अर्थराइटिस : जब घुटना न मुड़े और सूजन हो जाए, होने लगे दर्द तो संभल जाएं
अर्थराइटिस का अर्थ है शरीर के जोड़ों में दर्द होना। अर्थराइटिस का दर्द इतना तेज होता है कि पीड़ित मरीज को चलने में बहुत परेशानी होती है।
वाराणसी [कृष्ण बहादुर रावत] । अर्थराइटिस का अर्थ है शरीर के जोड़ों में दर्द होना। अर्थराइटिस का दर्द इतना तेज होता है कि पीड़ित मरीज को न केवल चलने-फिरने बल्कि घुटनों को मोडऩे में भी बहुत परेशानी होती है। इसमें घुटनों में दर्द होने के साथ दर्द वाले स्थान पर सूजन भी आ जाती है। गलत खान पान और भागदौड़ वाली दिनचर्या के कारण भारत में अर्थराइटिस यानी गठिया रोगियो की संख्या तेजी से बढ़ रही हैं।
एक सर्वे के मुताबिक भारत में 18 करोड़ से अधिक लोग अर्थराइटिस से प्रभावित हैं और भारत की तकरीबन 14 फीसदी आबादी जोड़ों के इस रोग के इलाज के लिए हर साल डॉक्टर की मदद लेती है। एक अनुमान के अनुसार 2025 तक भारत में ऑस्टियो अर्थराइटिस के मामलों की संख्या छह करोड़ तक पहुंच जाएगी। इस तरह भारत इस दृष्टि से दुनिया की राजधानी के रूप में उभरेगा। लोगों को जागरूक करने के लिए 12 अक्टूबर को विश्व आर्थराइटिस दिवस मनाया जाता है। चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय, वाराणसी के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य डा. अजय कुमार बताते हैं कि अर्थराइटिस का सबसे प्रचलित रूप ऑस्टियो अर्थराइटिस हर साल भारत में 1.5 करोड़ लोगों को प्रभावित करता है।
इसके अलावा भारतीय आबादी में गाउटी अर्थराइटिस और रूमेटोइड अर्थराइटिस भी आमतौर पर पाए जाते हैं। डा. अजय बताते हैं कि अधिक मात्रा में पेन किलर लेने से शरीर की हीलिंग प्रॉपर्टी पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे यह आशका बढ़ जाती है। गठिया जैसे रोगों में आयुर्वेद एवं पंचकर्म सबसे अधिक कारगर होता है। आयुर्वेद की दृष्टि से अर्थराइटिस यानी गठिया, वात के प्रकोप के कारण होता है। गठिया में प्रधान रूप से वात कुपित होता है और कुछ प्रकार के गठिया जिनमें जकडऩ अधिक होती है उनमें आम और कफ का भी प्रकोप होता है। गठिया के लक्षण हैं- गठिया के किसी भी रूप में जोड़ों में दर्द होने लगता है और सूजन दिखाई देने लगती है। जोड़ों में सूजन के कारण जोड़ों में दर्द और जकडऩ होती है। रोग के बढ़ जाने पर चलने-फिरने या हिलने-डुलने में भी परेशानी होने लगती है। इसका प्रभाव प्राय: घुटनों, नितंबों, उंगलियों और मेरू की हड्डियों में होता है। उसके बाद कलाइयों, कोहनियों, कंधों व टखनों के जोड़ भी इसका असर पड़ता है।
कुछ लोगों का शरीर गर्म हो जाता है और जलन की शिकायत होती है। सुबह बिस्तर से उठने का मन बिल्कुल भी नहीं करता है। हाथ-पैर में अकड़न बनी रहती है और उन्हें नॉर्मल होने में 15-20 मिनट लग जाता है। कैसे करें बचाव इस बीमारी से- अर्थराइटिस में अनियमित खाना, ठंडा खाना जैसे व्हाइट राइस, दही, खीरा, मूली, आईस्क्त्रीम और शरबत से बचें। इस रोग से पीड़ित लोगों को न सिर्फ वजन कम करना चाहिए बल्कि खाने की मात्रा भी कम कर देनी चाहिए। शरीर का वजन जितना कम रहेगा घुटनों का दर्द भी उतना ही कम रहेगा। हल्का व्यायाम करना भी लाभदयक है। अगर दर्द होने लगे तो व्यायाम वहीं रोक देना चाहिए। हल्के व सुपाच्य भोजन को ग्रहण करना चाहिए। जिस भोजन को खाकर गैस उत्पन्न हों, वे ग्रहण नही करने चाहिए। सेब, संतरा, अंगूर, पपीता इन सब फलों का सेवन भी लाभकर है।
परवल, तोरी, कद्दू- इन सब्जियों को पका कर जीरा, धनिया, आद्रक, हींग, लहसुन, सौंफ और हल्दी मिलाकर प्रयोग करना चाहिए। चाय, कॉफी, दही, मदिरा, चीनी, चॉकलेट और धूम्रपान भी रोगी के लिए वर्जित है। रात्रि में अधिक देर तक जागे रहना, प्रात: काल नहीं उठना, दिन में शयन करना, अत्यधिक सोचना और चिंता करना, मानसिक तनाव- इन सबसे अर्थराइटिस बढ़ती है। नित्य रूप से व्यायाम, हल्की सैर करना आवश्यक है। इस बीमारी का उपचार- 5 से 10 ग्राम मेथी के दानों का चूर्ण बनाकर सुबह पानी के साथ लें। 4 से 5 लहसुन की कलियों को सुबह खाने से भी आराम मिलता है। लहसुन के रस को सरसों के तेल में पकाकर मालिश करने से भी दर्द से राहत मिलती है। औषधीय तेल से मालिश करना भी आरामदायक होता है। जोड़ों के दर्द से बचने के लिए व्यायाम और योगासन बहुत महत्वपूर्ण है।
अपने रोगानुसार चिकित्सक से सलाह लेकर नियमित योग और व्यायाम से इस बीमारी से निजात पा सकते हैं। शल्लाकी, अदरक, हल्दी और अश्वगंधा, गुग्गुल, रास्ना, एरंड, आदि औषधिया भी अर्थराइटिस के दर्द को कम करने में मदद करती हैं। सरसों या तिल के तेल से शरीर की हल्की मालिश वात को शात करने में सहायता देती है। प्रभावित जोड़ों पर इनकी मालिश से दर्द में आराम मिलता है। वैद्य की सलाह से योगराज गुग्गुल, सिंहनाद गुग्गुल, रास्नादि गुग्गुल, वातविध्वंसन रस, वातगजाकुश रस आदि औषधियों के सेवन से लाभ मिलता है। कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विशेसज्ञ वैद्य अजय कुमार ने बताया कि अलग-अलग रोगों में अलग अलग पंचकर्म कराया जाता है जिनमें से कुछ निम्न प्रकार के है- घुटने के दर्द में स्नेहन, स्वेदन और जानुबस्ति। कमर के दर्द में स्नेहन, स्वेदन और कटि बस्ति। गर्दन के दर्द में स्नेहन, स्वेदन और ग्रीवाबस्ति। रह्यूमाटोइड एवं एनकायलोजिंग अर्थराइटिस में रुक्ष सर्वाग स्वेद। अर्थराइटिस में वाष्प स्वेद।