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Swami Sahajanand Death Anniversary दोस्त की संगत और पत्नी की मौत ने बदल दी जीवनधारा

Swami Sahajanand Death Anniversary देश में संगठित किसान आंदोलन के जनक जननायक को गाजीपुर में लोग अब भी पूजते हैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Fri, 26 Jun 2020 07:00 AM (IST)Updated: Fri, 26 Jun 2020 09:37 AM (IST)
Swami Sahajanand Death Anniversary दोस्त की संगत और पत्नी की मौत ने बदल दी जीवनधारा
Swami Sahajanand Death Anniversary दोस्त की संगत और पत्नी की मौत ने बदल दी जीवनधारा

गाजीपुर, जेएनएन। Swami Sahajanand Death Anniversary नहीं दरिद्र कोउ दुखी न दीना...। ...सब सुंदर, सब बिरजु शरीरा। रामचरित मानस की यह चौपाई ही जिले के स्वामी सहजानंद का जीवन दर्शन था। यही वजह है कि देश में संगठित किसान आंदोलन के जनक जननायक को जिले में लोग अब भी पूजते हैं। अलबत्ता जिले के लोगों को यह मलाज जरूर है कि उन्हेें वह स्थान आज के दौर में नहीं मिल पाया जिसके वह वास्तविक हकदार थे। हालांकि डिग्री कालेज, इंटर कालेज, जूनियर हाईस्कूल तथा उनके गांव में पंचायत भवन सहित कई प्रमुख स्थल उनके नाम पर है। 

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बेनी राय के चार पुत्रों में एक स्वामी सहजानंद नवरंग राय के नाम से जाने जाते थे। तीन साल की उम्र में ही माता को खोने वाले नवरंग अपने प्रिय मित्र हरिनारायण पांडेय से विशेष रूप से प्रेरित थे। नवरंग ने जब 18 साल की उम्र में ही अपनी पत्नी इंद्रावती को खोया तो फिर उन्हें कोई रोक न सका और जीवनधारा ही बदल गई। यूं तो शुरू से ही उनका मन जीव मात्र की सेवा को उन्मुख था लेकिन कक्षा आठ की पढ़ाई के दौरान मड़ाई करते जब उन्होंने बैलों को गेंहूं खाने के लिए पूरी तरह छोड़ दिया तो पिता को चिंता हुई। ऐसे में उन्होंने सादात के मौधिया में अपने जानने वाले की बेटी से ब्याह करवाया लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। जिस जलालाबाद में जूनियर तक की उन्होंने पढ़ाई की आज उसका नाम स्वासी सहजानंद जरूर है लेकिन परिवार को मलाल है कि उन्हें वह सम्मान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे।

महाशिवरात्रि के दिन पैदा हुए थे

स्वामी सहजानंद सरस्वती का जन्म महाशिवरात्रि के दिन जिले के देवा ग्राम में 22 फरवरी सन 1889 में हुआ था। 26 जून 1950 में उनका निधन हुआ। इनकी प्राथमिक शिक्षा जलालाबाद में हुई थी। वर्ष भर के अंदर ही पत्नी का स्वर्गवास हो जाने के बाद इन्होंने सन्यास धारण कर लिया। आज भी जिले के तमाम लोगों के घरों उनके चित्र हैंए लोग उनको भगवान की तरह मानते हैं। हर वर्ष उनकी पुण्यतिथि और जयंती पर कार्यक्रम होते हैं। हालांकि इस बार कोरोना वायरस के चलते कार्यक्रम स्थगित है।

कुछ यूं रही जीवन यात्रा

1927 में सन्यास ग्रहण किया। 1920 में महात्मा गांधी से भेंट राजनीतिक में प्रवेश। 1927 श्री सीताराम आश्रम तथा पश्चिम पटना किसान सभा की स्थापना। 1934 में अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना। स्वामी जी के जीवन का अधिक समय बिहार में बीता। किसानों की दुर्दशा को देखकर उन्होंने किसानों के प्रति अपना जीवन न्यौछावर कर दिया।


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