अंगुलियों के संकेत से कंप्यूटर पर टाइपिंग करेंगे दृष्टिबाधित, इनोवेशन से दिव्यांगजन को सशक्त कर रहे विज्ञानी
मनोविज्ञानियों ने पाया कि टाइपिंग के लिए विद्यार्थियों को दिमाग पर कम जोर देना पड़ रहा था यानी काग्निटिव लोड (संज्ञानात्मक भार) अधिक नहीं है। यह शोध बीते दो अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय जर्नल आइईईई-ट्रांजेक्शन आन ह्यूमन मशीन सिस्टम्स में प्रकाशित हुआ है।
मुकेश चंद्र श्रीवास्तव, वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) के विज्ञानियों ने अंगुलियों का संकेत समझने वाली एक ऐसी डिवाइस तैयार की है, जिसकी मदद से दृष्टिबाधित भी तेजी से और त्रुटिविहीन टाइपिंग कर सकेंगे। डैक्टिलोलाजी यानी साइन लैंग्वेज (संकेत भाषा) आधारित यह तकनीक पहले से उपलब्ध ब्रेल आधारित डिवाइस से काफी बेहतर है। दोनों डिवाइस का तुलनात्मक अध्ययन शहर के दुर्गाकुंड स्थित श्री हनुमान प्रसाद अंध विद्यालय के विद्यार्थियों पर किया चुका है। परिणाम आया कि ब्रेल की तुलना में डैक्टिलोलाजी तकनीक न सिर्फ सरल है, इसमें समय की बचत होती है, गलतियों की गुंजाइश भी को हो जाती है और दिमाग पर अधिक जोर भी नहीं देना पड़ता।
आइआइटी बीएचयू के डा. किशोर सारवाडेकर व डा. तुषार सिंह के मार्गदर्शन में आइआइटी-बीएचयू के पूर्व छात्र (वर्तमान में कैस वेस्टर्न रिजर्व यूनिर्वसिटी क्लीवलैंड, ओहियो, अमेरिका के सीनियर रिसर्च एसोसिएट) डा. गौरव मोदनवाल, बीएचयू के मनोविज्ञान विभाग की ऐश्वर्या जायसवाल व आइआइटी खडग़पुर के छात्र शशिभूषण राय ने शोध के बाद यह डिवाइस तैयार किया है। डा. सारवाडेकर ने बताया कि दृष्टिबाधित की-बोर्ड और माउस चलाने में असमर्थ होते हैं। इनके लिए ब्रेल आधारित डिवाइस है लेकिन यह बहुत कारगर नहीं है। आखिरकार उनकी टीम को डैक्टिलोलाजी आधारित यह डिवाइस तैयार करने में सफलता मिली। इसमें सेंसर युक्त कैमरा लगा है, जो अंगुलियों के इशारे को पढ़ता और कंप्यूटर स्क्रीन पर शब्द टाइप होने लगते हैं। इसमें गलत शब्द टाइप हो जाने पर डिलीट करने सुविधा भी है। आडियो सिस्टम टाइप कर रहे व्यक्ति को बताता रहता कि क्या लिखा जा रहा है। प्रोसेसिंग यूनिट इस सिस्टम की मदद से संकेतों को डिकोड करता है। इस सिस्टम से नेत्रहीन एमएस वर्ड, एक्सेल जैसे ई-दस्तावेजों में टेक्स्ट संपादित कर सकेंगे।
डा. मोदनवाल ने बताया कि श्री हनुमान प्रसाद अंध विद्यालय के 14 विद्यार्थियों को शोध में शामिल किया गया। विद्यार्थियों को प्रतिदिन एक घंटे ब्रेल व डैक्टिलोलाजी तकनीक से टाइपिंग सिखाई गई। इसके बाद तीन चरणों में उनकी परीक्षा ली गई। पहले चरम में एक अक्षर और सिंगल डिजिट के अंक टाइप कराए गए। दूसरे चरण में तीन-तीन अक्षर वाले शब्द व अगले चरण में छह अक्षरों के शब्द टाइप कराए गए। विज्ञानियों ने पाया कि ब्रेल लिपि की तुलना में विद्यार्थी डैक्टिलोलाजी आधारित डिवाइस पर न सिर्फ कम समय में टाइपिंग कर रहे थे, गलतियां भी कम हो रही थीं।