Ram Temple : तुलसी के मानस में - 'कौशल्या जब बोलन जाहीं- ठुमक-ठुमक प्रभु चलहिं पराहीं'
श्रीराम जन्मभूमि के शिलान्यास के बाद मंदिर निर्माण का क्रम प्रारंभ हो गया है।
वाराणसी, जेएनएन। श्रीराम जन्मभूमि के शिलान्यास के बाद मंदिर निर्माण का क्रम प्रारंभ हो गया है। प्रभु रामलला के बाल प्रसंगों का बड़ा ही सुंदर वर्णन जगत कवि तुलसीदास ने रामचरित मानस में किया है। इस पर व्याख्या करते हुए बीएचयू, कला संकाय के पूर्व प्रमुख प्रो. श्रीनिवास पांडेय बताते हैं कि बाल लीला पर उनकी प्रसिद्ध कृति है। बंदऊ बाल रूप सोई रामू, सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू में की है।
प्रो. पांडेय बताते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास बालक राम के सौंदर्य, उनके लावण्य और बाल क्रीड़ाओं पर मुग्ध हैं। पिता महराज दशरथ जब उन्हे भोजन के लिए पुकारते हैं तो वे अपने बाल सखाओं को छोड़कर नहीं आते-
भोजन करत बोल जब राजा, नहीं आवत तजि बाल समाजा। उसके बाद जब अंबा कौशल्या बुलाती हैं तब भी बालक ठुमक-ठुमक कर भागते हैं। कौशल्या जब बोलन जाहीं- ठुमक-ठुमक प्रभु चलहिं पराहीं। जब बालक राम धूल-धूसरित होकर पास आते हैं तब पिता महराज दशरथ बड़े प्रेम से उन्हें अपनी गोद में बैठाकर लाड़-प्यार करने लगते हैं। धूसर धूरि भरे तनु आए, भूपति बिहसि गोद बिठाए।
तुलसी करते प्राण न्योछावर
प्रो. श्रीनिवास पांडेय के अनुसार गोस्वामी तुलसीदास जी ने कवितावली में बालक राम के सौंदर्य का अद्भुत वर्णन किया है। बालक राम के दातों की उज्ज्वलता कुंदकली के समान है। उनके गले में पड़ी मोतियों की मालाएं ऐसी लगती हैं मानो नीले बादलों के बीच बिजली अपनी चमक बिखेर रही है। उनके मुख मंडल पर घुंघराली लटें लटक रही हैं। कुंडलों की चमक से आच्छादित उनके कपोलों के सौंदर्य पर तुलसीदास जी अपने प्राण न्योछावर करते हैं। उन्होंने कुछ इस तरह इसे पंक्ति बद्ध किया है-
वर दंत की पंगति कुंद कली, अधराधर पल्लव खोलन की
चपला चमके घन बीच जगे, ज्यूं मोतिन माल अमोलन की
घरारी लटें लटकें मुख ऊपर, कुंडल लोल कपोलन की
न्योछावरी प्राण करें तुलसी, बलि जाऊं लला इन बोलन की।