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CWG 2018: वाराणसी की पूनम यादव ने दिलाया भारत को पांचवां स्वर्ण पदक

ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में भारोत्तोलन में कांस्य पदक जीतने वाली पूनम ने जार वर्ष की मेहनत के बाद आज इसको स्वर्ण पदक में बदल दिया है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Sun, 08 Apr 2018 12:27 PM (IST)Updated: Sun, 08 Apr 2018 02:23 PM (IST)
CWG 2018: वाराणसी की पूनम यादव ने दिलाया भारत को पांचवां स्वर्ण पदक
CWG 2018: वाराणसी की पूनम यादव ने दिलाया भारत को पांचवां स्वर्ण पदक

वाराणसी (जेएनएन)। बेहद नाजुक मानी जाने वाली युवती ने लोहे से ऐसा प्रेम किया कि अब तो वह इसको उठाकर स्वर्ण पदक जीतने लगी है। बात हो रही है वाराणसी के दादुपुर गांव की पूनम यादव की। ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में भारोत्तोलन में कांस्य पदक जीतने वाली पूनम ने चार वर्ष की मेहनत के बाद आज इसको स्वर्ण पदक में बदल दिया है।

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वाराणसी के किसान परिवार की बेटी पूनम रेलवे में टीटीई के पद पर कार्यरत हैं। आज आस्ट्रेलिया के गोल्डकोस्ट में उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स के भारोत्तोलन में भारत के लिए पांचवां स्वर्ण पदक जीता। उनके स्वर्ण पदक जीतने की खबर पर गांव में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। उनके पिता कैलाश यादव यहां सामान्य किसान हैं। उनकी सफलता पर उनके घर पर बधाई देने के लिए हुजूम उमड़ा हुआ है।

वाराणसी के दादुपुर गांव की पूनम यादव ने ऑस्ट्रेलिया के गोल्डकोस्ट में चल रहे कॉमनवेल्थ गेम्स में 69 किग्रा में भारोत्तोलन का गोल्ड जीता। पूनम ने यह पदक कुल 222 किग्रा का वजन उठा कर जीता। स्नैच में 100, क्लीन एंड जर्क में 122 किग्रा वजन उठाया। इससे पहले पूनम ने स्कॉटलैंड के ग्लास्गो में हुए कामनवेल्थ में कांस्य पदक जीता था। भारत की पूनम यादव ने 69 किलो वर्ग कैटिगरी में में भारत की झोली में पांचवा गोल्ड डाल दिया। 

पूनम यादव के स्वर्ण पदक जीतने वा वाराणसी के सांसद तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उनको बधाई दी है। इनके साथ पूरे देश में पूनम की जीत पर खुशी है। बनारस में उनके घर सुबह से ही शुभकामनाएं देने वालों का तांता लगा हुआ है। सभी एक दुसरे को मिठाइयां खिला रहे हैं।

गरीबी ऐसी की भूखे रहना पड़ता था

बेहद गरीबी में पली पूनम की मां उर्मिला संघर्ष के दौर की बात पूछते ही रो पड़ती है। उन्होंने कहा कि वह कठिन पल भूले नहीं जा सकते। जब भूखे भी रहना पड़ता था। बेटी के खेलने पर लोग ताने देते थे, आज वही सलाम करते है।

उर्मिला ने बताया कि 2014 ग्लासगो में कॉमनवेल्थ गेम्स में जब बेटी ने ब्रॉन्ज मेडल जीता तो हम लोगों के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि मिठाई बांट सके। तब पूनम के पापा कहीं से इंतजाम कर लेकर आये।

तब घर में खुशियां मनाई गयी। दादी संदेयी बताती है कि जब एक बार पूनम को वेट उठाते देखा तो खूब रोयी। डर लगता था कि इतना भारी लोहा कैसे उठाती है। पूनम खेतो में खूब मेहनत करती थी।

पिता कैलाश ने बताया कि एक बार कर्णम मल्लेश्वरी का गेम देखा जिन्होंने ओलंपिक में भारत को पदक दिलाया था। बस यहीं से सपना था कि मेरी बेटी भी मेडल लाये। जिसने आज इस सपने को सच कर दिया। 2011 में पूनम ने ग्राउंड जाना शुरू किया। घर और खेतो का सारा कामकाज भी वही करती थी। कैलाश ने बताया गरीबी के चलते पूरी डाइट भी उसे नहीं दे पाता था।

पिता कैलाश ने बताया कि पूनम वेटलिफ्टिंग के लिए तैयार हो गयी लेकिन उसे विदेश भेजने के पैसे जुटाने में मुश्किल हो रही थी। तब दो भैंसों को बेच दिया और दोस्तों-परिवारवालो से कर्ज लिया। पूनम ने 2014 ग्लासगो में कॉमनवेल्थ गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल इण्डिया को देकर प्रयास को सार्थक भी कर दिया। ब्रॉन्ज मेडल लाकर उसने सब सपना मानो पूरा कर दिया। पूनम ने अपने दम पर सारे कर्जो को भर कर अपना घर भी खड़ा कर दिया है। आज पूरा परिवार उसके स्ट्रगल को याद नहीं करना चाहता है। 


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