Vijay Diwas महाराजा सुहेलदेव राजभर ने मसूद गाजी को मारकर की थी सनातन संस्कृति की रक्षा
Vijay Diwas भारत में 11वीं शताब्दी के अनिश्चिततापूर्ण वातावरण में राष्ट्र नायक के रूप में सनातन संस्कृति के ध्वजवाहक महाराजा सुहेलदेव राजभर का उदय हुआ था।
वाराणसी, [अनिल राजभर]। भारत में 11वीं शताब्दी के अनिश्चिततापूर्ण वातावरण में राष्ट्र नायक के रूप में सनातन संस्कृति के ध्वजवाहक महाराजा सुहेलदेव राजभर का उदय हुआ। इनके विषय में जन्म से लेकर मृत्यु और उपलब्धि काल को लेकर काफी मतभेद रहा है। अवध गजेटियर में वर्णित है कि महाराजा सुहेलदेव का जन्म बहराइच में वसंत पंचमी के दिन 990 ई. को हुआ था। महाराजा सुहेलदेव राजभर का शासनकाल 1027 ई. से 1077 ई. तक माना जाता है। महाराजा सुहेलदेव भगवान सूर्यदेव के उपासक और धार्मिक प्रवृति के थे।
उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार पूरब में गोरखपुर और पश्चिम में सीतापुर तक किया। उन्हेंं आसपास के सभी राजाओं एवं प्रजा की अपार निष्ठा व स्नेह प्राप्त था। युद्ध कौशल में निपुण महाराजा सुहेलदेव राजभर से उनके अन्य समस्त समकालीन शासक भी प्रभावित थे। इतिहासकारों, विद्वानों, उपन्यासकारों ने विभिन्न पुस्तकों, उपन्यासों के माध्यम से अपना-अपना मत इनकी जाति के संदर्भ में दिया है। जबकि अमृतलाल नागर की पुस्तक गदर के फूल में निर्विवाद रूप से इन्हेंं भर जाति का ही बताया गया है। अधिकतर ख्यात विद्वानों ने अध्ययन के आधार पर सम्राट सुहेलदेव को भर शासक माना है। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वाल्यूम 01 पेज 329 में लिखा है कि राजा सुहेलदेव भर वंश के थे।
ग्यारहवीं सदी के भारत के वैभव से आकर्षित होकर गजनी के शासक महमूद गजनवी ने तत्कालीन कमजोर भारतीय शक्तियों का लाभ उठाते हुए भंयकर लूटपाट के उद्देश्य से 17 बार आक्रमण किया। इसमें सबसे विशाल प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण शामिल था। जहां उसने मंदिर में रखी धन संपदा लूटी और पुजारियों की नृशंश हत्याएं की। इसमें उसके सेनापति सैयद साहू सालार की प्रमुख भूमिका थी। महमूद गजनवी भारत में आक्रमणकारी एवं लुटेरे के रूप में आया और हर बार लूट के उपरांत वापस गजनी चला जाता। सैयद सालार मसूद गाजी महमूद गजनवी का भांजा और काफी करीब था। गजनवी मंदिर लूटने के अभियान के प्रति बचपन से ही उसे प्रेरित करता था। अंत समय में महमूद गजनवी जब वापस गजनी जा रहा था तो उसने अभियान की कमान उसे सौंप दी।
फारसी भाषा के मिरात-ए-मसूदी में लेखक अब्द-उर-रहमान ने विस्तृत वर्णन किया है। महमूद गजनवी का सेनापति एवं उसका भांजा सैयद सालार मसूद सोलह वर्ष की आयु में सिंध, मुल्तान, दिल्ली, मेरठ, कन्नौज, फतेहपुर सीकरी पर विजय प्राप्त करते हुए आगे बढ़ रहा था। स्थानीय राजाओं पर कब्जा करने के क्रम में सैयद सैफुददीन और मियां राजब को उसने बहराइच भेजा और स्वयं इसी रास्ते अयोध्या जाने की योजना में जुट गया।
बाराबंकी के सतरिख में केंद्र बनाकर बहराइच, श्रावस्ती सहित अयोध्या के आसपास के लगभग 21 राजाओं से युद्ध किया। सभी को हराया और उसकी सेना का उत्पात बढ़ता गया। अंत में सारे राजाओं ने मिलकर बहराइच के स्थानीय राजा और पड़ोसी राजाओं का संगठन बनाकर लडाई लड़ी फिर भी हार का सामना करना पड़ा।
अंतत: तमाम राजाओं ने संयुक्त रूप से श्रावस्ती सम्राट महाराजा सुहेलदेव राजभर के सामने सैयद सालार मसूद गाजी की विशाल सेना के सामने नेतृत्व का प्रस्ताव रखा। चितौड़ा मैदान घेरने की योजना बनी जहां सैयद सालार मसूद गाजी की सेना रूकी थी। इसमें सैयद सालार की सेना ने कुत्सित नीतियों का सहारा लिया। युद्ध मैदान में गायों को आगे कर दिया गया। महाराजा सुहेलदेव ने गायों को सेना के आगे से हटवाया और भीषण संग्राम हुआ। विक्रमी संंवत 1091 ई. ज्येष्ठ मास के पहले रविवार 10 जून 1034 को युद्ध में सुहेलदेव राजभर ने मसूद गाजी को मारकर सनातन संस्कृति की रक्षा की।
कालांतर में आर्य समाज, राम राज्य परिषद एवं हिंदू महासभा ने जब हिंदू नायक महाराजा सुहेलदेव राजभर के सम्मान में अप्रैल 1950 में मेले की योजना बनाई तो दरगाह समिति के सदस्य ख्वाजा जलील अहमद शाह ने विरोध किया। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने मेले पर प्रंतिबंद्ध लगाया फिर भी लोग मेले में गए और 2000 लोग जेल भेज दिए गए। देश भर से हिंदू जुटने लगे तब शासन को आदेश वापस लेना पड़ा। वहां 500 बीघा में कई चित्र मूर्तियों के साथ महाराजा सुहेलदेव राजभर का मंदिर बनाया गया। आगे चलकर 23 मई 1999 को तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने लखनऊ के लालबाग चौराहे पर महाराजा सुहेलदेव की विशाल प्रतिमा का अनावरण किया। आगे चलकर 24 फरवरी, 2016 को तत्कालीन भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने श्रावस्ती में आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया।
अप्रैल 2016 में गाजीपुर-आनंद विहार टर्मिनल दिल्ली तक सुहेलदेव सुपरफास्ट ट्रेन चलाई गई। पीएम नरेंद्र मोदी ने 29 दिसंबर 2018 को गाजीपुर के आइटीआइ मैदान की जनसभा में महाराजा सुहेलदेव के नाम डाक टिकट जारी किया। उनके विजयोत्सव पर संकल्प लेना चाहिए कि समाज को उनके जीवन दर्शन को पढ़-समझकर एकता, अखंडता, राष्ट्रधर्म के प्रति निष्ठावान रहते हुए राष्ट्र की संस्कृति, उसकी परंपराओं की रक्षा के प्रति सदैव तत्पर रहे। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
(लेखक, उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री हैैं)