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दिलों के मैल धोने को यहां गंगा का पानी है, नव वर्ष पर वाराणसी में गंगा में बजड़े पर हुआ मुशायरा व कवि सम्मेलन

वाराणसी अस्सी घाट पर गंगा की लहरों के बीच सोमवार की सुबह बजड़े पर दिलकश शायरी और काव्य प्रस्तुति का दौर चला। सामाजिक कार्यकर्ता राज सिद्दीकी की पहल पर ख्यात शायरों व कवियों ने अपनी रचनाओं से काशी की जिंदादिली को रवानी दी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 04 Jan 2021 04:16 PM (IST)Updated: Mon, 04 Jan 2021 04:16 PM (IST)
अस्सी घाट पर गंगा की लहरों के बीच सुबह बजड़े पर दिलकश शायरी और काव्य प्रस्तुति का दौर चला।

वाराणसी, जेएनएन। अस्सी घाट पर गंगा की लहरों के बीच सोमवार की सुबह बजड़े पर दिलकश शायरी और काव्य प्रस्तुति का दौर चला। सामाजिक कार्यकर्ता राज सिद्दीकी की पहल पर ख्यात शायरों व कवियों ने अपनी रचनाओं से काशी की जिंदादिली को रवानी दी।

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शहजादा कलीम ने पढ़ा-' हमारे देश की मिट्टी में है खुशबू मुहब्बत की, दिलों के मैल धोने को यहां गंगा का पानी है...' वहीं रेहान हाशमी ने-'ये काम फ़राएज़ की तरह हमने किया है, जब-जब वतन ने मांगा लहू हमने दिया है...' कलाम से श्रोताओं को देशभक्ति के जज्बे से ओत-प्रोत किया। वहीं डा. शाद मशरिकी ने-'लिक्खा है मुक़द्दर में अगर धूप में जलना, दामन में  दरख़्तो के भी साया नहीं होता...'  से मुशायरे को नया आयाम दिया। इस दौरान अमित गुप्ता, जमजम रामनगरी, डा. अशोक अज्ञान, रामिश जौनपुरी आदि ने भी कलाम पेश किए। संचालन निजाम बनारसी ने किया।


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