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Gyanwapi of Varanasi : मोक्ष के संकल्पों की यात्रा का ज्ञानवापी से आरंभ, स्कंद पुराण के काशी खंड में दर्ज आख्या

देवाधिदेव महादेव की नगरी में मोक्ष संकल्प की पूर्ति के लिए ज्योतिर्लिंग स्वरूप काशी की परिक्रमा का विधान शास्त्रों में वर्णित है। मान्यता है इस 25 कोस क्षेत्र में 33 कोटि देवताओं का वास है। इनकी समग्र रूप में परिक्रमा को पंचकोसी परिक्रमा कही जाती है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 13 Apr 2021 07:30 AM (IST)Updated: Tue, 13 Apr 2021 01:47 PM (IST)
Gyanwapi of Varanasi : मोक्ष के संकल्पों की यात्रा का ज्ञानवापी से आरंभ, स्कंद पुराण के काशी खंड में दर्ज आख्या
मोक्ष के संकल्पों की यात्रा का ज्ञानवापी से आरंभ

वाराणसी, जेएनएन। देवाधिदेव महादेव की नगरी में मोक्ष संकल्प की पूर्ति के लिए ज्योतिर्लिंग स्वरूप काशी की परिक्रमा का विधान शास्त्रों में वर्णित है। मान्यता है इस 25 कोस क्षेत्र में 33 कोटि देवताओं का वास है। इनकी समग्र रूप में  परिक्रमा को पंचकोसी परिक्रमा कही जाती है। इसका उल्लेख 'पंचानाम क्रोशानाम समाहारा के रूप में आता है। इसका आरंभ ज्ञानवापी कूप स्थित व्यास पीठ पर संकल्प लेकर शुरू और समापन भी किया जाता है। स्कंद पुराण के काशी खंड में दर्ज ऐसे आख्यानों-विधानों को भी ज्ञानवापी के पुरातात्विक सर्वेक्षण के लिए चले मुकदमे में वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी की ओर से साक्ष्य के तौर पर प्रस्तुत किया गया।    

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इसमें बताया गया है कि भगवान शिव ने किस तरह अपने भाष्य में ज्ञानकूप में खुद का वास और इसे मुक्ति प्रदाता बताया है। काशी का विद्वत समाज बताता है कि इससे ही ज्ञानवापी, ज्ञानकूप, व्यासपीठ मोक्ष मुक्ति के लिए अनादि काल से की जाने वाली पंचकोसी परिक्रमा का संकल्प प्रदाता बन जाता है। श्रद्धालु ज्ञानकूप स्थित व्यास पीठ पर भगवान विश्वेश्वर को साक्षी मान कर जाने-अनजाने हुए कायिक, वाचिक व मानसिक पापों के शमन के निमित्त परिक्रमा का संकल्प लेते हैैं। इसे मुकदमे में शामिल रहा व्यास परिवार सदियों से संकल्प दिलाता रहा है। इसके बाद मणिकर्णिका कुंड में स्नान कर यात्रा शुरू होती है जो पांच-पांच कोस के पांच पड़ाव यानी कंदवा, भीमचंडी, रामेश्वर, पांचों पंडवा, कपिलधारा होते मणिकर्णिका होते पुन: ज्ञानकूप व्यास पीठ पर संकल्प छुड़ाकर विराम पाती है।

श्रीकाशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी बताते हैैं कि ज्ञानवापी कूप पर श्रद्धालु संकल्प छुड़ाता है कि- 'हे ज्ञानवापी के पीठाधीश्वर मैैं पंचकोसी परिक्रमा यात्रा कायिक, वाचिक, मानसिक  रूप से आपको समर्पित करता हूं। मेरा प्राण छूटे तो आपकी शरणागति प्राप्त हो। इसमें तीन प्रकार की मुक्ति (सायुज्य, सामिप्य व शालोक्य) का विधान है। स्कंद पुराण में उल्लेख आता है कि भगवान शिव माता पार्वती से कहते हैैं कि 'जीवते अन्न दातृत्वम मरणे मोक्षो ददाम्यहम। यानी हे पार्वती जो भी काशी का वासी है, सबको तुम अन्न दान करोगी, मरने वाले सभी को मैैं मोक्ष प्रदान करूंगा। 'पार्वती ऋते ज्ञानान्न मुक्ति: यानी बिना ज्ञान के मोक्ष नहीं होता का हवाला देती हैैं तो भगवान शिव निवारण करते हैैं कि इसीलिए ज्ञानवापी है जो मुक्ति का संकल्प दिलाती है। ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार मान्यता है कि अज्ञातवास की अवधि में पांडवों ने भी पंचकोसी यात्रा की और उन्हेंं युद्ध में विजय मिली। शिवपुर स्थित पड़ाव पर पांडवों द्वारा स्थापित शिवलिंग उनके ही नाम से जाने जाते हैं।


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