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    World Stroke Day : ब्रेन स्ट्रोक का आयुर्वेद में इलाज, चिकित्सा का प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख

    मस्तिष्क में मौजूद सेल्स की जरूरत को पूरा करने के लिए हृदय से ब्रेन तक लगातार रक्त पहुंचता रहता है। जब रक्त की आपूर्ति में किसी कारण बाधा आती है तो इससे आक्सीजन की आपूर्ति रुक जाती है और मस्तिष्क की कोशिकाएं मृत होने लगती हैं।

    By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Thu, 29 Oct 2020 09:51 AM (IST)
    मस्तिष्क में मौजूद सेल्स की जरूरत को पूरा करने के लिए हृदय से ब्रेन तक लगातार रक्त पहुंचता रहता है।

    वाराणसी, जेएनएन। मस्तिष्क में मौजूद सेल्स की जरूरत को पूरा करने के लिए हृदय से ब्रेन तक लगातार रक्त पहुंचता रहता है। जब रक्त की आपूर्ति में किसी कारण बाधा आती है, तो इससे आक्सीजन की आपूर्ति रुक जाती है और मस्तिष्क की कोशिकाएं मृत होने लगती हैं। परिणाम स्वरूप ब्रेन स्ट्रोक हो जाता है। यह कोई नई बीमारी नहीं है। आयुर्वेद में हजारों साल पहले ही इस बीमारी का वर्णन चरक संहित व सुश्रुत संहिता जैसे ग्रंथों में किया गया है।

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    राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय-चौकाघाट स्थित कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य डा. अजय कुमार के मुताबिक आयुर्वेद ग्रंथों में एकांग वात, पक्षवध, सर्वांगघात, अधरांगघात, अर्दित आदि नामों से ब्रेन स्ट्रोक के विविध रूपों का वर्णन किया गया है। शरीर के आधे या पूरे भाग अथवा किसी अंग विशेष की चेतना या क्रिया का समाप्त होना ही पक्षाघात कहलाता है। पक्ष का अर्थ होता है अंग एवं घात का अर्थ होता है नाश या नष्ट होना। यानी शरीर के किसी अंग का घात होना या उसकी प्राकृतिक क्रिया का नष्ट होना पक्षाघात है। माडर्न मेडिसिन में मोनोप्लेजिया, बाईप्लेजिया, टेट्राप्लेजिया जैसे शब्द आयुर्वेद में वर्णित एकांग वात, पक्षाघात, सर्वांग वात, अधरांगवात जैसे रोगों का ही अंग्रेजी नाम है।

    इन लक्षणों के दिखने पर हो जाएं सावधान

    - अचानक बेहोश या संवेदनशून्य हो जाना।

    - चेहरे, हाथ या पैर में, विशेष रूप से शरीर के एक भाग में कमजोरी आ जाना।

    - समझने या बोलने में मुश्किल होना।

    - एक या दोनों आंखों की क्षमता प्रभावित होना।

    - चलने में मुश्किल।

    - चक्कर आना।

    - संतुलन की कमी होना।

    - अचानक गंभीर सिरदर्द होना।

    आयुर्वेद में उपलब्ध इलाज

    - हजारों साल पहले से यह रोग आयुर्वेद के ग्रंथों में वर्णित है तो जाहिर है इसकी चिकित्सा भी होगी। आयुर्वेद में इसके लिए औषधियों के अलावा पंचकर्म चिकित्सा भी बताई गयी है। वात-व्याधियों में सर्वाधिक कष्टप्रद व चिकित्सा की दृष्टि से कष्टसाध्य पक्षाघात होता है। यह एक चिरकालिक रोग है, जो अचानक उत्पन्न होता है और इसके कारण रोगी को असहनीय कष्ट झेलने पड़ते हैं। कुछ औषधियां हैं, जिनका प्रयोग चिकित्सक की देखरेख में करने से बहुत लाभ मिलता है।

    - एकांगवीर रस

    - समीरपन्नग रस

    - वृहत वात चिंतामणि रस

    - योगेंद्र रस

    - दशमूल क्वाथ

    - महारास्नादि क्वाथ

    इन बातों का रखें ध्यान

    - नमक, कोलेस्ट्राल, ट्रांस फैट और सेचुरेटेड फैट की कम मात्रा वाला और एंटी आक्सीडेंट, विटामिन-ई, सी और ए की अधिक मात्रा वाला भोजन लें।

    - साबुत अनाज खाएं, क्योंकि यह फाइबर के अच्छे स्त्रोत हैं और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने में काफी फायदेमंद साबित होते हैं।

    - ओमेगा फैटी एसिड वाले खाद्य पदार्थ मसलन तैलीय मछलियां, अखरोट, सोयाबीन आदि अपने खाने में शामिल करें। यह कोलेस्ट्राल को नियंत्रित करते हैं और ब्लड प्रेशर के साथ हृदय की बीमारियों से बचाते हैं।

    - टमाटर और गहरी हरी पत्तेदार सब्जियां जरूर खाएं क्योंकि इनमें एंटी आक्सीडेंट की मात्रा बहुत अधिक होती है।

    - बहुत तनाव न लें, मानसिक शांति के लिए ध्यान लगाएं।

    - धूमपान और शराब के सेवन से बचें।

    - नियमित रूप से व्यायाम और योग करें।

    - अपना वजन नियंत्रित रखें।

    - हृदय व मधुमेह के रोगी अपने रोग के प्रति सावधान रहें। जिन्हें ये रोग होते है उनमें स्ट्रोक का खतरा दोगुना हो जाता है।

    - सोडियम यानी नामक का अधिक मात्रा में सेवन न करें। इससे ब्लड प्रेशर सही रहता है।

    - बहुत तीखे मसालेदार भोजन के सेवन से बचें।