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वाराणसी और गाजीपुर में कश्‍मीरी पश्‍मीना शाल की खादी ग्रामोद्योग की निगरानी में बुनाई ने पकड़ी गति

Weaving of Pashmina Shawl In Varanasi And Ghazipur खादी एवं ग्रामोद्योग की ओर से कश्‍मीर के लेह में पश्‍मीना के धागे की कताई का काम कराया गया है। इसके साथ ही इनकी आपूर्ति भी सुनिश्चित कराई गई ताकि कच्‍चे माल की कमी न हो।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Thu, 20 Jan 2022 12:51 PM (IST)Updated: Thu, 20 Jan 2022 12:51 PM (IST)
वाराणसी और गाजीपुर में कश्‍मीरी पश्‍मीना शाल की खादी ग्रामोद्योग की निगरानी में बुनाई ने पकड़ी गति
वाराणसी और गाजीपुर जिले में पश्‍मीना शाल की बुनाई शुरू हो गई है।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। काशी सहित गाजीपुर में कारीगरों (बुनकरों) के हुनरमंद हाथों को आर्थिक तौर पर मदद करने की दिशा में खादी ग्रामोद्योग की निगरानी में काम आज से गति पकड़ रहा है।बनारस सहित गाजीपुर जिले में 20 जनवरी की तिथि पश्मीना शॉल की बुनाई के लिए तय की गई थी। उस अनुरूप ही खादी ग्रामोद्योग की ओर से दोनों जिलों की महिलाओं को बुनाई शुरू करने का क्रम शुरू कर दिया गया है। इसके पूर्व खादी एवं ग्रामोद्योग की संस्था की ओर से लेह में पश्‍मीना के धागे की कताई का काम पूरे सर्दियों पर खूब कराने के साथ ही इनकी आपूर्ति भी सुनिश्चित कराया गया है। अब तक इस शाल की बुनाई कश्मीर में ही होती रही है।

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कश्मीर के जीवन की डोर पश्‍मीना को ही माना जाता है। अब तक कश्मीर में पश्मीना को शॉल की जगह जीवन का धागा के तमौर पर ही पहचान मिलती रही है। पश्‍मीना शाल के जरिए ही वहां कई परिवारों का गुजर बसर होता रहा है। पश्मीना शाल की मांग काफी पहले से रही है, देश विदेश में कश्‍मीरी पश्‍मीना शाल की बिक्री खूब होती रही है। अब कोरोना काल के दौरान बिक्री में आई गिरावट को एक बार फिर से दूर करने का प्रयास शुरू किया गया है। वाराणसी के अलावा गाजीपुर जिले में हजारों हाथों को रोजगार नए सिरे से देने की तैयारियों के क्रम में इसे शुरू किया गया है। शाल बुनाई यहां के स्‍थानीय बुनकरों द्वारा 20 जनवरी से शुरू होने की जानकारी पूर्व में विभाग ने साझा की थी। इसके लिए यहां की संस्था द्वारा लेह से धागे की कताई का काम कराया गया था। विभागीय सूत्रों के अनुसर लेह में पर्याप्‍त धागे की कताई के बाद इसे भेजा जा चुका है। 

बनता है पश्‍मीना का धागा : पश्‍मीना धागा चांगथांगी बकरियों से बनाया जाता है। इसको पूर्वी लद्दाख और तिब्बत के पठार वाले पश्चिमी भाग के चांगथंग क्षेत्र के खानाबदोश चांगपा पशुपालकों द्वारा लंबे समय से पाला जाता रहा है। हजारों मीटर की ऊंचाई पर पश्मीना बकरियों का पालन और चारागाह की तैयारियां पशुपालक करते हैं।सर्दियों में पश्मीना बकरियों के शरीर से रेशों को निकालकर धागे की कताई की जाती है। इस बाबत लेह की सहकारी समिति आल चांगथंग पश्मीना ग्रोवर्स कोआपरेटिव मार्केटिंग सोसायटी द्वारा सीधे वहां के पश्‍मीना बकरियों के चरवाहों से एक तय कीमत पर पश्मीना का कच्‍चा धागा खरीदकर मांग के अनुरूप ही उसका विपणन करती है। 

बोले अधिकारी : पश्मीना का धागा नया होने के बाद भी नए अवसरों वाला है। रोजगार मिलने के साथ आय बढ़ेगी तो पश्मीना शाल का बाजार भी बढ़ेगा और इसे आनलाइन मार्केटिंग के जरिए भी उपलब्‍ध कराने पर विभाग का जोर है। - संदीप सिंह, कृषक विकास ग्रामोद्योग संस्थान सेवापुरी 


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