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नए कानून से किसानों के खेत बनेंगे अन्न व खाद्य प्रसंस्करण के हब, बोले बीएचयू के पूर्व वीस प्रो. पंजाब सिंह

कृषि सुधार के नए कानूनों से किसान के खेत अब अन्न स्टोर व खाद्य प्रसंस्करण के हब के रूप में विकसित होंगे। व्यापारी कोई दमनकारी सोषक के रूप में नहीं बल्कि एक खरीदार की हैसियत से खेत पर आएगा कानून में ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित की गई है।

By saurabh chakravartiEdited By: Published: Thu, 10 Dec 2020 09:25 AM (IST)Updated: Thu, 10 Dec 2020 09:25 AM (IST)
नए कानून से किसानों के खेत बनेंगे अन्न व खाद्य प्रसंस्करण के हब, बोले बीएचयू के पूर्व वीस प्रो. पंजाब सिंह
अब अन्न स्टोर व खाद्य प्रसंस्करण के हब के रूप में विकसित होंगे।

वाराणसी, जेएनएन। कृषि सुधार के नए कानूनों से किसान के खेत अब अन्न स्टोर व खाद्य प्रसंस्करण के हब के रूप में विकसित होंगे। व्यापारी कोई दमनकारी सोषक के रूप में नहीं, बल्कि एक खरीदार की हैसियत से खेत पर आएगा, कानून में ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक व बीएचयू के पूर्व कुलपति प्रो. पंजाब ङ्क्षसह का कहना है कि फसल कटने के बाद किसान क्रय केंद्रों पर अनाज बेचने और मूल्य प्राप्त करने के लिए महीनों इंतजार करें, नहीं तो बाजार अब सीधे किसानों के खेत में ही लगे, उससे किसी को क्या आपत्ति है।

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सरकार के संकेत से तय है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के खत्म होने की संभावना नगण्य है, मगर उससे पूर्वांचल के छोटे और मझोले किसानों को कोई विशेष लाभ आज तक नहीं हुआ। इन किसानों द्वारा उपजाए जा रहे विविध फसलों को अब पूरे भारत का बाजार चाहिए, तभी इनका विकास होगा।

 उन्होंने कहा कि कानून का लाभ लेने के लिए ज्यादा-से-ज्यादा किसानों को एफपीओ यानी कि किसान उत्पादक संगठनों से जुड़ जाना चाहिए। ये संगठन ही होंगे जो किसानों को शेयर होल्डर और खेत का मालिक बनाएंगे। इस कानून से जमीन का मालिक किसान ही रहेगा, मगर खेती के तौर-तरीके और तकनीक बाजार की मांग के हिसाब से चलायमान हो सकेगी। इसके अलावा यहां का किसान अपना उत्पाद यदि दूसरे प्रदेशों में बेचना चाहता है, तो उसको एक जगह केंद्रित कर दुनिया के किसी बाजार से भी जोड़ा जा सकता है। उन्होंने बताया कि अब वे एक कदम आगे बढ़ते हुए एफपीओ को ही संगठित कर रहे हैं, जिससे तमाम कृषि तकनीक और गुणवत्ता में वृद्धि होगी।

किसान का विवाद एसडीएम स्तर पर सुलझाया जाएगा

कृषि विज्ञान संस्थान में कृषि अर्थशास्त्री प्रो. राकेश ङ्क्षसह के अनुसार वर्ष 2003 में भी एक अधिनियम आया था और हर राज्य सरकार से लागू करने की बात कही गई। उसमें कांट्रैक्ट फार्मिंग के विवाद पर किसान न्यायालय तक नहीं जा सकते थे, मगर इस नए कानून में यह विवाद एसडीएम स्तर पर ही सुलझा लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस अधिनियम के लागू हो जाने से किसान सीधे फूड आउटलेट से लाभ प्राप्त कर सकेंगे। आज एमएसपी के काल में किसान क्रय केंद्रों पर इंस्पेक्टर राज, नियमों के जंजाल और लंबे इंजतार से खासा प्रताडि़त रहता है।

इन सब जटिल समस्याओं से उसे मुक्ति मिल जाएगी। उन्होंने कहा कि अधिनियम को लाने से पहले भारत सरकार ने राज्यों को दस हजार किसान उत्पादक संगठनों की स्थापना का लक्ष्य दिया। यदि इस लक्ष्य को पूरा किया गया तो हम आंदोलन के बजाय धान व सब्जियों का ग्लोबल दाम प्राप्त कर पाते। केचप बनाने वाली कंपनी सीधे किसानों से टमाटर खरीदेगी, तो गांव में खाद्य प्रसंस्करण के उद्योग व रोजगार भी बढ़ेंगे। प्रो. राकेश सिंह ने बताया कि नए कानूनों के तहत सरकार अब भी एमएसपी पर धान व गेहूं से किसानों से खरीद कर खाद्य संरक्षण अधिनियम के तहत गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को कम राशि पर  आटा, चावल, दाल और अन्य राशन देती रहेगी।


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