अनमोल बौद्धिक खजाने को दीमकों से खतरा, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय प्रशासन कई दुर्लभ पांडुलिपियों को बचाने पर नहीं दे रहा ध्यान
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन पुस्तकालय में पांडुलिपियों के रूप में संरक्षित बौद्धिक खजाने पर अब दीमकों की नजर पड़ गई है। कई दुर्लभ पांडुलिपियों को दीमकें चाट चुकी हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन का ध्यान इस ओर नहीं है। समय रहते बची हुई पांडुलिपियों को संरक्षित करने की जरूरत है।
वाराणसी, जेएनएन। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन पुस्तकालय में पांडुलिपियों के रूप में संरक्षित बौद्धिक खजाने पर अब दीमकों की नजर पड़ गई है। कई दुर्लभ पांडुलिपियों को दीमकें चाट चुकी हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन का ध्यान इस बौद्धिक खजाने की ओर नहीं है। यदि समय रहते बची पांडुलिपियों को संरक्षित नहीं किया गया तो बौद्धिक खजाना धूल में मिल जाएगा।
ऐतिहासिक सरस्वती भवन पुस्तकालय में एक लाख 11 हजार 132 पांडुलिपियां लाल पोटली (मेडिकेटेड क्लाथ) में सहेज कर रखी गई हैं। अफसोस की बात यह है कि बजट के अभाव में चार दशक के बाद भी इसके मेडिकेटेड क्लॉथ (खारवायुक्त कपड़ा) बदले नहीं जा सके हैं। इसकी मियाद वर्षों पहले ही खत्म हो चुकी है। यही नहीं, जिस रसासनयुक्त कपड़े में इन्हें वर्षों पहले संरक्षित करके रखा गया था वे अब तार-तार हो चुके हैं। कीड़े-मकोड़ों से बचाने के लिए नैप्थलीन की ईंट रखी जाती है। इस ईंट की खरीद भी लंबे समय से नहीं हुई। भवन में नमी की शिकायत बनी रहने से इन्हें संरक्षित रख पाना कठिन होता जा रहा है। पुस्तकालय के रखरखाव के मद में सालाना केवल पांच लाख रुपये मिलते हैं। यह रकम केवल किताबों की झाड़-पोंछ में खर्च हो जाती है। चार साल पहले पांडुलिपियों के कपड़े बदलने के बजाय उन पर सिर्फ दवा का छिड़काव किया गया था ताकि उन्हें कीटाणुओं से बचाया जा सके। हालांकि यह प्रयोग कई धरोहरों के लिए नुकसानदेह साबित हुआ। दुर्लभ पांडुलिपियों का अध्ययन करने के लिए सिर्फ भारतीय विद्वान ही नहीं, बल्कि विदेशी जिज्ञासु भी सरस्वती भवन पुस्तकालय पहुंचते रहते हैं। पांडुलिपियों का संग्रह ज्ञान व शोध के लिहाज से काफी उपयोगी है।
पुस्तकालय के रखरखाव के लिए अलग से कोई विशेष अनुदान नहीं मिला
विश्वविद्यालय परिसर में पुस्तकालय के तीन भवन हैं। इनमें सरस्वती भवन में मुद्गित, पांडुलिपि व विस्तार के तीन प्रभाग हैं। इनके भवन अलग-अलग हैं लेकिन पुस्तकालय के रखरखाव के लिए अलग से कोई विशेष अनुदान लंबे समय से नहीं मिला। इसके कारण दुर्लभ पांडुलिपियों के रखरखाव में दिक्कत आ रही है।
-डा. सूर्यकांत, लाइब्रेरियन
इंफोसिस फाउंडेशन से समझौते पर चल रही बातचीत
पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए संस्कृत संवर्द्धन प्रतिष्ठानम के माध्यम से इंफोसिस फाउंडेशन से समझौते पर बातचीत चल रही है। रसायनयुक्त कपड़ों के स्थान पर अब परंपरागत तरीकों को अपनाने पर विचार किया जा रहा है। इसमें लौंग, काली मिर्च, जायफल आदि का प्रयोग शामिल है।
-प्रो. राजाराम शुक्ल, कुलपति