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World Photography Day : बनारस के घाट और गालियां फोटोग्राफरों को हमेशा देते हैं बदलते हुए दृश्य

दुनिया की सबसे प्राचीन नगरी बनारस जो आज भी छायाकारों के लिए नई है असीम है और अथाह विषयों वाली है। शायद इसीलिए बनारस फोटोग्राफी का तीर्थ माना जाता है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 19 Aug 2020 07:10 AM (IST)Updated: Wed, 19 Aug 2020 09:50 AM (IST)
World Photography Day : बनारस के घाट और गालियां फोटोग्राफरों को हमेशा देते हैं बदलते हुए दृश्य
World Photography Day : बनारस के घाट और गालियां फोटोग्राफरों को हमेशा देते हैं बदलते हुए दृश्य

वाराणसी [वंदना सिंह]। दुनिया की सबसे प्राचीन नगरी बनारस जो आज भी छायाकारों के लिए नई है, असीम है और अथाह विषयों वाली है। शायद इसीलिए बनारस फोटोग्राफी का तीर्थ माना जाता है, जहां एक ही स्थान पर पूरा भारत मिल जाता है। घाटों व गलियों में हर पल अनेकों दृश्य, जीवन का उल्लाह मिलता है जिसे फोटोग्राफर अपने कैमरे में कैद कर खुद को धन्य मानता है। यही वजह है कि दुनिया के बड़े-बड़े फोटोग्राफर इस धरती पर जरूर आते हैं जहां हजारों सालों से गलियों व घाटों में बस किरदार बदलते हैं। मगर विषय वही रहता है जो पुराना होकर भी नया रहता है।

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गंगा महल निवासी अवकाश प्राप्त बैंककर्मी और लगभग पांच दशक से काशी के घाटों व जीवन शैली पर फोटोग्राफी कर रहे है छायाकार नारायण द्रविड़ काशी के फोटोग्राफी जगत का एक जाना माना नाम हैं। ब्लैक एंड व्हाइट फोटो के दौर से डिजिटल फोटोग्राफी के हर रूप को इन्होंने देखा और जिया है। नारायण द्रविड़ बताते हैं काशी के घाटों व गलियों पर अनगिनत फोटो की गई मगर हर बार उसका चेहरा नया था, एंगल नया। यही इसकी खासियत है। हालीवुड अभिनेत्री जीना लोलो ब्रिगेडा ने काशी को फोटोग्राफरों का मक्का कहा था। शायद ही दुनिया को कोई ऐसा फोटोग्राफर होगा जो भारत न आया और काशी न आया हो। बनारस के घाटों पर हर पल दृश्य बदलते हैं। नई-नई कहानियां आती रहती हैं। यहां पर एक फोटोग्राफर के लिए विषय की भरमार है। जीवनदर्शन घाटों के किनारे चलता रहता है। खास सुबहे बनारस का दृश्य कैप्चर करने के लिए फोटोग्राफर यहां आते हैं।

नारायण द्रविड़ बताते हैं बनारस के घाट व गलियां छायाकारों के लिए इसलिए भी खास हैं क्योंकि यहां की गलियों में आज भी त्योहार पता चलता है। भोर में संकरी गलियों से गंगा स्नान करने बुढिय़ा दादी भी मिल जाएगी और ग्रामीण अंचलों की महिलाएं कतार में गीत गाते गंगा की ओर जाती मिल जाएंगी। यहां के लोग कैमरे के लिए एम्यून हो गए हैं। कोई रोकता नहीं अपने काम में मगन। कभी कोई कहता नहीं काहें हमार फोटो खींचता हउवा। एक अपनापन और स्वतंत्रता मिलती है।

