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‘स्वास्तिक' का चिन्ह वैश्विक माङ्गलिकता व साधकों के लिए शक्ति का अक्षय स्रोत : प्रो. हरिशंकर पांडेय

पूजा-पाठ सहित अन्य धार्मिक कार्यों में आप ‘स्वस्तिक देखते व बनाते भी होंगे। यहां तक कि खाता-बही की शुरूआत करते समय भी तमाम व्यापारी पहले पन्ने पर ‘स्वस्तिक का चिन्ह बनाते हैं। इसके बावजूद तमाम लोग इसकी महत्ता नहीं जानते हैंं।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Fri, 30 Jul 2021 01:53 PM (IST)Updated: Fri, 30 Jul 2021 01:53 PM (IST)
पूजा-पाठ सहित अन्य धार्मिक कार्यों में आप ‘स्वस्तिक' देखते व बनाते भी होंगे।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। पूजा-पाठ सहित अन्य धार्मिक कार्यों में आप ‘स्वस्तिक' देखते व बनाते भी होंगे। यहां तक कि खाता-बही की शुरूआत करते समय भी तमाम व्यापारी पहले पन्ने पर ‘स्वस्तिक' का चिन्ह बनाते हैं। इसके बावजूद तमाम लोग इसकी महत्ता नहीं जानते हैंं। दरअसल ‘स्वस्तिक' धर्म दर्शन अध्यात्म के साथ वैश्विक माङ्गलिकता का भी प्रतीक हैं।

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पालि के प्रकांड विद्वान व संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण संकायाध्यक्ष प्रो. हरिशंकर पांडेय ने ‘स्वस्तिक' पर हाल में ही शोध किया है। प्रो. पांडेय के मुताबिक अष्टमंगल स्वस्तिक सात्विक प्रसन्नता, वैश्विक माङ्गलिकता का प्रतीक है। जहां पर केवल आनन्द , परमसुख, ललित- विभूति और स्वर्णिम रूप का अधिवास होता है। यह विश्व कला का एक रहस्यात्मक प्रतीक है। सम्पन्न साधकों के लिए शक्ति का अक्षय स्रोत भी है। सहजता के साथ विभूता तथा लालित्य के साथ गांभीर्य का रमणीय मिलन स्थल है। जिसका दर्शन संसार यात्रियों के लिए विध्वंसन के साथ परम मंगल का साधक है तो स्मरण पाप कलुषों का प्रक्षालन कर आत्मा में दिव्य प्रकाश का अवतरण कर देता है।

जो केवल मंगल है, असीम आनन्द का केन्द्र है, कल्याण की कल्पलता है तो विभूति का महासागर है। गृहस्थों के लिए यह माङ्गलिक प्रतीक मांगलिक-संसार का प्रदाता है तो साधकों के लिए आत्म प्रकाशावतरण की आवास भूमि। यह रूप भी है रमणीयता भी है, कला भी है कमनीयता भी। शान्ति, अंहिसा, विश्वबंधुत्व, धर्म, यश : कीर्ति के साथ आह्वादक आनन्द का प्रदायक यह प्रतीक सम्पूर्ण विश्वसंस्कृति तथा विश्वमानवता द्वारा आकृत और समादृत है। विश्वास, मान्यता, सम्प्रदाय, दिशाएं, आचार- व्यवहार भले ही वैश्विक जगत् में भिन्न-भिन्न हो लेकिन स्वस्तिक की महत्ता हर धर्म में स्वीकार किया गया है। स्वस्तिक मंगल, प्रकाश, उत्साह, प्रसन्नता, दिव्यता का उद्धावक है। अग्नि और सूर्य प्रकाश के देवता हैं। घर - घर में इनकी पूजा होती है। सर्व इनकी आराधना आज भी प्रसिद्ध है। संभवत : अग्नि और सूर्य का प्रतीक इसे माना जा सकता है। इसमें भी मत वैभिन्नय है।

ऋग्वेद का स्वस्ति मन्त्र' सूर्यादि विभिन्न देवों से सम्बद्ध है। सीरिया, इंगलैंड, मिश्र, फ्रान्स, जर्मनी, यूनान, इटली, नावें, स्वेडन, स्पेन, मध्य एशिया, मैक्सिको, जापान, चीन, कम्बोडिया, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, अफ्रिका आदि देशों से यह माङ्गलिक प्रतीक के रूप में माना जाता है। बताया कि विश्व का सर्व प्राचीन ऋग्वेद से लेकर विश्व के सारे शास्त्रों एवं संस्थानों किंवा सम्प्रदायों ने इसकी माङ्गलिकता को स्वीकार किया है। मंगल, आशीष का कारक या प्रदायक है तथा पापों का प्रक्षालक है वह स्वस्तिक है। स्वस्तिक - शब्द - विमर्श यह शब्द भारतीय शास्त्रों में अनेक रूप से विमर्शित है। स्वस्तिक शब्द कालिक अखण्डता से सम्पृक्त मंगल को अभिव्यक्त करता है। स्वस्तिक शब्द से के प्रयोग से मानव का कल्याण होता है। स्वस्तिक को एक मंगलद्रव्य तथा विशिष्ट गृह का वाचक के रूप में भी स्वीकार किया गया है।


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