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वाराणसी के सेवापुरी में तुलसी की खेती पलायन रोकने में मददगार, प्रवासी श्रमिकों को मिल रहा रोजगार

वाराणसी के सेवापुरी में तुलसी की खेती ने वहां के किसानों को मजबूती प्रदान कर रहा है। इसके अलावा पलायन रोकने के साथ ही प्रवासी श्रमिकों को रोजगार भी मिल रहा है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 22 Jul 2020 12:34 PM (IST)Updated: Wed, 22 Jul 2020 05:40 PM (IST)
वाराणसी के सेवापुरी में तुलसी की खेती पलायन रोकने में मददगार, प्रवासी श्रमिकों को मिल रहा रोजगार
वाराणसी के सेवापुरी में तुलसी की खेती पलायन रोकने में मददगार, प्रवासी श्रमिकों को मिल रहा रोजगार

वाराणसी, जेएनएन। काशी में प्रवासी श्रमिकों को अब तुलसी की खेती से रोजगार मिल गया है। अब वे वापस दूसरे प्रदेशों मे जाने को तैयार नहीं है। विश्व की सांस्कृतिक नगरी काशी से तीस किलो मीटर दूर सेवापुरी ब्‍लाक में वरुणा नदी के तट पर बसा गैरहां गांव को तुलसी की खेती नेे खुशहाल बना दिया है। तीन दर्जन से अधिक परिवार इसी खेती  से अपना जीवन आगे बढ़ा रहे हैं। सरकारी मदद नहीं मिलने के बाद भी गांव तरक्की के रास्ते पर चल पड़ा है। तुलसी की खेती ने नवयुवकों का गांव से पलायन ही नहीं रोका, बल्कि एक दर्जन से अधिक प्रवासी श्रमिकों को रोजगार भी मुहैया करा रहा है और इससे तीन दर्जन से अधिक परिवार जुड़ गए है।

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प्रति बिस्‍वा दो से ढाई हजार लागत, किसानों को सात से दस हजार रुपये तक लाभ

यहां के लोग तुलसी की माला बना कर लुम्‍बनी (नेपाल), इलाहाबाद व काशी के व्यापारी को बेचते हैं। यहां पर प्रतिदिन हजारों माला तैयार की जाती है। सविता माली, बदामी देवी, गायत्री माली, विकास माली, बहादुर माली, सरजू माली, राजकुमार, सुभाष, लालजी का कहना है कि  हम लोगों के पास एक इंच जमीन नही है। बटाई पर जमीन लेकर तुलसी की खेती करते हैं। प्रति बिस्‍वा पांच सौ रूपये साल पर जमीन लेकर उसकी तैयारी फरवरी में होती है। प्रति बिस्‍वा दो से ढाई हजार लागत आता है, जिसमें सात से दस हजार रुपये तक लाभ लेते है। इसी से परिवार का सारा खर्च चलता है।

60 से सौ रूपये प्रति सैकड़ा बिकती है माला

मुंबई कांदिवली में डिजाइन पाइप का कार्य करने वाले भरत माली, रामराज माली व दमन से आए भोनू माली, का कहना है कि हम लोग भी तुलसी की खेती को अपनाएंगे। फरवरी में तुलसी की खेती शुरू कर उसकी निराई, गुड़ाई व पानी के साथ खाद दिया जाता है| एक वर्ष में सात से आठ बार तुलसी की पत्ती की कटान होती है। इसके बाद माला तैयार किया जाता है। माला लेने व्यापारी खुद आते हैं। इसके अलावा ये लोग मंडियों में भी लेकर जाते हैं। बाजार मिला तो 60 से सौ रूपये प्रति सैकड़ा माला बिकती है| गैरहां गांव में लगभग बीस से तीस एकड़ में खेती होती है। तुलसी की माला को हनुमान जी को चढ़ाया जाता है।

सरकारी मदद मिलती तो बदल जाता तस्वीर

तुलसी की खेती करने वालों का कहना है कि अब तक सरकार की तरफ से कोई अनुदान या सहायता नहीं मिला है। जमीन बटाई पर लेकर खेती करते हैं। यदि सरकार जमीन व अनुदान मुहैया करा दे तो गांव का नक्शा ही बदल जाएगा।

गांव से पलायन रोकने में मददगार

तुलसी की खेती से गांव के लोगों का पलायन रूक गया है। यहां के लोग गांव छोड़कर शहरों की तरफ रुख कर लिए थे लेकिन जब से तुलसी की खेती शुरू हुई, लोगों का शहरों से मोह भंग हो गया। चख्खन माली व झिम्मल माली का कहना है कि यदि सरकार हमारी तरफ ध्‍यान दे दें तो यह गांव मॉडल के रूप में उभर सकता है।


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