बनारस की फोटोग्राफी में डाक्यूमेंटेशन भी हुआ है जैसे जो दृश्य अब नहीं हैं वो भी फोटोग्राफरों ने वर्षों पहले खींचकर सहेज लिए। उदाहरण के तौर पर कांवर पर मखनिया दही ले जाते हुए चच्चा अब ढूंढें नहीं मिलते। मगर इस रूप को भी फोटो में कैद किया गया है। सालों पहले दुर्गाघाट पर कार्तिक पूर्णिमा के ठीक तीन दिन पहले से कार्तिक पूर्णिमा के दिन तक होनी वाली मुक्की तो अब समाप्त हो गई मगर फोटो में उसकी यादें जीवित हैं। उस दौर में दुर्गाघाट पर यादव समाज व ब्राहमण समाज के बीच चांदनी रात में मुक्की प्रतियोगिता होती थी जिसमें अंगूठी तक नहीं पहना जाता है क्योंकि चोट लगने का डर होता था। नारायण द्रविड बताते हैं उस दौर में रात में फ्लैश लाइट लगाकर फोटो खींचना होता था तो हमारे साथी अतिबल ने ये फोटो चुपके से खींची और लोगों की नजर पड़ गई। लोग चिल्लाने लगे के हउवे, फोटो के खिंचलेस है, बस अतिबल वहां से किसी तरह भाग निकले। शायद वो एक मात्र फोटो इस दंगल थी जो उनके पास होगी। मगर अब तो अतिबल नहीं रहे। अब तकनीक के आने से रात में भी बिना फ्लैश लाइट के फोटो खींची जा सकती है।

आज की फोटो ग्राफी हो गई है मजेदार

छायाकार नारायण द्रविड़ के अनुसार यहां के घाट पर एक साथ इतने नजारे दिखते हैं कि फोटोग्राफर के पास सब्जेक्ट की भरमार होती है जैसे गंगा स्नान करते हुए लोग, स्नान के बाद टीका लगाती महिला, घाटिया, साधु, सीढी से उतरी गाय, कपड़े धोते लोग, मंदिर में पूजा करते श्रद्धालु आदि। वहीं लक्खा मेले जैसे नागनथैया को देखने आए लाखों श्रद्धालुओं के चेहरे पर अलग अलग भाव। गलियों में न जाने कितने सालों से शतरंज की अड़ी जमती है बस इसमें किरदार बदल जाते हैं। पहले के समय में सीमित मात्रा कैमरे थे। ब्लैक एंड व्हाइट फोटो खींचना चुनौती होती थी क्योंकि उसमें हर पक्ष को उभारने के लिए सोचना पड़ता था। काला, सफेद और ग्रे तीन रंगों के बीच ही तालमेल बैठाकर चित्रों को उभारना मेहनत का काम था। फिल्म को सहेचना भी कठिन था माइश्चर से बचाना होता था। मगर आज डिजिटल टेक्नोलाजी आने से फोटोग्राफरों को लाभ, सहूलियत मिल रही है। सही मायने में फोटो खींचना मजेदार हो गया है। अपनी पॉकेट के हिसाब से लोग कैमरा, लेंस आदि एक्यूपमेंट ले सकते हैं। लाइट, फोटो हर चीज को फोटोशॉप आदि से उभार सकते हैं मैनेज कर सकते हैं। चित्रों को सहेजना भी आसान है हार्ड ड्राई में सब कुछ है।

ब्लैक एंड व्हाइट में सबसे न्याय करना था चुनौती

पांच दशक से काशी में चित्रकारी, फोटोग्राफी से जुड़े सोनारपुरा निवासी अवनी धर ने फोटो को श्वेत श्याम से रंगीन होते देखा है। बताते हैं सत्यजीत रे अक्सर काशी आते रहते थे उन्होंने कहा था बनारस फोटोजेनिक फेस है। हर छायाकार का यह प्रिय स्थान है। यहां के घाट और गलियों में लाइट एंड शेड मिलता है। भोर से दोपहर 12 बजे तक जो भी फोटो खींचे जाते हैं उसका रूप ही  निराला होता है। इसीलिए इसे सुबह ए बनारस कहते हैं। कह सकते हैं यहां का लाइट एंड शेड वंडरफुल है। काशी के घाट की एक खासियत ये भी है कि अगर नाव पर बैठकर सुबह यानी भोर पांच बजे से आठ बजे तक कोई भी अपने मोबाइल से फोटो खींचेगा तो वो भी सुंदर आएगा क्योंकि यहां लाइट और शेड है। गलियों में दोपहर 12 बजे के भीतर के चित्र अनोखे आएंगे मगर यही चीज अगर शाम हो किया जाएगा तो बेकार हो जाएगा। आज से पचास साल पहले की फोटोग्राफी कठिन थी। ब्लैक एंड व्हाइट में लाइट, डेफ्थ, विषय को पूरा न्याय मिले ये फोटोग्राफर के लिए चुनौती था।  मगर अब इतने बेहतरीन कैमरे आ गए। मोबाइल में भी ढेरों सुविधाएं हैं।


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