World Health Day : भारतीय आयुर्वेद के बिना अधूरी है विश्व स्वास्थ्य की परिकल्पना
1948 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाने की जो बात कही गई वह इसलिए आवश्यक थी ताकि भविष्य को रोग मुक्त
वाराणसी [वंदना सिंह]। 1948 में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (विश्व स्वास्थ्य संगठन) द्वारा 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाने की जो बात कही गई वह इसलिए आवश्यक थी ताकि भविष्य को रोग मुक्त बनाया जा सके। लगभग 3 दशकों पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नारा दिया था 'हेल्थ फ़ॉर आल-2000' अर्थात इसका उद्देश्य था 2000 तक सभी को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना। लेकिन यह अभी तक एक स्वप्न ही है। एक स्वस्थ व समृद्ध राष्ट्र के निर्माण के लिए उसके नागरिकों का शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होना आवश्यक है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। और एक समृद्ध राष्ट्र का निर्माण तभी संभव है जब उसकी विरासत और संस्कृति को आगे बढ़ाया जाए। ऐसी ही एक विरासत है -आयुर्वेद चिकित्सा।
चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय, वाराणसी के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य डॉ अजय कुमार बताते है की विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रत्येक वर्ष दुनिया भर के लोगों को जागरुक करने के लिए 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इस बार ‘वर्ल्ड हेल्थ डे’ की थीम है ‘यूनिवर्सल हेल्थ कवरेजः एवरीवन, एवरीवेयर। यानि 'सभी के स्वास्थ्य की सभी जगह स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना'। WHO का यह उद्देश्य तब तक पूरा नही हो सकता जब तक की प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों को इसमें शामिल नही किया जाता। भारत जैसे विशाल देश में तो यह असंभव ही है जहां हर जगह, हर समय और हर घर में आयुर्वेद मौजूद है। आयुर्वेद हजारों सालों से देश की मुख्य चिकित्सा पद्धति रही है लेकिन इधर के कुछ वर्षों में इसकी जितनी उपेक्षा की गयी है, रोगों के प्रतिकार और इलाज़ में हम उतना ही पीछे चले गए है।
आचार्य चरक ने स्वस्थ पुरूष के लक्षणों के बताया है कि : जिस व्यक्ति का मांस धातु समप्रमाण में हो, जिसका शारीरिक गठन समप्रमाण में हो, जिसकी इन्द्रियां थकान से रहित सुदृढ़ हों, रोगों का बल जिसको पराजित न कर सके, जिसका व्याधिक्ष समत्व बल बढ़ा हुआ हो, जिसका शरीर भूख, प्यास, धूप, शक्ति को सहन कर सके, जिसका शरीर व्यायाम को सहन कर सके , जिसकी पाचनशक्ति (जठराग्नि) समावस्थ़ा में कार्य करती हो, निश्चित कालानुसार ही जिसका बुढ़ापा आये, जिसमें मांसादि की चय-उपचय क्रियाएं सम़ान होती हों"
इसी प्रकार आचार्य सुश्रुत ने बताया है कि : जिस व्यक्ति के दोष समान हों, अग्नि सम हो, सात धातुयें भी सम हों, तथा मल भी सम हो, शरीर की सभी क्रियायें समान क्रिया करें, इसके अलावा मन, सभी इंद्रियाँ तथा आत्मा प्रसन्न हो, वह मनुष्य स्वस्थ कहलाता है।
केवल बीमारियो से बचे रहने का मतलब नही है आप स्वस्थ हैं : यह सम्भव है कि आप स्वयं को स्वस्थ समझते हों, क्योंकि आपका शारीरिक रचनातन्त्र ठीक ढंग से कार्य करता है, फिर भी आप विकृति की अवस्था में हो सकते हैं अगर आप असन्तुष्ट हों, शीघ्र क्रोधित हो जाते हों, चिड़चिड़ापन या बेचैनी महसूस करते हों, गहरी नींद न ले पाते हों इत्यादि।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की पिछले वर्ष जारी एक रिपोर्ट में कहा गया कि विश्व भर में 30 करोड़ से अधिक लोग अवसाद के शिकार हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक चीन और भारत अवसाद से बुरी तरह प्रभावित देशों में शीर्ष पर हैं। भारत में मनोरोगियों की तादाद 5.7 करोड़ है। विश्व भर में 347 मिलियन लोग डायबिटीज के रोगी हैं। कैंसर की वजह से हर साल 76 लाख लोग दम तोड़ रहे हैं। भारत में हर वर्ष 3.5 लाख लोगों की मौत कैंसर से होती है। इन सभी रोगों की वृद्धि दर पर आसानी से काबू पाया जा सकता है यदि आयुर्वेद को मुख्य धारा में लाया जाए और लोगो को इसके लिए प्रेरित किया जाय की वो आयुर्वेद को प्राथमिक चिकित्सा के रूप में अपनाए ना की अल्टरनेटिव मेडिसीन के रूप में। आयुर्वेद में चिकित्सा के अतिरिक्त स्वास्थ्य रक्षा के हजारों सूत्र बताये गए है जिनके पालन मात्र से हम स्वस्थ रह सकते है।
स्वास्थ्य रक्षा के उपाय आयुर्वेद के अनुसार : वर्तमान में मानसिक तनाव और डिप्रेशन, स्वस्थ और सेहतमंद जीवनशैली को बेहद प्रभावित करता है। इसका प्रभाव न केवल आपके मन व मस्तिष्क पर नकारात्मक रूप से पड़ता है, बल्कि यह आपको शारीरिक रूप से भी कमजोर कर देता है। रोगों को यदि होने से पहले ही रोक लिया जाए तो कई परेशानियों से निजात पाई जा सकती है। आइए जानते हैं कुछ रोगों के निदान और उससे बचाव के उपायों के बारे में-
1. आयुर्वेद में वर्णित सदवृत का पालन करे
2. स्वस्थवृत के सिद्धान्तों को अपनाकर जिये
3. प्रतिदिन प्रातः सूर्योदय पूर्व उठकर दो या तीन किमी टहले।
4. सही भोजन ही स्वास्थ्य प्राप्ति का मूल है। भोजन हमेशा खूब चबा-चबाकर, शांत मन से, बिना बाते किये आनंदपूर्वक करें ।
5. मोटापा आने का मुख्य कारण तैलीय व मीठे पदार्थ होते हैं। इससे चर्बी बढ़ती है, शरीर में आलस्य एवं सुस्ती आती है। इन पदार्थों का सेवन सीमित मात्रा में ही करें।
6. भोजन में अधिक से अधिक मात्रा में फल-सब्जियों का प्रयोग करें। इनमें पाए जाने वाले विटामिन, मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट बीमारियो से लड़ने में मदद करते है।
7. रात को ज्यादा खाना खाने से नींद अच्छी नहीं आती और वह ठीक से डाइजेस्ट भी नहीं हो पाता। इसलिए रात को ज्यादा खाना न खाएं। आप दोपहर को पेटभर खाना खा लें या शाम की चाय के साथ कुछ स्नैक्स खा लें।
8. भोजन करने के बाद कम से कम 15-20 मिनट जरूर चलें। इससे न सिर्फ आपका खाना डाइजेस्ट होता है बल्कि इससे आप हैल्दी भी रहते हैं।
9. कभी भी सिगरेट, शराब, तम्बाकू इत्यादि का सेवन न करे. यह आपके शरीर के लिए जानलेवा है।
10. मन, वचन और कर्म पर सयम रखना, सदाचारी रहना चाहिए। ये सभी स्वास्थ्य रक्षा का बहुत बड़ा साधन है।