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भदोही के कालीन के 'हीटिंग पैड' से अब कमर दर्द छू-मंतर, जानिए कैसे करता है काम

इंडियन इंस्टीट्यूट आफ कार्पेट टेक्नोलॉजी (आइआइसीटी) भदोही ने पॉलीपीरोल तकनीक से पॉयरल फेरिक क्लोराइड और डोपेंट जैसे खास तरह के केमिकल के द्वारा हीटिंग पैड तैयार किया है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 29 Jun 2020 03:35 PM (IST)Updated: Mon, 29 Jun 2020 05:28 PM (IST)
भदोही के कालीन के 'हीटिंग पैड' से अब कमर दर्द छू-मंतर, जानिए कैसे करता है काम
भदोही के कालीन के 'हीटिंग पैड' से अब कमर दर्द छू-मंतर, जानिए कैसे करता है काम

भदोही, [संग्राम सिंह]। आप, कमर दर्द से परेशान हैं। उठने-बैठने में दिक्कत है तो यह खबर आपके लिए ही है। दरअसल, कालीन के जो अवशेष फेंक दिए जाते हैं, उससे इलेक्ट्रिक हीटिंग पैड बनाकर आपकी पीड़ा दूर करने का इलाज खोजा गया है। इंडियन इंस्टीट्यूट आफ कार्पेट टेक्नोलॉजी (आइआइसीटी) भदोही ने पॉलीपीरोल तकनीक से पॉयरल, फेरिक क्लोराइड और डोपेंट जैसे खास तरह के केमिकल के द्वारा हीटिंग पैड तैयार किया है। हाई थर्मल स्टेबल फाइबर की मदद से इस यंत्र को बनाया गया है। इस शोध को रोमानिया के इंटरनेशनल जनरल आफ रिसेंट टेक्नालॉजी एंड इंजीनियरिंग ने प्रकाशित भी किया है। इसे मात्र तीन मिनट में 30 वोल्ट करंट में गर्म किया जा सकता है, जिसकी गर्माहट आठ से 10 मिनट तक बनी रहती है। आइआइसीटी अब इसे पेटेंट कराने की तैयारी में है।

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ऐेसे तैयार हुआ यंत्र

पॉयरल, फेरिक क्लोराइड और डोपेंट केमिकल के घोल को 24 घंटे जीरो डिग्री तापमान में रखते हैं। इस घोल में कालीन के टुकड़ों को पैड का आकार देते हुए डुबा देते हैैं। कुछ देर बाद उसे गर्म तापमान में सुखाते हैं। फिर उसमें सामान्य इलेक्ट्रान प्रवाहित करते हैं, जिनके गतिमान होने पर कालीन के ऊपर हाई थर्मल स्टेबल फाइबर (खास तरह का कपड़ा) की कोटिंग की जाती है। फिर उसमें अर्थ एवं न्यूट्रल के लिए दो तार जोड़ते हैं। तीन घंटे के ट्रायल में 30 वोल्ट करंट प्रवाहित करने पर कालीन का टुकड़ा एक बार गर्म हुआ तो गर्माहट लंबे समय तक बनी रही। इस हीटिंग पैड से दर्द वाले स्थान पर सिकाई करने से पीडि़त को राहत मिली।

पूर्वांचल में निकलता है बड़े पैमाने पर कालीन का टुकड़ा

देशभर में कालीन के कुल निर्यात का 50 प्रतिशत हिस्सा पूर्वांचल से है। यहां करीब 4500 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार है। कालीन निर्यातक संजय गुप्ता की मानें तो करीब 100 करोड़ रुपये का कालीन टुकड़ा तीनों जिलों बनारस, मीरजापुर और भदोही में बेकार चला जाता है। पांच सौ रुपये कीमत की काती 20 रुपये में बेचनी पड़ती है। हीटिंग पैड के लिए अब इसका इस्तेमाल हो सकेगा।

दो हजार रुपये में मिलता है पॉयरल

पैड बनाने में मुख्य भूमिका पॉयरल केमिकल की है। यह बाजार में प्रति दस ग्राम दो हजार रुपये में मिलता है। यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में बैन नहीं है। शरीर के लिए नुकसानदायक भी नहीं है। हालांकि फेरिक क्लोराइड और डोपेंट केमिकल 200 से 300 रुपये प्रति पैकेट मिलता है।

आइआइसीटी, भदोही के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. हिमांशु शेखर महापात्रा ने बताया कि 'हीटिंग पैड को विकसित करने में पूरे दो साल लगे हैं। इंटरनेशनल कान्फ्रेंस आन फंक्शनल मैटीरियल्स ने इस कार्य के लिए सम्मानित भी किया है। कोशिश है कि इस तरीके से और संभावनाएं भी तलाशी जाएं। जिला अस्पताल के फिजिशियन, - डा. प्रदीप कुमार सिंह ने बताया कि ' जिला अस्पताल में रोजाना 50 मरीज कमर दर्द के आते हैं। ज्यादातर मरीजों को सिकाई की सलाह दी जाती है, जिससे काफी हद तक आराम मिलता है।


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