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विश्‍व हिंदी दिवस : वर्ष 1961 से लगातार दुबई में हिंदी की अलख जगा रहा इंडियन हाईस्कूल

देश की सरहद के पार भी मातृभाषा और राष्ट्रभाषा के प्रति प्यार सच्चे देशभक्त की निशानी है। मिट्टी की भीनी सुंगध और देश में बीती जिंदगी की यादों को संजोए जब बाबू उमराव सिंह 1952 में दुबई गए तो हर ओर इसकी कमी दिल को खटकती रही।

By Abhishek sharmaEdited By: Published: Sun, 10 Jan 2021 07:50 AM (IST)Updated: Sun, 10 Jan 2021 07:50 AM (IST)
उमराव सिंह के भतीजे आलोक सिंह इन दिनों रानीपुर ब्लाक के गोकुलपुरा गांव आए हुए हैं।

मऊ [शैलेश अस्थाना]। देश की सरहद के पार भी मातृभाषा और राष्ट्रभाषा के प्रति प्यार, सच्चे देशभक्त की निशानी है। मिट्टी की भीनी सुंगध और देश में बीती जिंदगी की यादों को संजोए जब बाबू उमराव सिंह 1952 में दुबई गए तो हर ओर इसकी कमी दिल को खटकती रही। उन्होंने दुबई में हिंदी और हिंदुस्तानी संस्कृति के संरक्षण की जो नींव रखी, वह आज भी बकायदा फल-फूल रहा है। उनके हाथों 1961 में दुबई में स्थापित इंडियन हाईस्कूल अरब की धरती पर हिंदी भाषा और माटी की सुगंध तो बिखेर ही रहा है, भाषा और संस्कृति के विकास और संरक्षण की यात्रा में अनवरत 60 वर्षों से चलते हुए आज वहां के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान के रूप में स्थापित हैं। किसी भी राज्य के अनिवासी भारतीय हों, दुबई में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए यह संस्थान उनकी पहली पसंद और गौरव का विषय होता है। इस स्कूल में बना है दुबई का सबसे बड़ा आडिटोरियम, जो वहां के सुल्तान शेख राशिद बिन सईद अल मख्तूम के नाम पर है। उन्होंने ही आग्रह पर स्कूल के लिए जमीन प्रदान की थी। वहां विश्व हिंंदी दिवस पर कवि सम्मेलन व मुशायरों का वार्षिक आयोजन भारत व पाकिस्तान के शायरों के लिए भी गर्व के क्षण उपलब्ध कराता है।

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गुजराती बेन के आग्रह पर अंतरराष्ट्रीय व्यवसायी ने सुल्तान से मांगी जमीन

 उमराव सिंह के भतीजे आलोक सिंह इन दिनों रानीपुर ब्लाक के गोकुलपुरा गांव आए हुए हैं। वह बताते हैं कि वहां किसी काम से पहुंचा था एक गुजराती परिवार। इस श्रमिक परिवार की एक महिला साधारण से घर में रहते हुए भारतीय समुदाय के बच्चों को पढ़ाती थीं। भारतीय होने के नाते आसपास के परिवारों के बच्चों की संख्या उनके पास बढऩे लगी तो उन्होंने उस राह से गुजर रहे प्रख्यात व्यवसायी उमराव सिंह को रोककर विद्यालय की स्थापना में सहयोग मांगा। यह आवश्यकता महसूस हुई। उन्होंने इस बात का प्रस्ताव सुल्तान के सामने रखा तो वे भूमि देने को सहर्ष तैयार हो गए। 

सुनील उमराव सिंह संभाल रहे विरासत, विश्व हिंंदी दिवस को ही खुली तीसरी शाखा

 उनके निधन के बाद पिता की विरासत को बखूबी संभाल रहे सुनील उमराव सिंह निरंतर इसके विकास में लगे हुए हैं। उनके ट्रस्ट के साथ ही इंडियन क्लब भी इसमें सहयोग करता है। सीबीएसई द्वारा संचालित इस विद्यालय की अब तीन शाखाएं हैं। लगभग चार एकड़ में फैले इस विद्यालय की शाखाओं में कुल 17 हजार भारतीय व पाकिस्तानी बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। खास बात यह कि इसकी तीसरी शाखा की नींव 2011 में सुनील सिंह ने विश्व हिंंदी दिवस के दिन ही रखी थी। 


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