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वाराणसी में मूलगादी की दीवारें बताएंगी कैसे थे संत कबीर, 22 फरवरी से कबीरचौरा महोत्सव

वाराणसी में कबीरदास के जीवन के रहस्यों और उनके कबिरा से संत कबीर बनने के पड़ावों को अब बताएंगी उनकी साधना-स्थली मूलगादी कबीर मठ की दीवारें। पेंटिंग्स को भी जल्द ही पूर्ण कर लिया जाएगा ताकि इन्हें 22 से प्रस्तावित कबीरचौरा महोत्सव के पूर्व यथास्थान लगा दिया जाए।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sat, 20 Feb 2021 09:10 AM (IST)Updated: Sat, 20 Feb 2021 09:10 AM (IST)
वाराणसी में मूलगादी की दीवारें बताएंगी कैसे थे संत कबीर, 22 फरवरी से कबीरचौरा महोत्सव
संत कबीर बनने के पड़ावों को अब बताएंगी वाराणसी में उनकी साधना-स्थली मूलगादी कबीर मठ की दीवारें।

वाराणसी [शैलेश अस्थाना]। महान समाज सुधारक और संत  कवि कबीरदास किसी परिचय के मोहताज नहीं, फिर भी रहस्यों से भरी उनकी बानी और किंवदंतियों से भरी जिंदगानी हमेशा ही आम कौतूहल का विषय रही हैं। एक गरीब मुस्लिम जुलाहा परिवार में पले-बढ़े कबीर कैसे इतने बड़े संत बने, वेदांत और दर्शन के विद्वान आज भी निरंतर उन पर शोध कर रहे हैं। उन कबीरदास के जीवन के रहस्यों और उनके कबिरा से संत कबीर बनने के पड़ावों को अब बताएंगी उनकी साधना-स्थली मूलगादी कबीर मठ की दीवारें।

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जी हां, दीवारें ही बनेगी चित्र-वीथिका, जो संत कबीर के संपूर्ण जीवन-दर्शन को चित्रकथाओं के माध्यम से प्रदर्शित करेंगी। इस कार्य में जुटी है काशी हिंदू विश्वविद्यालय और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के ललित कला संकाय के प्राध्यापकों और छात्रों की टीम। यह टीम विगत 28 जनवरी से अनवरत पेंटिग्स बनाने में जुटी है। विद्यापीठ के ललित कला संकाय प्रमुख डा. सुनील विश्वकर्मा और बीएचयू के पूर्व कला छात्र सामाजिक कार्यकर्ता डा. रवींद्र सहाय के नेतृत्व में इस टीम में कुल 15 छात्र-छात्राएं शामिल हैं जो पेंटिंग्स के माध्यम से कबीर के जीवन के विभिन्न प्रसंगों के भावपूर्ण दृश्य अपनी तूलिकाओं से बड़े-बड़े कैनवस पर रंगों के माध्यम से उकेर रहे हैं। अब तक 10 पेंटिंग्स बनकर तैयार हो चुकी हैं। दो पेंटिंग्स पर अभी काम चल रहा है। डा. सहाय बताते हैं कि इन पेंटिंग्स को भी जल्द ही पूर्ण कर लिया जाएगा ताकि इन्हें 22 से प्रस्तावित कबीरचौरा महोत्सव के पूर्व यथास्थान लगा दिया जाए।

प्राकट्य से लेकर मगहर-प्रयाण तक के हैं दृश्य : छात्रों द्वारा बनाई जा रही पेंटिग्स में कबीर के लहरतारा में प्राकट्य से लेकर गौना कराकर लौट रहे नीरू-नीमा द्वारा अपने घर तक उन्हें लाए जाने, उनके नामकरण, खतना की तैयारियों के बीच तूफान, स्वामी रामानंद से शिष्यत्व-ग्रहण, ध्रुव-प्रह्लïाद की भक्ति-कथाओं से प्रेरणा- ग्रहण, संत रैदास का सानिध्य, शिष्यों संग सत्संग व उपदेश और अंत समय में उनके मगहर-प्रयाण आदि के प्रसंग मनमोहक व भावपूर्ण चित्रों में उकेरे गए हैं।

सेवा-भाव से कार्य कर रहे छात्र : संत कबीर के जीवन-दर्शन को पेंटिंग्स व चित्रों में उतार रहे छात्र यह कार्य गहरे सेवा-भाव से कर रहे हैं। सात गुणा छह फीट व 15 गुणा 10 फीट साइजों की इन अनमोल पेंटिंग्स को वे बिना कोई मोल लिए पूरा करने में जुटे हैं। इनके निर्माण में सामग्री के मद में व्यय हो रहे लगभग डेढ़ लाख रुपये मूलगादी मठ के महंत आचार्य विवेकदास ने प्रदान किए हैं।

कबीर की झोपड़ी से कबीर की बगिया तक सजेंगी पेंटिंग्स : महंत आचार्य विवेकदास बताते हैं कि छात्रों द्वारा तैयार की जा रहीं इन पेंटिंगों को परिसर में स्थित 'कबीर की हाईटेक झोपड़ी से लेकर निर्माणाधीन 'कबीर की बगिया तक सजाया जाएगा। झोपड़ी के मुख्य द्वार से ऐतिहासिक कुएं और साधना-स्थली तक, सब स्थलों को अत्याधुनिक यंत्रों के माध्यम से नया कलेवर दिया जा रहा है। झोपड़ी में प्रवेश करते ही बाल कबीर की वाणी गूंजेगी जिसमें स्वागत के शब्द होंगे। पूरा जीवन-वर्णन भी उन्हीं की वाणी के रूप में प्रस्तुत होगा।


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