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प्राच्य विद्या के 'वटवृक्ष' का अस्तित्व अब खतरे में, प्रतिवर्ष दस हजार घट रही छात्रसंख्या

वाराणसी में प्राच्य विद्या के केंद्र के रूप प्रसिद्ध संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय का इतिहास 227 वर्ष पुराना है। मगर यहां पर हर साल छात्रों की संख्या कम होती जा रही है।

By Edited By: Published: Tue, 19 Feb 2019 10:18 AM (IST)Updated: Tue, 19 Feb 2019 10:18 AM (IST)
प्राच्य विद्या के 'वटवृक्ष' का अस्तित्व अब खतरे में, प्रतिवर्ष दस हजार घट रही छात्रसंख्या

वाराणसी, जेएनएन। प्राच्य विद्या के केंद्र के रूप प्रसिद्ध संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय का इतिहास 227 वर्ष पुराना है। वहीं अब प्राच्य विद्या का 'वटवृक्ष' सूखने के कगार पर पहुंच गई है। विश्वविद्यालय व इससे संबद्ध कालेजों में प्रतिवर्ष दस हजार विद्यार्थी कम हो रहे हैं। वर्तमान में विवि व देशभर में फैले संबद्ध कालेजों में छात्रसंख्या पचास हजार तक सिमट गई है। जबकि दो दशक पहले विवि व संबद्ध कालेजों में करीब दो लाख से अधिक छात्र पंजीकृत थे। संस्कृत के प्रति छात्रों का होता मोह भंग काशी ही नही देशभर के संस्कृत विद्वानों के लिए चिंता का विषय है। प्राच्य विद्या के संरक्षण व संव‌र्द्धन के लिए विश्वविद्यालय की स्थापना वर्ष 1791 में संस्कृत कालेज के रूप में हुई थी। स्थापना काल से ही विश्वविद्यालय का क्षेत्राधिकार पूरे देश में था। इसका उद्देश्य देशभर में संस्कृत भाषा का प्रचार-प्रसार करना था। हालांकि वर्तमान में देश में करीब 11 संस्कृत विश्वविद्यालय स्थापित हो चुके हैं।

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सन 2001 में क्षेत्राधिकार पर चली कैंची : सूबे में सत्र 2001-02 में यूपी बोर्ड की तर्ज पर माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद का गठन हुआ। सूबे में मध्यमा स्तर के सभी विद्यालय बोर्ड से संबद्ध कर दिए गए। अब विश्वविद्यालय सूबे के बाहर ही प्रथमा, पूर्व मध्यमा, उत्तर मध्यमा की परीक्षाएं संचालित करता है।

बढ़े विद्यालय, घटे छात्र : संस्कृत बोर्ड के गठन के तहत 18 साल में विद्यालयों की संख्या बढ़ी है। वहीं छात्रसंख्या में गिरावट आई है। वर्ष 2001 में संस्कृत बोर्ड का जब गठन हुआ उस वक्त जनपद में 86 विद्यालयों में तकरीबन मध्यमा स्तर की परीक्षा में दस हजार पंजीकृत छात्र थे। जबकि वर्तमान में मध्यमा स्तर के विद्यालयों की संख्या 104 पहुंच गई है। वहीं छात्रसंख्या घटकर करीब 5000 पहुंच गई हैं।

बोर्ड का प्रभाव विवि पर : सूबे में संस्कृत बोर्ड के गठन का प्रभाव विवि पर भी पड़ रहा है। इसके पीछे कई कारण है। विवि में ज्योतिष, नव्य व्याकरण जैसे कई ऐसे विषय है जिसमें मध्यमा स्तर के विद्यार्थी ही दाखिला ले सकते है। ऐसे में जबकि प्राच्य विद्या की नर्सरी यानी बोर्ड में ही छात्रों का टोटा है तो विवि में छात्रों का संकट स्वभाविक है।

विवि की गिरी साख : वर्तमान में पूरे देश 11 संस्कृत विश्वविद्यालय खुल चुके हैं। वही तीन दशकों में संपूर्णानंद संस्कृत विवि की साख गिरी है। छात्रसंख्या कम होने का यह भी एक कारण बताया जा रहा है। '' सर्वाधिक संस्कृत विद्यालय पूर्वाचल में में हैं। वहीं इसका मुख्यालय लखनऊ बना दिया गया है। बोर्ड का मुख्यालय (लखनऊ) दूर होना व प्रचार-प्रसार न होने से छात्रसंख्या कम हो रही है। इसका असर विश्वविद्यालय पर भी पड़ रहा है। -प्रो. रामपूजन पांडे, छात्र कल्याण संकायाध्यक्ष।

बोले अधिकारी : '' वर्तमान दौर में संस्कृत को कंप्यूटर व अंग्रेजी से जोड़ने की आवश्यकता है ताकि इसे रोजगारपरक बनाया जा सके। संस्कृत के क्षेत्र में रोजगार के कम अवसर होने के कारण विद्यार्थी संस्कृत नहीं पढ़ना चाहते हैं। दूसरी ओर मध्यमा बोर्ड को और प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। -प्रो. हरि प्रसाद अधिकारी विभागाध्यक्ष, तुलनात्मक धर्म दर्शन।


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