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Gyanvapi Mosque News : 15 अगस्त 1947 की स्थिति जानने को सर्वेक्षण की उठी थी मांग, पेनीट्रेनिंग रडार की दी थी अनुमति

ज्ञानवापी का विवादित स्थल विश्वनाथ मंदिर का एक अंश है इसलिए एक अंश की धार्मिक स्थिति का निर्धारण नहीं किया जा सकता है बल्कि परिसर का भौतिक साक्ष्य लिया जाना जरूरी है ताकि 15 अगस्त 1947 को विवादित स्थल की धार्मिक स्थिति क्या थी इसका निर्धारण किया जा सके।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 18 May 2022 01:38 PM (IST)Updated: Wed, 18 May 2022 01:38 PM (IST)
ज्ञानवापी सर्वे के बाद कुछ एक तरह का स्‍वरूप सामने आ सकता है।

जागरण संवाददाता, वाराणसी : Gyanvapi Masjid Case  ज्ञानवापी परिसर में नए मंदिर के निर्माण और पूजा-पाठ को लेकर 31 साल से लंबित मुकदमे में बीते वर्ष आठ अप्रैल को सिविल जज सीनियर डिविजन (फास्ट ट्रैक) आशुतोष तिवारी की अदालत ने वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी के प्रार्थना पत्र को स्वीकार करते हुए पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया था। केंद्र व राज्य सरकार को कहा था कि सर्वे में पुरातात्विक सर्वेक्षण के पांच विख्यात पुरातत्ववेत्ताओं को भी शामिल करें। इन पांच सदस्यों में दो अल्पसंख्यक समुदाय के हों।

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पुरातत्व विज्ञान के एक विशेषज्ञ व अत्यंत अनुभवी व्यक्ति को इस कमेटी के पर्यवेक्षक की जिम्मेदारी दी जाए। कमेटी विवादित स्थल की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करे। हालांकि अदालत के इस आदेश के क्रियान्वयन पर उच्च न्यायालय की ओर से रोक है।

उस दौरान अदालत ने कहा था कि पुरातात्विक सर्वे का मुख्य उद्देश्य यह है कि विवादित स्थल पर धार्मिक ढांचा किसी अन्य धार्मिक निर्माण पर अध्यारोपण, परिवर्तन, संवर्धन अथवा अतिछाजन है? यदि ऐसा है तो उसकी निश्चित अवधि, आकार, वास्तुशिल्पीय डिजाइन और बनावट विवादित स्थल पर वर्तमान में किस प्रकार के सामग्री का प्रयोग किया गया। कमेटी यह भी खोज करे कि विवादित स्थल पर क्या कोई मंदिर हिंदू समुदाय का कभी रहा जिस पर आलोच्य मस्जिद बनाई गई या अध्यारोपित या उस पर जोड़ी गई। यदि हां तो उसकी निश्चित अवधि, आकार, वास्तुशिल्पीय डिजाइन और बनावट के विवरण के साथ किस हिंदू देवता अथवा देवतागण को समर्पित था।

सर्वे के लिए पेनीट्रेनिंग रडार की दी थी अनुमति

कोर्ट ने कहा था कि कमेटी विवादित स्थल के धार्मिक निर्माण के प्रत्येक भाग में प्रवेश कर सकेगी तथा जांच जीपीआर (ग्राउंड पेनीट्रेटिंग रडार) अथवा जीवो रेडियोलाजी सिस्टम अथवा दोनों का प्रयोग कर सर्वेक्षण करेगी। समानांतर खोदाई तभी होगी जब कमेटी इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि ऐसी खोदाई से निश्चित निर्णय बाबत अवशेष जमीन के नीचे मिलने की संभावना है। सर्वे के दौरान प्राचीन कलाकृति जो वादी अथवा प्रतिवादी को संबल प्रदान कर रही है, को सुरक्षित रखा जाए। यदि किसी गहरी खोदाई से वर्तमान ढांचा गंभीर रूप से प्रभावित होता है अथवा कमेटी ऐसा निर्णय लेती है तो फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी और बाहरी माप, नक्शा, ड्राइंग से पुरातात्विक अवशेष को दर्ज किया जाए और उसे हटाया न जाए। सर्वे के दौरान कमेटी यह सुनिश्चित करे कि विवादित स्थल पर मुस्लिम समुदाय के लोगों के नमाज अदा करने में रुकावट न हो।

सर्वे कार्य से नमाज अदा करने की सहूलियत देना संभव प्रतीत नहीं होता हो तो तब कमेटी कोई दूसरा समुचित स्थान नमाज अदा करने के लिए मस्जिद के परिसर में उपलब्ध कराए। कमेटी सर्वे कार्य की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी होगी। सर्वे कार्य पूर्ण होने के बाद कमेटी अपनी संपूर्ण रिपोर्ट बंद लिफाफे में न्यायालय में प्रस्तुत करे। अदालत ने आदेश की प्रति केंद्रीय सांस्कृतिक मंत्रालय, केंद्रीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के निदेशक, प्रदेश के प्रमुख सचिव, पुलिस महानिदेशक, जिलाधिकारी और पुलिस आयुक्त को आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजने का आदेश दिया था।

15 अगस्त 1947 की स्थिति जानने को सर्वेक्षण की उठी थी मांग

पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की प्रार्थना पत्र पर सुनवाई के दौरान वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने दलील दी थी कि वर्तमान वाद में विवादित स्थल की धार्मिक स्थिति 15 अगस्त 1947 को मंदिर की थी अथवा मस्जिद की, इसके निर्धारण के लिए मौके के साक्ष्य की आवश्यकता है। चूंकि कथित विवादित स्थल विश्वनाथ मंदिर का एक अंश है इसलिए एक अंश की धार्मिक स्थिति का निर्धारण नहीं किया जा सकता है, बल्कि ज्ञानवापी के पूरे परिसर का भौतिक साक्ष्य लिया जाना जरूरी है ताकि 15 अगस्त 1947 को विवादित स्थल की धार्मिक स्थिति क्या थी इसका निर्धारण किया जा सके।

विजय शंकर रस्तोगी ने बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डा. एएस आल्टेकर की लिखित 'हिस्ट्री आफ बनारस पुस्तक प्रस्तुत किया। पुस्तक में ह्वेनसांग द्वारा विश्वनाथ मंदिर के ङ्क्षलग की सौ फीट ऊंचाई और उस पर निरंतर गिरती गंगा की धारा के संबंध में उल्लेख किया गया था। इन ऐतिहासिक तथ्यों का जिक्र करते हुए कहा कि प्राचीन विश्वनाथ मंदिर के ध्वस्त अवशेष प्राचीन ढांचा के दीवारों में अंदरुनी और बाहरी विद्यमान हैं। पुरानी मंदिर के दीवारों और दरवाजों को चुनकर वर्तमान ढांचे का रूप दिया गया है। पुराने विश्वनाथ मंदिर के अलावा पूरे परिसर में अनेक देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर थे जिनमें से कुछ आज भी विद्यमान हैं। खोदाई करके उनके चिह्न देखे जा सकते हैं। मौके के 35 फोटोग्राफ्स भी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए गए थे। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड व अंजुमन इंतजामिया मसाजिद ने पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की इस अर्जी पर आपत्ति जताई थी।


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