मऊ में चीनी मिल के घाटे का सबब है घटता गन्ना रकबा, अब किसानों के लिए धान-गेहूं हैं कैश क्राप
यूं ही अब चीनी मिल प्रतिवर्ष घाटे में नहीं चल रही है। तमाम कारणों में प्रमुख कारण मिल को क्षमता के अनुरूप को गन्ना नहीं मिलना है। इसके पीछे मिल से लेकर गन्ना विकास समिति एवं जनप्रतिनिधि तक दोषी हैं। किसी जमाने में गन्ना ही एकमात्र फसल थी।
मऊ [अरविंद राय] । यूं ही अब चीनी मिल प्रतिवर्ष घाटे में नहीं चल रही है। तमाम कारणों में प्रमुख कारण मिल को क्षमता के अनुरूप को गन्ना नहीं मिलना है। इसके पीछे मिल से लेकर गन्ना विकास समिति एवं जनप्रतिनिधि तक दोषी हैं। किसी जमाने में गन्ना ही एकमात्र फसल थी जिसकी शासकीय समर्थन मूल्य पर खरीद होती थी। एक माह के भीतर किसान को नकद भुगतान प्राप्त होता था। तब अन्य फसलों को किसान व्यवसायियों के हाथ औने-पौने दाम बेचने को विवश होता था। इसके चलते किसान गन्ना की खेती करते थे। कालांतर में चीनी मिल ने पर्ची वितरण से लेकर गन्ना मूल्य भुगतान में ऐसा खेल किया कि किसानों ने गन्ना से तौबा कर लिया।
चीनी मिल में इस सत्र के पेराई सत्र का शुभारंभ हो गया है पर गत वर्ष 16 मार्च के बाद गन्ना बेचने वालों किसानों की बकाया राशि का भुगतान न हो सका है। दावे तमाम हैं। मिल से लेकर गन्ना विकास समिति एवं गन्ना विकास परिषद किसानों को गन्ने की खेती के लिए प्रोत्साहन की कवायद में हैं। बावजूद इसके दो दशक पूर्व गन्ना मूल्य भुगतान में विलंब, पर्ची की समस्या सहित अन्य कारणों से विमुख गन्ना किसान अभी तक दोबारा गन्ना उत्पादन का साहस न जुटा सके हैं। ऐसे में हजारों घरों की आजीविका का सहारा एवं जिले की आर्थिक आय का मजबूत स्रोत चीनी मिल घाटे में चल रही है। इसके बीच बड़ी विडंबना यह कि किसानों को प्रोत्साहित करने को चीनी मिल शुगर डेवलपमेंट फंड से ऋण के साथ ही चुनिंदा प्रगतिशील किसानों को मुफ्त में प्रेस मड खाद दिए जाने की योजना भी बंद हो गई है।
कभी यह जनपद गन्ने का कटोरा रहा है। गन्ने के अधिक उत्पादन के चलते 04 दिसंबर 1984 को स्थापित घोसी चीनी मिल की क्षमता वर्ष 1994 में दोगुनी की गई। क्षमता दोगुनी होने के साथ किसानों को चीनी मिल शुगर डेवलपमेंट फंड से गन्ने के बीज एवं खाद हेतु ऋण दिया जाने लगा। तब किसानों को चीनी मिल गन्ने के लिए सर्वोत्तम खाद प्रेसमड मुफ्त देती थी। अब हाल यह कि बीते डेढ़ दशक से शासन ने शुगर डेवलपमेंट फंड बंद कर दिया तो मिल ने भी मुफ्त प्रेस मड वितरण से हाथ खींच लिया है। प्रगतिशील किसान हों या अन्य किसान अब भुगतान पर ही मिल से खाद एवं बीज उपलब्ध होता है अलबत्ता किराया मिल वहन करती है। ऐसे में गन्ना विकास एवं अधिक गन्ना उत्पादन की बात बेमानी नजर आती है। आंकड़े भी किसानों के मुंह मोडऩे की गवाही देते हैं। हालांकि प्रचलन में नई एवं उन्नतशील प्रजातियों के आने से उत्पादन बीते वर्ष 606 कुंतल प्रति हेक्टेयर रहा तो इस वर्ष 634 कुंतल पर आ पहुंचा है। बावजूद इसके अहम बात यह कि गन्ने से विमुख किसान वापस गन्ना की खेती की तरफ नहीं मुड़ रहे हैं।
किसान के मोबाइल पर गन्ना लाने की तिथि की सूचना प्रेषित की जा रही है
बिचौलियों के हस्तक्षेप को समाप्त करने के लिए प्रत्येक किसान के मोबाइल पर गन्ना लाने की तिथि की सूचना प्रेषित की जा रही है। शासन से प्राप्त राशि एवं चीनी बेचने से प्राप्त राशि से पुराने भुगतान सहित इस वर्ष क्रय गन्ने के मूल्य का भुगतान किया जाएगा। किसानों को हर संभव सुविधा दी जाएगी। गन्ने की खेती को प्रोत्सहित करने को चीनी मिल हर संभव उपाय अपनाएगी।
-एलपी सोनकर, प्रधान प्रबंधक, घोसी चीनी मिल
आंकड़ों की नजर में गन्ना उत्पादन
वर्ष क्षेत्रफल (हेक्टेयर में)
2005-06 13461
2006-07 10396
2007-08 15066
2008-09 8466
2009-10 8566
2010-11 8500
2011-12 9067
2012-13 9324
2013-14 11459
2014-15 10984
2015-16 19641
2016-17 8406
2017-18 9564
2018-19 9857
2019-20 9562
2020-21 8963