शास्त्रार्थ के माध्यम से महर्षि दयानंद ने हमारी परंपरा-संस्कृति और वेद का ज्ञान कराया : स्वामी सुमेधानंद
अपने शास्त्रार्थ के माध्यम से महर्षि दयानंद सरस्वती ने हमारी परंपराएं-संस्कृति क्या थी हमारे वेद क्या थे आदि का पुनस्मरण काशी के मठाधीशों को कराया।
वाराणसी, जेएनएन। अपने शास्त्रार्थ के माध्यम से महर्षि दयानंद सरस्वती ने हमारी परंपराएं-संस्कृति क्या थी, हमारे वेद क्या थे आदि का पुन:स्मरण काशी के मठाधीशों को कराया। यह बातें राजस्थान के सीकर से भाजपा सांसद स्वामी सुमेधानंद ने नरिया में चल रहे तीन दिवसीय स्वर्ण शताब्दी वैदिक धर्म महासम्मेलन के दूसरे दिन बतौर मुख्य अतिथि कही। आर्य समाज की ओर से किए गए कार्यो को गिनाते हुए स्वामी सुमेधानंद ने कहा कि स्वामी दयानंद सरस्वती ने जाति, आस्था और वर्ग आधारित सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण काम किया है।
उन्होंने सबको आर्य बनने यानी सर्वश्रेष्ठ बनने के लिए प्रेरित किया। इसलिए हम सब का कर्तव्य है कि हम उनके कार्यो को आगे बढ़ाएं। कन्या गुरुकुल द्रोणस्थली-देहरादून की आचार्य अन्नपूर्णा ने कहा कि शास्त्रार्थ परंपरा हमें वेदों से मिली है। राजा जनक से लेकर बहुत पहले राजाओं-महाराजाओं के राज्य में शास्त्रार्थ हुआ करता था। हजारों वर्षो बाद स्वामी दयानंद ने इस परंपरा को पुनर्जीवित किया। वहीं एमडीएच के चेयरमैन पद्मभूषण धर्मपाल गुलाटी ने कहा कि एक समय पश्चिमी संस्कृति के सामने अपनी संस्कृति और आस्था को कमतर समझा जाता था, ऐसे समय में स्वामी दयानंद ने हमें आत्मसम्मान और पुनर्जागरण का मार्ग दिखाया।
इससे पूर्व महर्षि दयानंद सरस्वती के जीवन संघर्ष और उनकी शिक्षाओं पर आधारित नाट्य मंचन भी किया गया। सम्मेलन में भारत के विभिन्न प्रांतों के अलावा बांग्लादेश व नेपाल से भी आर्य समाज से जुड़े लोग शामिल हैं। अंतिम दिन यानी रविवार को काशी में विशाल शोभायात्रा निकाली जाएगी। सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान सुरेशचंद्र आर्य के मुताबिक इस सम्मेलन की सफलता से उत्साहित होकर बड़ी संख्या में आर्यजन शोभायात्रा में शामिल होने काशी पहुंच रहे हैं।