पड़ोसी के घर पर कंकड़ फेंकने से मिलती है कलंक से मुक्ति, जानिए कब और कैसे लगता है कलंक
भाद्रपद मास का शुक्ल पक्ष पर्व-उत्सवों का पखवारा माना जाता है। इसमें शास्त्र के साथ ही लोक के रंग समाहित होते हैं।
वाराणसी, जेएनएन। भाद्रपद मास का शुक्ल पक्ष पर्व-उत्सवों का पखवारा माना जाता है। इसमें शास्त्र के साथ ही लोक के रंग समाहित होते हैं। यह शिव-पार्वती को समर्पित पर्व हरितालिका तीज से शुरू हो कर पक्ष के चौदहवें दिन अनंत चतुर्दशी पर विराम पाता है। इसके साथ ही काशी में उत्सवी रंग चटख हो जाता है।
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को ढेलहिया चौथ भी कहा जाता है। ढेलहिया चौथ पर चांद के दर्शन से कलंक लगता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा को देखने से चंद्र दोष होता है। अत: रात 8.41 बजे यानी चंद्रास्त के समय तक चंद्रमा की ओर नहीं देखना चाहिए।
ऋषि पराशर ने चौथ का चंद्रमा देखने का दोष बताया है। कहा है कि शुक्ल पक्ष की चौथ का चांद देखने से मिथ्या दोष (कलंक) लगता है। आवश्यकता पर इस समय के बाद ही आकाश की ओर देखना चाहिए। अनजाने में चंद्र दर्शन पर शास्त्रों ने परिहार बताया है। विष्णु पुराण में दोष शांति मंत्र 'सिंह प्रसेन मनोवधित सिंहो जाम्बवत:, अत: सुकुमार कुमारो दीशव हेत स्मंतक:। वर्णित है। इसके अलावा स्मंतक मणि की कथा सुननी चाहिए। लोक में परिहारार्थ पड़ोसी के घर पर कंकड़ फेंकने से भी कलंक मुक्ति का प्रचलन है।