वसंत पंचमी 2021 : गुलाल की झोली व फूलों की डोली संग वसंत की होली, अनुयायियों का महासंगम
उत्सवी रंगों के रसिया शहर बनारस में रंगीले पर्व होली की स्वाभाविक तौर पर बड़ी धूम हुआ करती है। सामने घाट स्थित अनुसुइया परमहंस आश्रम ऐसा अपवाद है जहां मौसम को आध्यात्मिक ऊर्जा के आभा मंडल के जोडऩे के ध्येय से गुलाब की पंखुडिय़ों व अबीर-गुलालl से सजाया जाता है।
वाराणसी [कुमार अजय] । उत्सवी रंगों के रसिया शहर बनारस में रंगीले पर्व होली की स्वाभाविक तौर पर बड़ी धूम हुआ करती है। शास्त्रोक्त परंपरा के अनुसार देवी शारदा के प्रमोद पर्व वसंत पंचमी को ही नगर के नुक्कड़ चौराहों पर होलिका की 'रेण गाड़कर रंगोत्सव को नेवता पठा दिया जाता है। एकमात्र सामने घाट स्थित अनुसुइया परमहंस आश्रम ऐसा अपवाद है जहां मौसम को आध्यात्मिक ऊर्जा के आभा मंडल के जोडऩे के ध्येय से गुलाब की पंखुडिय़ों व अबीर-गुलाल की वर्षा का रंगीला दरबार सजाया जाता है।
आश्रम के संरक्षक बाबा रंगनाथ बताते हैं कि अध्यात्म पीठ के संस्थापक अवधूत परमहंस स्वामी भगवानानंद ब्रह्मलीन का मानना था कि शारीरिक व मानसिक अवस्थाओं के अतिरिक्त मौसम के परिवर्तन काल में आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रभावों में भी परिवर्तन होते रहते हैं। उनका मानना था कि सात्विक विद्याओं की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती के प्रमोद पर वसंत पंचमी का प्रभा मंडल सर्वाधिक आभामय होता है। इस दिन से साधु-संतों की साधना का प्रभाव बड़ी तेजी के साथ बदलता है। इसी सिद्धांत के तहत आश्रम की तीज-त्योहारों की सूची में वसंत पंचमी के होली की सर्वाधिक महत्ता स्वीकार की गई है।
वे बताते हैं कि इसी तिथि को परहंसी मत के प्रवर्तक बाबा भगवानानंद को 'आत्मबोध भी प्राप्त हुआ था। इस दृष्टि से भी हमारे लिए वसंत पंचमी को खेली जाने वाली फूल-गुलाल की होली का बड़ा मान है। अलबत्ता रंगों की होली हम भी धूलिवंदन के दिन ही भक्तों के साथ मनाते हैं। उल्लेखनीय है कि अब तक परंपरा पर चले आ रहे आश्रम के विधानों को स्वामी भगवानानंद ने पहली बार उद्बोधनों का अंकन लोकभाषा के महाग्रंथ 'बारहमासी के रूप में कराया था। प्राय: सधुक्कड़ी भाषा में रचे गए इस ग्रंथ में बारहों महीनों की लौकिक व आध्यात्मिक अनुभूतियों में आए बदलावों को इंगित करने के साथ ही संतों के फक्कड़ी जीवन दर्शन को भी रेखांकित किया गया है।
वसंत पंचमी की होली को नवीन ऊर्जा संकलन पर्व के रूप में मनाने की रस्म को स्पष्ट करते हुए बारहमासी ग्रंथ में बाबा ने स्पष्ट कहा है- वसंत ऋतु फागुन में आवे, खेला यह प्रारब्ध रचावे, इत्र, गुलाल, ज्ञान की रोली, खेलत सभ भर-भर कर झोरी..., अड़भंगी बोली में लिखी गई इन पंक्तियों के जरिए इत्र-गुलाल को ज्ञान का प्रतीक बताने के साथ होली पर अविद्या दहन का संदेश देते हुए आगे कहा गया है- होली में अविद्या फूंक के हो गए गुप्तानंद, समझे कोई सुघड़ विवेकी का समझे मतिमंद।
होता है अनुयायियों का महासंगम
बाबा रंगनाथ बताते हैं कि आश्रम में वसंत पंचमी की होली समूचे देश में अपने ढंग का अनोखा उत्सव है। इसमें भाग लेने को देश के कोने-कोने से मतानुयायी आते हैं। हुड़दंग से परे गुरु चरणों में गुलाल -पुष्प अर्पित कर शालीन उत्सव मनाते हैं।
नानाजी देशमुख से था आत्मीय संबंध
बताते हैं बाबा रंगनाथ कि किसी दौर में राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले व बाद में जीवन सामाजिक कार्यों को समर्पित कर फकीर बन जाने वाले नानाजी देशमुख के आश्रम के परमाचार्य स्वामी परमानंद के प्रति अगाध श्रद्धा थी। बाद में स्वामी भगवानानंद के भी वे प्रिय पात्र बने रहे। स्वामी भगवानानंद ने नानाजी को विभिन्न प्रकल्पों के लिए राजापुर, चित्रकूट में 36 एकड़ जमीन प्रसाद रूप में दी। आश्रम के चित्रकूट केंद्र के समन्वय से आज भी कई रचनात्मक प्रकल्प प्रसंग चल रहे हैं। बताते हैं कि वसंत पंचमी की होली में नानाजी अक्सर आते थे। बाबा भगवानानंद के हाथों गुलाल का टीका लगवाते थे।