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जागरण विमर्श : सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता पर बात का यही सही समय

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर बात करने का यही सबसे उपयुक्त समय है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 25 Feb 2020 03:30 PM (IST)Updated: Tue, 25 Feb 2020 03:30 PM (IST)
जागरण विमर्श : सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता पर बात का यही सही समय
जागरण विमर्श : सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता पर बात का यही सही समय

वाराणसी, जेएनएन। दुनिया की दूसरी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है भारत। आतंकवाद को लेकर अमेरिका और भारत का रुख स्पष्ट है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर बात करने का यही सबसे उपयुक्त समय है। यदि इस मामले पर अमेरिका का साथ मिला तो दुनिया के अन्य देशों के विरोध का औचित्य नहीं रहेगा। इसमें कोताही बिल्कुल नहीं करनी चाहिए। यह कहना था यूपी कॉलेज में राजनीति विज्ञान विभाग की अध्यक्ष डा. अलका गुप्ता का। वह सोमवार को जागरण विमर्श में 'भारत-अमेरिका मैत्री में कौन सा पक्ष मजबूत है' विषय पर विचार व्यक्त कर रहीं थीं।

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कहा कि एशिया में देश की स्थिति बहुत सशक्त है, जो अमेरिका के लिए फायदेमंद है। वहीं चीन के मुकाबले भारतीय बाजार अमेरिकी नीतियों के अधिक मुफीद है। भारत की मजबूती व स्थिरता के लिए चीन व पाकिस्तान को सबक सिखाना भी जरूरी है, जिसमें अमेरिका से हमारी दोस्ती अहम भूमिका निभा सकती है। हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के साथ ही सबसे अधिक युवाशक्ति संपन्न देश भी हैं। नासा में 30 फीसद वैज्ञानिक भारतीय हैं तो बड़े पैमाने पर भारतीय मूल के लोग अमेरिकी अर्थव्यवस्था को गति दे रहे हैं। दोनों देशों में रक्षा व्यापार बेहतर चल रहा है। दोनों में ऐतिहासिक समानता तो है ही संवैधानिक रूप से भी दोनों में एकरूपता है। इन सबके बीच अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत दौरे का लक्ष्य भारतीय मूल के वोटरों को प्रभावित करना है। इसलिए बड़े समझौतों की उम्मीद नहीं की जा सकती। मगर छोटे-छोटे समझौते हो सकते हैं, जिनके भारत के हित में दीर्घकालिक परिणाम होंगे।

धीरे-धीरे पिघली रिश्तों पर जमी बर्फ

शीत युद्ध के समय अमेरिका-भारत के रिश्तों में खटास थी। भारत समाजवाद का पोषक था, तो अमेरिकी नीतियां पूंजीवादी थीं। बाद में भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन भी चलाया, जिससे अमेरिका हमसे और भी दूर हो गया। 1962 में चीन के साथ युद्ध में अमेरिका ने भारत का साथ दिया। वहीं इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 1971 के युद्ध के बाद वह भारत को नजरअंदाज नहीं कर सका। मगर इस बीच 1974 व 1998 के न्यूक्लियर टेस्ट ने फिर से अमेरिका को दूर कर दिया। उसने कई तरह के प्रतिबंध लगाए। उधर, पाकिस्तान की ओर से बराबर भारत पर हमले होते रहे। इस पर अमेरिका मध्यस्थता की बात तो करता था, लेकिन वैश्विक आतंकवाद की समस्या को नजरअंदाज करता रहा। वर्ष 2001 में जब उसने इसका दंश झेला तो वह वैश्विक आतंकवाद को समाप्त करने के लिए भारत के साथ खड़ा हो गया।

अवसर का द्वार 'बी-बेस्ट'

अमेरिकी की प्रथम महिला मिलेनिया ट्रंप 'बी-बेस्ट' नाम से युवा सशक्तीकरण अभियान का संचालन करती हैं। भारतीय युवाओं के लिए भी कुछ करने का आमंत्रण यदि वे स्वीकार कर लेती हैं तो बेरोजगारी का काफी हद तक निराकरण संभव होगा।

अमेरिका के सबसे धनी राष्ट्रपति

ट्रंप अमेरिका के अब तक के सबसे धनी राष्ट्रपति हैं। उन्हें राजनीति का लंबा तजुर्बा नहीं है। उन्होंने हिलेरी क्लिंटन को हराया था। हालांकि, लोकप्रियता के मामले में हिलेरी को 84 फीसद वोट मिले थे।

डा. अलका गुप्ता का परिचय

डा. अलका गुप्ता यूपी कॉलेज में राजनीति विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हैं। वर्ष 2002 में उनकी नियुक्ति हुई थी। 'मेरी बेटी-मेरा वैभव' सामाजिक मिशन से जुड़कर बालिकाओं को शैक्षिक व आर्थिक रूप से समृद्ध करने का सतत प्रयास कर रही हैं। हाल ही में उन्होंने यूजीसी का प्रोजेक्ट 'स्वामी विवेकानंद एवं युवा शक्ति' को पूरा किया। इसके अलावा 'राजनीति विज्ञान के आधारभूत सिद्धांत', 'भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन एवं भारतीय संविधान', 'इंडो-पाक सिक्योरिटी डिस्कोर्स : साउथ एशिया कांटैक्स्ट', 'चेंजिंग पल्सेस ऑफ इंडियन डेमोक्रेसी', 'पालिटिक्स, सिविल सोसाइटी एंड डेमोक्रेटिक गवर्नमेंट' व 'री-थिंकिंग ह्यूमन राइट्स एंड सिग्निफाइंग द चाइल्ड राइट्स' आदि पुस्तकों का लेखन भी किया है।


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