुट्ठी में आ रहा है। यह साक्षरता की दर और शिक्षितों की संख्या भी बढ़ा रहा है। शैक्षिक उपलब्धियों का अंदाजा इससे भी लगा सकते हैं कि सेंसस 2001 में जहां बनारस की साक्षरता दर 66.12 थी तो 2011 में 75.60 पर आ गई।
महज पांच साल में बदला हाल : बहुत दूर नहीं सिर्फ पांच साल पहले तक जाएं तो इस शहर को क्या कुछ नहीं मिला, इनमें कुछ जमीन पर आ चुका है तो कई अगले साल तक आकार ले लेगा। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात के साथ मूलभूत सुविधाओं से जुड़े तमाम प्रोजेक्ट शामिल हैं। हालांकि सुरक्षा व संरक्षा के लिहाज से अभी प्रयास की दरकार है। यातायात, अतिक्रमण और सफाई नगर विकास की राह में आड़े आ रहे हैं। प्रशासनिक समन्वय व सिविक सेंस विकसित कर से इसे दूर कर सकते हैं।
हाल के वर्षों में मिली सौगात : ट्रेड फैसीलिटेशन सेंटर, रिंग रोड, फोर लेन हवाई अड्डा रोड, लालबहादुर शास्त्री स्मृति संग्रहालय, रामनगर गंगा पुल, वरुणा पर पुल, मंडुआडीह आरओबी, सुंदरपुर फ्लाई ओवर, पीएनजी पाइप लाइन, हरिश्चंद्र घाट पर गैस से शवदाह, मंडुआडीह में माडल रेलवे स्टेशन, राजातालाब में पेरिशेबल कार्गो। शहरी 24 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, एक दर्जन हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर, टाटा का कैंसर अस्पताल, बीएचयू ट्रामा सेंटर, बाल रोग विभाग का नया भवन, क्षेत्रीय नेत्र संस्थान।
जल्द बनेगी बात : रूद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर, दीनदयाल कन्वेंशन सेंटर, पिंडरा कन्वेंशन सेंटर, सारनाथ लाइट एंड साउंड, मान मंदिर वर्चुअल म्यूजियम, एसटीपी, मल्टी मॉड टर्मिनल, रामनगर बंदरगाह, हवाई अड्डा विस्तार, बाबा दरबार विस्तार, कारीडोर। ईएसआइ हास्पिटल सुपर स्पेशिलिटी, बीएचयू में टाटा कैंसर सेंटर, शताब्दी सुपर स्पेशिएलिटी काम्प्लेक्स, बीएचयू व महिला अस्पताल एमसीएच विंग, बीएचयू आइएमएस को एम्स जैसी सुविधा। रेल ट्रैक का दोहरीकरण व विद्युतीकरण, कैंट- सिटी व काशी स्टेशन का विस्तार।