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तिक्त, कषाय, कटु औषधि और पंचकर्म से मधुमेह पर पूरी नियंत्रण संभव

वाराणसी: डायबिटीज यानी मधुमेह या प्रमेह एक ऐसा रोग है। जिससे बहुत लोग प्रभावित होते हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 24 Apr 2018 12:17 PM (IST)Updated: Tue, 24 Apr 2018 05:14 PM (IST)
तिक्त, कषाय, कटु औषधि और  पंचकर्म से मधुमेह पर पूरी नियंत्रण संभव
तिक्त, कषाय, कटु औषधि और पंचकर्म से मधुमेह पर पूरी नियंत्रण संभव

वाराणसी: डायबिटीज यानी मधुमेह या प्रमेह एक ऐसा रोग है। जिससे बहुत लोग प्रभावित होते हैं। अभी एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में इंसुलिन का प्रयोग कर इस पर नियंत्रण करने का प्रयास किया जाता है। दूसरी ओर आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में इस रोग का सटीक इलाज उपलब्ध है। तिक्त, कषाय व कटु औषधियों, पंचकर्म और योग से इस बीमारी पर पूरी तरह से नियंत्रण पाया जा सकता है।

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उपचार

विजयसार - यह औषधि प्रमेह के उपचार में अति लाभदायक है.

जामुन बीज चूर्ण: जामुन के सूखे हुए बीजों का चूर्ण दिन में दो से तीन बार पानी के साथ लेने से लाभ मिलता है।

गुडमार पत्र चूर्ण: एक चम्मच गुडमार के सूखे पत्तों का चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लेने से रोग के उपचार बहुत लाभ मिलता है.

न्यगरोधात्वक चूर्ण : बरगद के पेड़ की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से भी इस रोग नियंत्रण रहता है।

शिलाजीत : यह कफज रोगो व प्रमेह में बहुत ही उत्तम बताया है। यह एक रसायन औषधि है जो मधुमेह के कारण उत्पन्न कमज़ोरी को नियंत्रित करने में बहुत सहायक होता है।

मेथी दाना : एक चम्मच मेथी के दाने एक गिलास पानी में रात भर भिगोकर रखकर सुबह में उनका पानी पीना चाहिए।

करेले का रस : 20 मिलीलीटर करेले का रस हर रोज़ सुबह लेने से बहुत लाभ मिलता है।

ऑवला: 20 मिलीलीटर ताज़ा ऑवला का रस या तीन से पांच ग्राम चूर्ण रोजना लेने से लाभदायक।

हरिद्रा (हल्दी) : ऑवला के रस के साथ हल्दी का सेवन से मधुमेह नियंत्रित रहता है। हल्दी को दूध के साथ भी सेवन कर सकते हैं.

इसके अलावा वसंतकुसुमाकर रस, शिलाजत्वादी वटी, प्रमेहगज केसरी रस, चन्द्रप्रभा वटी, हरिशकर रस का प्रयोग करके मधुमेह पर विजय पायी जा सकती है।

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भोजन

ऐसा कच्चा भोजन अधिक मात्रा में खाए जिनमें फाइबर अधिक होता है। इससे शरीर में ब्लड शुगर का स्तर संतुलित रहता है।

- आयुर्वेद वैद्य के निर्देशन में आहार चार्ट बनवा कर उसका पूरा पालन करे।

- भोजन धीरे-धीरे व थोड़ा-थोड़ा खाना चाहिए।

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कारण

व्यायाम की कमी, मधुर भोजन जरुरत से अधिक तथा आनुवांशिक कारण।

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लक्षण

अत्यधिक प्यास और भूख लगना। नजर का धुंधलापन व बार-बार मूत्र त्याग (जब रात में आपको 3 बार या उससे ज्यादा उठना पड़े)। थकान (खासकर खाना खाने के बाद) व चिड़चिडापन। घाव न भर रहे हों या धीरे-धीरे भरें।

------------------------छह माह में पूरी तरह से नियंत्रित

आयुर्वेदिक औषधि, पंचकर्म और योग से इस बीमारी पर छह माह के अंदर नियंत्रण पाया जा सकता है। उसके बाद किसी दवा की आवश्यकता नहीं होती है। छह महीने के बाद बस हर महीने वैद्य से जांच करते रहना चाहिए। अब तक सौ से अधिक मरीज इस पद्धति से स्वास्थ्य हो चुके है।

वैद्य अजय कुमार गुप्ता, प्रवक्ता, कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग,

राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय, वाराणसी।


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