Move to Jagran APP

वाराणसी के गौरव ने सुलझाया चिरंजीवी तारों का रहस्य, अनंतकाल तक टिमटिमाते हैं वैंपायर तारे

अंतरिक्ष में कुछ ऐसे भी तारें हैं जो कभी नहीं टूटते। वर्ष 1953 में विख्यात अमेरिकन एस्ट्रोनामर एलेन सैंडिज द्वारा दिया गया ब्लू स्टग्लर्स सिद्धांत यही कहता है कि जब तक ब्रह्मांड है तब तक इन वैंपायर तारोंं का अस्तित्व है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 28 Dec 2020 04:49 PM (IST)Updated: Mon, 28 Dec 2020 10:26 PM (IST)
बीएचयू के युवा खगोल वैज्ञानिक गौरव सिंह।

वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। अंतरिक्ष में कुछ ऐसे भी तारें हैं, जो कभी नहीं टूटते। वर्ष 1953 में विख्यात अमेरिकन एस्ट्रोनामर एलेन सैंडिज द्वारा दिया गया 'ब्लू स्टग्लर्स सिद्धांत' यही कहता है कि जब तक ब्रह्मांड है तब तक इन वैंपायर तारोंं का अस्तित्व है। हैरत इस पर है कि अब तक इस रहस्य को किसी ने साबित नहीं किया था और न तो किसी ने देखा ही था, बस किताबों में थियरी तक सीमित रही। पहली बार बनारस के रहने वाले व बीएचयू से पढ़े हुए युवा खगोल वैज्ञानिक गौरव सिंह ने इसरो द्वारा छोड़े गए एस्ट्रोसैट सैटेलाइट के 'अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलिस्कोप' की मदद से इन 'चिरंजीवी' तारों का प्रत्यक्ष प्रमाण दुनिया के समक्ष प्रस्तुत किया है। अंतरिक्ष विज्ञान की प्रख्यात अंतरराष्ट्रीय अमेरिकी जर्नल एस्ट्रो फिजिक्स ने दस दिसंबर के अंक में इसे प्रकाशित भी किया है।

loksabha election banner

शोध में बताया गया है कि ये अमरत्व प्राप्त तारे अपने क्लस्टर समूह के रेड जायंट (यानी कि जिन तारों का जीवनकाल समाप्त हो रहा हो) तारों से द्रव्यमान (मास) ग्रहण कर अनंतकाल तक अंतरिक्ष में टिमटिमाते रहते हैं। जबकि ब्रह्मांड में अधिकतर तारों का एक निश्चित जीवनकाल होता है, सूरज जैसे तमाम तारे रेड जायंट और व्हाइट ड्वार्फ बनकर समाप्त हो जाते हैं।

इसलिए कहते हैं वैंपायर

गौरव सिंह ने अध्ययन में क्लस्टर में एक दुर्लभतम बाइनरी देखी, जिसमें पाया कि ब्रह्मांड के एक गोलाकार क्लस्टर समूह में एक ईएचबी (एक्सट्रीम होरिजेंटल ब्रांच) तारा अपने पास के वृद्ध तारे से लगातार ऊर्जा या हाइड्रोजन ग्रहण कर रहा है, जिससे उसकी मौत तेजी से हो जाती है। इसीलिए आम भाषा में इसका नाम 'वैंपायर' तारा रखा गया है।

लाखों तारे हैं एक क्लस्टर में

इन चिरंजीवी तारों को वैज्ञानिक भाषा में ब्लू स्टगलर्स भी कहा गया है। इनका एक क्लस्टर है, जिसमें दस हजार से लेकर लाखों की संख्या में ये मौजूद हैं।

इन तारों में हाइड्रोजन कभी नहीं होता खत्म

सूर्य में परमाणु संलयन के माध्यम से हाइड्रोजन हीलियम में परिवर्तित होकर उसके केंद्र (कोर) वाले हिस्से में जमा हो जाता है, जिससे सूरज का जीवनकाल धीरे-धीरे अपने अवसान पर पहुंच जाता है। इन तारों में भी यही घटना घटती है, लेकिन हाइड्रोजन की आपूर्ति के लिए ये चिरंजीवी तारें आस-पास के वृद्ध तारों को स्त्रोत बना लेते हैं।

बीएचयू से हासिल की खगोल की विद्या

गौरव ने बीएचयू के भौतिक विज्ञान विभाग से स्नातक और स्नातकोत्तर करने के बाद नैनीताल स्थित आर्यभट रिसर्च इंस्टीट्यूट में शोध कार्य कर रहे हैं। उन्होंने इस शोध काफी हिस्सा टेलिस्कोप और अन्य भौतिकी उपकरणों के साथ बनारस स्थित अपने आवास पर ही रहकर अंजाम दिया था। उन्हें इस शोध कार्य में इसरो के एस्ट्रोसैट सैटेलाइट समेत आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के खगोल विज्ञानी डा. रमाकांत यादव, आइआइए, बंगलुरु की डा. स्नेहलता साहू और डा. अन्नपूर्णी सुब्रमण्यम ने भी काफी योगदान दिया है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.