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यातायात महकमे के रंगरूटों का ट्रेनिंग स्थल बन गया बनारस, सड़कों पर होते प्रयोग और जनता झेलती रोग

यातायात महकमे में जब रंगरूटों को ट्रेनिंग दी जाती है तो तैनाती के नाम पर अधिकारियों के जेहन में सबसे पहला नाम आता है बनारस।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Tue, 10 Dec 2019 10:14 AM (IST)Updated: Tue, 10 Dec 2019 10:39 AM (IST)
यातायात महकमे के रंगरूटों का ट्रेनिंग स्थल बन गया बनारस, सड़कों पर होते प्रयोग और जनता झेलती रोग
यातायात महकमे के रंगरूटों का ट्रेनिंग स्थल बन गया बनारस, सड़कों पर होते प्रयोग और जनता झेलती रोग

वाराणसी [विकास बागी]। यातायात महकमे में जब रंगरूटों को ट्रेनिंग दी जाती है तो तैनाती के नाम पर अधिकारियों के जेहन में सबसे पहला नाम आता है बनारस। बनारस को लेकर यहां से लेकर राजधानी तक आम जुमला प्रचलित है कि जिसने बनारस के किसी चौराहे की ट्रैफिक व्यवस्था संभाल ली, पूरे विश्व के किसी चौराहे की कमान संभाल सकता है। अपने दफ्तरों में बैठकर हुकुम चलाने वाले अधिकारियों का यह बयान कि बनारस में तो 60 के दशक में भी जाम लगता था, यहां का कुछ नहीं हो सकता। ऐसे बयान शर्मसार करने वाले हैं क्योंकि इस शहर में प्रतिदिन हजारों की संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं। ट्रैफिक के मोर्चे पर बयानबाजी से ऊपर अधिकारी नहीं उठ पा रहे। एसपी ट्रैफिक सड़कों पर मोर्चा लेते दिखते तो हैं लेकिन वह भी बनारस की ध्वस्त व्यवस्था के आगे बेबस हो जाते हैं क्योंकि यहां पर सरकारी महकमों में तालमेल का जबरदस्त अभाव है। सुबह आप जिस सड़क से फर्राटा भरते निकलें, वापसी में जरूरी नहीं कि वह सड़क वैसी ही मिले, किसी न किसी विभाग का कोई ठेकेदार सड़क खोद चुका होगा, आधे से अधिक सड़क पर बेतरतीब सामान फैला होगा। 

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21वीं सदी के बनारस में 90 के दशक की फोर्स, 10 लाख वाहन

बनारस की ध्वस्त यातायात व्यवस्था के पीछे एक बड़ा कारण कम ट्रैफिक पुलिसकर्मियों का होना है। 40 लाख की आबादी वाले शहर में प्रतिदिन 10 लाख से अधिक वाहन दौड़ते हैं। वाहनों को नियंत्रित करने के लिए फोर्स की कमी के चलते हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। नब्बे के दशक में जो नियतन था, कमोवेश उतनी ही तैनाती है। आबादी और वाहनों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही लेकिन सड़कों की चौड़ाई बढऩे के बजाय संकरी ही होती जा रही।

ड्यूटी को समझते हैं बोझ

चौराहे-तिराहे पर तैनात ट्रैफिक पुलिसकर्मी ड्यूटी को बोझ समझते हैं। ड्यूटी पर आने के साथ ही वाहनों के शोर से दिमाग की बत्ती इस कदर बुझ जाती है कि तुरंत सड़क का किनारा पकड़ लेते हैं। यह अलग बात है कि सड़क किनारे आराम फरमाने के बाद भी 'शिकार' पर नजर बनी रहती है। नो एंट्री में प्रवेश करने वाले वाहन हों या फिर अवैध रूप से चलने वाले आटो-रिक्शा से लेकर चौराहे-तिराहे पर लगने वाली दुकानों से वसूली होती रहती है। 

हुक्मरान निकल गए और पब्लिक जाम में 

दो-दो मंत्रियों वाले शहर बनारस में पार्किंग का जबरदस्त अभाव है। जब भी कोई नया अधिकारी जिले का चार्ज लेता है या कोई जनप्रतिनिधि कुर्सी पाता है तो अपनी प्राथमिकता में शहर की यातायात व्यवस्था को दुरूस्त करने का वायदा तो करता है लेकिन कभी उस पर कायम नहीं रह पाता। आला अफसरों की इच्छाशक्ति में कमी, विभागों में तालमेल के अभाव के चलते बीते तीन दशक से शहर को कहीं एक ढंग की पार्किंग नहीं मिल सकी। कचहरी हो या फिर शहर कोई अन्य भीड़भाड़ वाला इलाका, लोग अपने वाहन सड़क पर खड़ा करने को मजबूर हैं क्योंकि यहां के हुक्मरान हूटर बजाते हुए निकल जाते हैं और पब्लिक जाम में फंसी रहती है।

यहां बंद, वहां बंद

ट्रैफिक महकमा भी यातायात व्यवस्था सुधारने की बजाय शहर के किसी भी हिस्से में कहीं बैरियर लगाकर रास्ता बंद कर देता तो कहीं डिवाइडर। शहर में कई स्थानों पर डिवाइडर तो लगाया गया लेकिन उन सड़कों पर से अतिक्रमण हटवाने के लिए किसी अधिकारी ने कोई कसरत नहीं की। हो हल्ला मचने पर एक हफ्ते का अभियान चलाकर अपनी फाइल दुरूस्त कर लेते।

थानेदार भी कम नहीं 

कमिश्नर, डीएम, एसएसपी से लेकर अन्य विभागीय आला अधिकारियों की होने वाली बैठकों में कहा जाता है कि क्षेत्र में अतिक्रमण होने पर थानेदार जिम्मेदार होंगे। थानेदार भी एक दिन डंडा चलाकर थाने में घुस जाते हैं क्योंकि अतिक्रमण हटने से उनकी जेब भी हल्की हो जाती है। 

फोर्स का संकट

वर्तमान तैनाती होने चाहिए
एसपी  01 - 01
सीओ 01 - 02
टीआइ  04 - 05
टीएसआइ 15 - 37 
मुख्य आरक्षी 50  - 202
आरक्षी 303- 600
होमगार्ड 292- 300

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