लकड़ी का खिलौना : लकड़ी की काठी, काशी का घोड़ा, हुअा प्रयास तो सरपट दौड़ा
ब्रांड बनारस को प्रोत्साहित करने के लिए लगातार प्रयास जारी है, इसमें हस्तकला को आगे लाने के लिए योजनाओं के साथ ही प्रशिक्षण और प्रोत्साहन भी चल रहा है।
वाराणसी [सौरभ चक्रवर्ती] : ब्रांड बनारस को प्रोत्साहित करने के लिए लगातार प्रयास जारी है। इसमें हस्तकला को आगे लाने के लिए योजनाओं के साथ ही प्रशिक्षण और प्रोत्साहन चल रहा है। बनारसी लकड़ी के खिलौने को वैश्विक पहचान देने के लिए खुद प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आगे आएं हैं। कुंभ मेला और प्रवासी भारतीय सम्मेलन में यहां के खिलौने को यादगार के तौर में लोगों तक पहुंचाने की पहल चल रही है। इसके लिए कारीगर नए डिजाइन के साथ उत्पादन बढ़ाने में जुटे हैं तो व्यापारी ज्यादा स्टॉक के इंतजाम में लगे हैं।
इन दिनों लकड़ी के खिलौने की काफी मांग बढ़ रही है लेकिन आपूर्ति पूरी तरह से नहीं हो पा रही है। इसके पीछे कई वजह है। कारीगरों की कमी, स्किल्ड न होना, लकड़ी की कमी और बिजली चालित मशीन के लिए कोई सब्सिडी न होना। यहां के खिलौने को चीन से भी अब चुनौती मिल रही है। चीन ने लकड़ी के खिलौने बाजार में उतार दिए हैं। हालांकि चाइनीज लकड़ी के खिलौने में वह डिजाइन नहीं जो बनारसी में है। इसके अलावा चीन रासायनिक रंगों का प्रयोग करता है जो खतरनाक है। इन सबके बीच कारीगरों का हौसला कम नहीं हुआ और वे जुटे हैं।
विगत दिनों बनारस आने वाले राजनीतिक हस्तियों का सम्मान भी बनारसी खिलौने से किया गया। इससे ब्रांड प्रमोशन हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पंचमुखी हनुमान, मुख्यमंत्री व राज्यपाल को पंचमुखी गणेश की कलाकृति भेंट की गई। इसे नेशनल मेरिट एवार्डी रामेश्वर सिंह ने बनाया। इसी तरह इसी तरह प्रसिद्ध शिल्पी गोदवरी सिंह, बेचन मौर्य, राजाबाबू मौर्य, गणेश प्रसाद, सिंकू प्रजापति, अशोक मौर्य, मन्ना लाल, गोविंद आदि कारीगर खिलौने बनाने में जुटे हैं। इनका कहना है कि लगातार मांग बढ़ रही है और आपूर्ति कठिन हो रहा है। आने वाले आयोजनों के कारण व्यापारी इसकी मांग करने लगे हैं।
बनारसी लकड़ी के खिलौने में स्किल्ड अपडेट की जरूरत है। जीआइ के कारण क्वालिटी को कायम रखने की चुनौती बन गई है। विश्व बाजार में मांग के अनुरूप बदलाव जरूरी है। बनारसी खिलौने के चटक रंग को यूरोप व अमेरिका में कम पसंद किया जाता है। कुछ नए प्रयोग के साथ उस कारोबार को ऊपर उठाने की कोशिश चल रही है।- डा. रजनीकांत, निदेशक, ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन
कारीगर : 3000 से 5000
वार्षिक कारोबार : 8 से 10 करोड़ रुपये
खिलौना जगत की मांग
- पॉवरलूम की तर्ज पर खिलौने के मशीन को भी बिजली में सब्सिडी मिले
- कच्चे माल के लिए डिपो बने
- कॉमन फैसिलिटी सेंटर बनाया जाए
- कोरैया की लकड़ी का संकट
- सोलर चलित छोटी मोटर उपलब्ध हो