रामनगर की रामलीला के पहले दिन श्रद्धा के क्षीर सागर में शेष शैय्या पर विराजे श्रीहरि विष्णु Varanasi news
रंगकर्म के बजाय अध्यात्म-धर्म से सराबोर दुनिया के विशालतम और अनूठे मुक्ताकाशीय मंच का पर्दा गुरुवार को संपूर्ण विधि- विधान और अनुष्ठान के साथ उठ गया।
वाराणसी (रामनगर), जेएनएन। रंगकर्म के बजाय अध्यात्म-धर्म से सराबोर दुनिया के विशालतम और अनूठे मुक्ताकाशीय मंच का पर्दा गुरुवार को संपूर्ण विधि- विधान और अनुष्ठान के साथ उठ गया। इसके साथ ही शिव की नगरी में प्रभु राम को समर्पित उपनगर रामनगर की हर डगर राममय हो उठी। गृहस्थजन हों या संतगण सभी ने समभाव से इस भक्ति गंगा में गोते लगाए और पर्व उत्सवों के रसिया शहर बनारस की सांस्कृतिक समृद्धि की सतरंगी छटा को पंख लगाए। श्रद्धा के अनगिन भावों से सजा रामबाग क्षीरसागर में तब्दील हुआ और इसमें शेष शैय्या पर विराजमान श्रीहरि ने दर्शन दिया।
लीला का आरंभ रावण जन्म प्रसंग से हुआ और उसने भाइयों समेत घोर तप किया। भगवान ब्रह्मा से अभय का वरदान पाने के अहंकार में रावण ने विश्वकर्मा द्वारा बनाए गए स्वर्ण महल पर आक्रमण तो किया ही ब्राह्मणों के यज्ञ व हवन में विघ्न व्यवधान डाला। मेघनाद इससे आगे बढ़ते हुए देवराज इंद्र को पकड़ ले आया और इंद्रजीत का अलंकरण पाया। अति तो तब हुई जब रावण ने राज्य में वेद-पुराण और श्राद्ध-हवन आदि पर रोक लगा दी। इंद्र की सलाह पर भयभीत देवों-ऋषियों ने वैकुंठ धाम जाकर भगवान विष्णु की स्तुति की। इसके साथ लाल श्वेत महताबी की रोशनी से नहाए रामबाग पोखरे ने क्षीरसागर का रूप लिया और शेष शैय्या पर लेटे श्रीहरि की झांकी निखर उठी। उनके चरण दबातीं भगवती लक्ष्मी व नाभि से निकले कमल पुष्प पर आसीन ब्रह्मा की मनोहारी झांकी निरख निहाल श्रद्धालुओं ने लीला क्षेत्र जयकार गूंजा दिया। लीला स्थल पहुंचे पंच स्वरूप इससे पहले दोपहर दो बजे पंच स्वरूपों का व्यासगणों की निगरानी में साज-श्रृंगार किया गया।
मुकुट पूजन कर विधि विधान से धारण कराया गया। चार बजे उन्हें कंधे पर बैठा कर दुर्ग पहुंचाया गया। रस्म पूरी कर बैलगाड़ी से उन्हें लीला स्थल ले जाया गया। इसके साथ ही लीला स्थल जयघोष से गूंज उठा। बग्घी पर निकली शाही सवारी शाम लगभग पाच बजे दुर्ग से काशिराज परिवार के अनंत नारायण सिंह की बग्घी पर शाही सवारी निकली। सबसे आगे पुलिस की जीप और उसके पीछे बनारस स्टेट का ध्वज लिए घुड़सवार चले। दुर्ग से बाहर आते ही इंतजार में खड़े अपार जनसमुदाय ने हर-हर महादेव के उद्घोष से अगवानी की। लीला स्थल पर 36वीं वाहिनी पीएसी की टुकड़ी ने हाथी पर सवार महाराज को सलामी दी। इसके साथ लीला शुरू हुई। बाग बगीचे तक गुलजार रामलीला के नेमियों व श्रद्धालुओं के 'जय सियाराम' के आपसी अभिवादन से लीला स्थल का माहौल बड़ा ही भावप्रवण हो गया। एक वर्ष बाद मिले लीलाप्रेमियों ने गले मिलकर एक-दूसरे का कुशल क्षेम जाना। गंगातट सहित प्रमुख सरोवरों, तालाबों के तट पर साफा-पानी जमाया। कुछ ही देर में इत्र की खुश्बू से लीलास्थल महमह हो उठा।