होलिका दहन आज रात नौ बजे के बाद, सुबह 9.19 बजे लग रही पूर्णिमा
इस बार चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा की हानि होने से होली 21 मार्च सुबह 7.04 बजे से अनुदया तिथि में मनाई जाएगी।
वाराणसी, जेएनएन। सनातन धर्म के चार प्रमुख त्योहारी उत्सवों में रंग पर्व होली प्रमुख है। फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका दहन कर अगली सुबह चैत्र कृष्ण प्रतिपदा में होली खेलने की परंपरा है। इस बार चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा की हानि होने से होली 21 मार्च सुबह 7.04 बजे से अनुदया तिथि में मनाई जाएगी। होलिका दहन 20 मार्च की रात नौ बजे के बाद किया जाएगा। फाल्गुन पूर्णिमा 20 मार्च सुबह 9.19 बजे लग रही है जो 21 मार्च को प्रात: 7.03 बजे तक रहेगी।
भद्रा में होलिका दाह निषेध
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर कार्यपालक समिति के पूर्व सदस्य ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार होलिका दहन में पूर्व विद्धा प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा ली जाती है। यह यदि दो दिन प्रदोष व्यापिनी मिले तो दूसरी ही लेनी चाहिए। शास्त्रीय मान्यता है कि प्रतिपदा, चतुर्दशी, दिन और भद्रा में होली जलाना सर्वथा त्याज्य है। हर फाल्गुन पूर्णिमा को भद्रा होती है। ऐसे में भद्रा को त्याग कर ही होलिका दाह किया जाता है। मान्यता है कि भद्रा में होलिका दहन से जनसमूह का नाश होता है। होलिका दहन के साथ ही फागुन शुक्ल अष्टमी से लगा होलाष्टक खत्म होगा।
होलिका दहन का मंत्र
होलिका दहन के समय 'ओम होलिकाये नम:Ó मंत्र पढ़ते हुए ढूंढा राक्षसी का विधि-विधान से पूजन करना चाहिए।
होली की कथा
होली के पीछे कथा है कि सप्त दीप के राजा हिरण्यकश्यप खुद को ईश्वर मानता था। उसका पुत्र प्रह्लïाद देवोपासक था। प्रह्लïाद की श्रीहरि के प्रति असीम श्रद्धा-भक्ति के कारण अग्नि में न जलने का वरदान के बाद भी बुआ होलिका जब उसे अग्नि में लेकर बैठी तो वह खुद स्वाहा हो गई लेकिन प्रह्लïाद बच गए। बुराई पर अच्छाई की जीत के संदेश संग विजय प्रतीक हर वर्ष होली मनाने की परंपरा का जन्म हुआ। वह दिन फाल्गुन पूर्णिमा ही थी, तभी से सनातन धर्म में हर फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका दाह कर दूसरे दिन रंगोत्सव की परंपरा है। स्नान दान की फाल्गुन पूर्णिमा भी इस बार 21 मार्च को मनाई जाएगी।