बेबसी पर मरहम लगा रहे वीरेंद्र, 18 साल से गरीब मरीजों का कर रहे मुफ्त उपचार
गरीबों के इलाज को समय निर्धारण करते हुए सेवा की शुरुआत की जो डेढ़ दशक बाद भी बदस्तूर है।
आजमगढ़ [विकास विश्वकर्मा]। किसी के जख्म को मरहम दिया है अगर तूने, समझ ले तूने खुदा की बंदगी की है। इन्हीं शब्दों को आदर्श मानकर डॉ. वीरेंद्र सरोज ने गरीब, लाचार और बेसहारा के नाम अपनी जिंदगी को समर्पित कर दिया। गरीबों के इलाज को समय निर्धारण करते हुए सेवा की शुरुआत की, जो डेढ़ दशक बाद भी बदस्तूर है। यह कहना गलत नहीं होगा कि जरूरतमंदों की सेवा ही उनकी जिदगी बन गई है।
मूल रूप से बरदह के सरायमोहन निवासी डा. वीरेंद्र सरोज रानी की सराय के सोनवारा मोढ़ पर रहते हैं। उनका मानना है कि अनियमित खानपान के कारण आज लगभग हर कोई किसी न किसी बीमारी का शिकार हो रहा है लेकिन इलाज के लिए सभी के पास पैसे नहीं होते। ऐसे में हमने यह तय किया कि जो दे उसका भी भला और जो न दे उसका भी भला की तर्ज पर काम किया जाए। दोपहर से शाम तक बस एक ही धुन सेवा और बस सेवा ...।
बचपन में मुश्किल से हुआ उपचार
डा. वीरेंद्र सरोज ने कहा कि बचपन के अनुभव व सीख जीवन भर मार्गदर्शन करते हैं। मेरे साथ भी बचपन में कुछ ऐसा ही हुआ। गरीबी के चलते बुखार का उपचार कराना भारी पड़ रहा था। एक बार तो शादी के बाद गले में तकलीफ हुई तो इलाज को दुश्वारियों के हद से गुजरना पड़ा था। उसके बाद ही मैंने जीवन का उद्देश्य बना लिया कि डाक्टर बनकर गरीब, लाचार और बेसहारों का निश्शुल्क उपचार करूंगा।
हर दिन 50 मरीजों का करते उपचार
कस्बे के सोनवारा मोढ़ पर डा. वीरेंद्र सरोज वर्ष 2000 से डिस्पेंसरी चला रहे हैं। सुबह आठ बजे से दोपहर तक गरीबों का निश्शुल्क उपचार करते हैं। इस दौरान कोई मरीज गरीबों की सेवा को आगे बढ़ाने को इलाज के बाद पैसे दिए तो उससे इंकार भी नहीं करते है। उनका कहना है कि गांवों में आज भी बहुतेरे परिवार गरीबी के कारण इलाज नहीं करा पाते हैं। उनकी मजबूरी कई बार उनके जीवन पर भारी पड़ जाती है।